इन्टरनेट पर एक अलग फेसबुक समाज की स्थापना हो चुकी है . आभासी दुनिया की सीमा को लांघ कर यहाँ भी वास्तविक जीवन के सारे गुण दोष , अफवाहें , आरोप , प्रेम , तकरार , नफरत अपनी पूरी भावप्रवणता के साथ मौजूद हैं . हों भी क्यों नहीं . आभासी दुनिया कह देने से यह सिर्फ आभास नहीं हो सकता , कंप्यूटर के कीबोर्ड से जुड़े हुए लोग तो वास्तविक ही हैं . उनकी उम्र , जाति , लिंग , धर्म और प्रोफाइल फर्जी होने के बावजूद भी .कुछ दिनों पहले फेसबुक पर मैसेज बॉक्स में आये विशेष सन्देश को लेकर काफी हलचल मची रही . इस सन्देश में एक कन्या विशेष को फ्रेंड लिस्ट में ना जोड़ने की प्रार्थना के साथ लेकर फेसबुक धारियों को आगाह किया जा रहा था कि उक्त कन्या बहुत खतरनाक है .. अफवाहों में विशेष रूचि नहीं होने के कारण इस पर तवज्जो नहीं दी मगर यह खयाल आया कि क्यों इस तरह किसी ख़ास कन्या को फेसबुक पर सामाजिक होने से बाधित किया जा रहा है . यदि खतरनाक भी होगी तो फेसबुक पर क्या कर तमंचा ,गोला बारूद चला लेगी ? अगले ही पल खयाल आया कि शायद यह चेतावनी उसके हैकर होने की सम्भावना को लेकर हो ..
किसने उड़ाई होगी यह अफवाह . इससे उसे क्या लाभ होगा ! यह अलग मसला था मगर मेरे ज़ेहन में एक विचार आया ही कि यह कहीं दो मित्रों के बीच किसी प्रकार की ग़लतफ़हमी के कारण रिश्ता टूटने या बिगाड़ने का परिणाम रहा हो . मित्र यदि दुश्मन बन जाए तो उससे खतरनाक कौन हो सकता है . विचार मंथन के दौरान एक हास्यव्यंग्य से भरपूर लोककथा स्मरण में रही जिसमे मित्रों के बीच स्नेह्बंधन टूटने का कारण व्यंग्य की दृष्टि से अत्यंत रोचक था .
किसने उड़ाई होगी यह अफवाह . इससे उसे क्या लाभ होगा ! यह अलग मसला था मगर मेरे ज़ेहन में एक विचार आया ही कि यह कहीं दो मित्रों के बीच किसी प्रकार की ग़लतफ़हमी के कारण रिश्ता टूटने या बिगाड़ने का परिणाम रहा हो . मित्र यदि दुश्मन बन जाए तो उससे खतरनाक कौन हो सकता है . विचार मंथन के दौरान एक हास्यव्यंग्य से भरपूर लोककथा स्मरण में रही जिसमे मित्रों के बीच स्नेह्बंधन टूटने का कारण व्यंग्य की दृष्टि से अत्यंत रोचक था .
किसानों के लिए बुआई का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है . सुबह जल्दी उठना , खेतों पर जाना , हाड़ तोड़ मेहनत के बाद जमीन को बुआई के लायक बनाते परिवार और मित् के साथ किसान अपने छकड़ों पर घर से खेतों के मार्ग का रास्ता बतियाते तय करते हैं . ऐसे ही एक विशेष जाति का किसान अपनी
धुन में अपने ऊंट छकड़े पर दौड़ता जा रहा था कि उसके गाँव के ही एक दूसरे व्यक्ति ने आवाज़ देकर उसे भी साथ ले चलने को कहा . किसान ने उस व्यक्ति से उसकी जाति पूछी और हमजात होने पर उसे अपने साथ ले चलने को राजी हुआ .
हां तो तुम भी ....हो , इसलिए ही मैंने तुम्हे अपने छकड़े पर बैठा लिया . फलाना जाति के होते तो मैं कभी अपने छकड़े पर तुम्हे जगह नहीं देता . वे लोग तो बिलकुल मित्रता के योग्य नहीं होते हैं .
हां तो तुम भी ....हो , इसलिए ही मैंने तुम्हे अपने छकड़े पर बैठा लिया . फलाना जाति के होते तो मैं कभी अपने छकड़े पर तुम्हे जगह नहीं देता . वे लोग तो बिलकुल मित्रता के योग्य नहीं होते हैं .
कहते तो तुम ठीक हो . मेरा भी अनुभव कुछ ऐसा ही रहा है . इन लोगों को तो कभी मित्र बनाना ही नहीं चाहिए . बुरे समय में कभी साथ नहीं निभाते . बोलो ऐसे भी कोई मित्र होते हैं !
अच्छा तुम्हारे साथ भी यही हुआ , क्या किस्सा है ,बताना तो !
अरे होना क्या है . मेरा भी एक ....मित्र था . दांत कटी दोस्ती थी हमारे बीच . साथ उठना- बैठना , खाना -पीना , खेतों पर काम करना , सब कार्य साथ ही करते थे . सब अच्छा चल रहा था मगर एक दिन मेरे सर पर आफत आ गयी . मैंने जब अपने उस मित्र को मदद करने को कहा तो साफ़ मुