वार्तालाप के दौरान कई बार मुंह से फिसल ही जाता है , हमारे ज़माने में ऐसा होता था ,वैसा होता था , पिता के साथ धौल धप्पा करते उनके सिर चढ़े बच्चों को देख हममे से अक्सर आहें भर लेते हैं , हमारे ज़माने में कहाँ बच्चों की ऐसी हिम्मत होती थी कि पिता के सामने खड़े भी हो सके , हंसी मजाक तो दूर की बात थी . फिर झट से जीभ भी काट ली जाती है , ये क्या बुड्ढों के जैसे बातें करने लगे . वास्तव में हम लोंग ज्यादा समय वर्तमान में नहीं अपितु भविष्य या भूतकाल में ही जीते हैं ....
हमारे कंप्यूटर शिक्षा केंद्र पर कंप्यूटर चलाना सिखाने के अलावा कभी बायोडाटा अथवा कोई ज़रूरी कागज़ का प्रिंट निकालने का काम भी कर दिया जाता था . इसी दौरान एक दिन सेना से रिटायर्ड एक व्यक्ति का अपने कुछ ज़रूरी कागजों को संशोधित कर प्रिंट लेने के लिए आना हुआ . मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग अशुद्धियों को ठीक करते हुए देख कहने लगे , " आजकल तकनीक ने हर काम कितना आसान कर दिया है , हमारे ज़माने में तो टाईपराईटर पर एक- एक पेज बहुत सावधानी से टाईप करना पड़ता था , एक भी गलती हुई तो दुबारा पूरी मेहनत करनी होती थी ."
मैंने कहा , "क्या परेशानी है , आप अभी भी कंप्यूटर सीख सकते हैं और जमाना आपके साथ हो जाएगा ."
वे खुश हो गये , हाँ , ये ठीक है .
फिर पूछने लगे कि क्या वास्तव में मैं सीख सकता हूँ , इसमें मुझे परेशानी तो नहीं आएगी . मैंने कंप्यूटर सीखने वाले दस बारह साल के बच्चों की ओर इशारा किया , देखिये, ये लोंग सीख रहे हैं , क्या आपका सामान्य ज्ञान दस बारह साल के बच्चों जितना भी नहीं है जो आप नहीं सीख सके .
वे आश्वस्त हो गये और कहने लगे कि वास्तव में आजकल तकनीक ने जीवन कितना सरल कर दिया है , अब तो बहुत लम्बा जीने को मन करता है . जीवन के प्रति उनकी ललक और आत्मसंतुष्टि को देखकर बहुत अच्छा लगा कि वे ज़माने के रंग में घुल मिल रहे हैं , जमाना उनके हाथ से फिसला नहीं है .
जब सोचना शुरू किया कि वास्तव में हमारा जमाना , तुम्हारा ज़माने का झगडा क्या है तो विचार पीछा करते हुए एक और पुराने ज़माने की ओर ले गये . ऋषि मुनियों के समय का ज़माना ,जहाँ प्रत्येक मनुष्य की आयु को कम से कम सौ वर्ष मानते हुए उसे चार आश्रमों में विभाजित किया गया था .
पहला ब्रह्मचर्य आश्रम जहाँ बालकों को अपनी संस्कृति और मर्यादाओं से परिचित करवाते तथा पालन करते हुए आने वाले जीवन के लिए उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से सुदृढ़ किया जाता था , इस समय वे गुरु के अधीन रहते हुए विद्यार्थी के रूप में अपना जीवन व्यतीत करते थे .
इसके बाद गृहस्थ आश्रम की शुरआत होती थी जिसमे सांसारिक गतिविधियों जैसे विवाह , संतानोत्पत्ति , जीवन यापन के लिए शासन , कार्य या व्यापार की जिम्मेदारी का वहन किया जाता था . जब युवा इन सांसारिक गतिविधियों में प्रवीण होकर जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए परिपक्व होते थे उस समय उनकी अगली पीढ़ी के लोंग तीसरे आश्रम वानप्रस्थ की तैयारी में लग जाते थे .
युवाओं को पूर्ण सत्ता हस्तांतरण जैसी यह व्यवस्था दो पीढ़ियों के टकराव की सम्भावना को जड़ से ही समाप्त कर देती थी . वानप्रस्थ आश्रम में सांसारिक गतिविधियों से हटकर वन में रहते हुए स्वाध्याय , सेवा , यज्ञ , दान आदि द्वारा जीवन का सार्थक उपयोग किये जाने की व्यवस्था सामाजिक ढांचे को संतुलित करती थी . इस समय बड़े बुजुर्ग वन में रहते हुए स्वयं को परिवार के भरण- पोषण अथवा नीति निर्धारण की जिम्मेदारी से मुक्त रखते थे . इस लिए उनका जमाना और नई पीढ़ी का जमाना अलग माना जाता था क्योंकि आश्रमों की व्यवस्था के कारण दोनों पीढ़ियों के बीच स्पष्ट विभाजक रेखा थी . वे एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे , शासन अथवा गृहस्थी की जिम्मेदारी पूर्णतः युवा पीढ़ी के हाथों में होती थी जिसे वे अपने विवेक का पालन करते हुए अपनी सुविधानुसार ही उठाते थे . पूर्णतः स्वतंत्र होने के कारण उनकी अपनी नीतियाँ होती थी जो उन्हें अपनी अगली पीढ़ी से अलग करती थी और इस तरह दोनों के ज़माने भी अलग अलग ही निरुपित या सीमांकित होते थे .
उसके बाद संन्यास आश्रम का प्रारंभ होता था जिसमे कुछ विशेष परिस्थितियों को छोड़कर अक्सर सांसारिक गतिविधियों का पूर्णतः त्याग कर दिया जाता था .
समय के बदलने के साथ बढती सुविधाओं ने विभिन्न आश्रमों की अवधारणा अथवा संकल्पना को ही बदल दिया है . समय की मांग को देखते हुए अपनी जिम्मेदारियों के वहन में युवा , अधेड़ और वृद्ध के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं रही है . भरण पोषण के लिए आवश्यक गतिविधियों के अतिरिक्त नीति निर्धारण में भी युवा , अधेड़ और वृद्धों की सामूहिक जिम्मेदारी और अहमियत है . इसलिए इस समय हमारा जमाना , तुम्हारा जमाना कहना ज्यादा उचित नहीं !
हमारा जमाना , तुम्हारा जमाना ..वास्तव में जमाना तो उस समय का ही होता है जिससे हम गुजर रहे होते हैं ,उस समय में गुजर रहे लोगों का नहीं !
अंतर तो है ... और वही अंतर जो आपने शुरुआत में लिखा है ... और जहां अंत किया है।
जवाब देंहटाएंहमारे ज़माने में पिता से भर मुंह बात हम न कर पाते थे, चाहे आदर हो सम्मान या और कुछ, आज वह अंतर मिट गया है, यही अंतर है।
आलेख की शालीन शैली प्रेरक है।
पूर्व में पीढियों का अन्तराल हुआ करता था लेकिन अब संस्कृति का अंतराल आ गया है इसलिए ही इतना अन्तर दिखाई देता है।
जवाब देंहटाएंसीखने की कोई उम्र नहीं, हर सुबह उठ कुछ न कुछ सीखने की जुगत में रहना चाहिये...
जवाब देंहटाएंवक्त बदले या इंसान …………अब चाहे इसे ज़माना कह दो मगर बदलाव तो आते ही हैं…………बहुत ही प्रेरक आलेख है।
जवाब देंहटाएंchanges is the nature of life..... its fact...
जवाब देंहटाएंहम से है जमाना ...... बदलने की मियाद थोड़ी तीव्र हुई है . बढ़िया चिंतन
जवाब देंहटाएंसाथ में जिम्मेदारियों के वहन से याद आया कि ...
जवाब देंहटाएंएक बुजुर्गवार और एक जवान एक ही आफिस में काम (लिपिक) करते थे ,साथ में चाय पीते ,गप करते ,फाइलें निपटाते और घर लौटते ,एक रोज किसी मुद्दे पर उन दोनों में बहस छिड़ गई , युवा अपनी जिद पे और बुजुर्गवार उसे समझाते समझाते थक गये कि नियम की व्याख्या "यूं" होगी ! काफी गरमा गर्मी के बाद , बुजुर्गवार ने कहा...अबे सुन जितने दिन की तेरी नौकरी है उतने दिन तो मैं सी.एल. (कैजुअल लीव) ले चुका हूं अब तू मुझे क्या सिखायेगा नियम की व्याख्या :)
मतलब ये कि जमाने ( शायद अनुभव कहना उचित लगे ) का फ़र्क अब भी बाकी रहा हालांकि दोनों एक साथ काम करते वक्त काफी सहज हुआ करते थे :)
गुज़र रहे जमाने में गुज़र चुके जमाने का एडिशन (जोड़) तो बनता ही है :)
सच है...सीखने की कोई उम्र नहीं होती..मेरे पिताजी ने भी इस उम्र में कंप्यूटर चलाना सीख लिया है...मेल करने ..चैट करने....फोटो अपलोड करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होती..और नेट के माध्यम से पूरे संसार में फैले अपने तमाम रिश्तेदारों के संपर्क में हैं..बल्कि हमसे ज्यादा सक्रिय हैं वे.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है.जमाना हमारे मस्तिष्क में होता है और चाहें तो जब तक हम रहें अपना जमाना बना रहे.
जवाब देंहटाएंज़माना भी हर १०-१५ साल में बदल जाता है । यदि हम भी ज़माने के साथ बदलते रहें तो हमारे तुम्हारे का भेद ही ख़त्म हो जाता है । सही कहा --सीखने की कोई उम्र नहीं होती ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख ।
ज़माना हमारा ही है और अभी रहेगा ...
जवाब देंहटाएंVAKT KE SATH NBADLENGE TO JAMANA AAPKA HI RAHEGA NAA HAMARA NAA TUMHARA ......
जवाब देंहटाएंहर जमाने की कुछ विशेषताएं तो होंगी ही .. कुछ अच्छी तो कुछ बुरी भी !!
जवाब देंहटाएंसंतुलन बनाए रखने में ही भलाई है !!
अपनी-अपनी विशेषआओं के साथ अपना - अपना जमाना :) बहुत बढि़या।
जवाब देंहटाएंपहले जमाने में.... अब यह पहला क्या है .... जब से इंसान पैदा होता है और अंत तक उसका ज़माना साथ रहता है ... हर पल बदलता हुआ ... पिता से डरना या सम्मान जो भी कहें वो भी हमारे जमाने का था और आज बच्चे हमसे नहीं डरते तो यह भी हमारे जमाने का ही है ... बस वक़्त के साथ इंसान भी बदलता रहता है ... और नयी चीज़ें सीखता रहता है ... कुछ लोगों में सीखने की इच्छा होती है और कुछ में नहीं ....
जवाब देंहटाएंजब मैं छोटी थी ॥शायद छठी क्लास में तो सुनने में आया कि अब ऐसा रेडियो आएगा जिसमें चित्र भी दिखेंगे ... आज टी वी घर घर की ज़रूरत बन गया है ...और कंप्यूटर ... आज मेरी ज़रूरत बन गया है ॥:):)
मगर कहा तो यह गया है -कालो न याता वयमेव याता -मतलब हम व्यतीत होते हैं समय नहीं ! :) लिखा बढियां है ..मनुस्मृति की एक स्मृति!
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंजी हाँ सीखने की कोई उम्र नहीं होती..... और ज़माना वो तो समय के अनुसार ही होता है लोगों के अनुसार नहीं.....
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंहमारा जमाना , तुम्हारा जमाना ..वास्तव में जमाना तो उस समय का ही होता है जिससे हम गुजर रहे होते हैं ,उस समय में गुजर रहे लोगों का नहीं !
जिन पलों को हम भरपूर जी रहे हैं और उनका भरपूर आनंद उठा रहे हैं वे हमारे ज़माने के नहीं हैं या हम उस ज़माने के नहीं हैं यह कैसे हो सकता है ! ज़माना हमसे है हम ज़माने से नहीं ! जीवन जीने और बिताने में बहुत फर्क होता है ! इसमें उम्र कहाँ से आड़े आती है ! आपने बहुत बढ़िया लिखा है ! बधाई आपको !
आपने बहुत बढ़िया लिखा है ! बधाई आपको !
जवाब देंहटाएंहर रोज नया सबक जब तक जिंदगी है. सुंदर चिंतन. बधाई.
जवाब देंहटाएंआपने अच्छा टोका हमें। इस हमारे जमाने के जुमले का प्रयोग कुछ ही समय हुआ, शुरू हुआ था, अब बन्द करते हैं - सयास।
जवाब देंहटाएंबढ़िया आलेख/सार्थक चिंतन....
जवाब देंहटाएंसमय के बदलने के साथ बढती सुविधाओं ने विभिन्न आश्रमों की अवधारणा अथवा संकल्पना को ही बदल दिया है . समय की मांग को देखते हुए अपनी जिम्मेदारियों के वहन में युवा , अधेड़ और वृद्ध के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं रही है . भरण पोषण के लिए आवश्यक गतिविधियों के अतिरिक्त नीति निर्धारण में भी युवा , अधेड़ और वृद्धों की सामूहिक जिम्मेदारी और अहमियत है . इसलिए इस समय हमारा जमाना , तुम्हारा जमाना कहना ज्यादा उचित नहीं !
जवाब देंहटाएंहमारा जमाना , तुम्हारा जमाना ..वास्तव में जमाना तो उस समय का ही होता है जिससे हम गुजर रहे होते हैं ,उस समय में गुजर रहे लोगों का नहीं !
समय करे नर क्या करे ,समय समय की बात ,
और किसी समय के दिन बड़े ,किसी समय की रात .
समय ही मनुष्य की सवारी करता है ,समय पर सवार कौन हो सका है .
बहुत अच्छा टोपिक उठाया है आपने | ज़माना बदलता ही रहता है, और ज़माने के साथ बढ़ते रहने वाले कभी पीछे नहीं छूटते | मेरी सासू माँ और मेरी माँ, दोनों ही आज लेपटोप पर इन्टरनेट यूज़ कर रही हैं, और बहुत खुश हैं | :)
जवाब देंहटाएंशायद इसी लिए कहते हैं ज़माना बदल गया है ... आज हमारा तुम्हारा कुछ नहीं रह गया ... जीवन हर रोज जीना पढता है ... काटना नहीं ...
जवाब देंहटाएंजब मन में हो विश्वास तो जमाना क़दमों में होता है ...
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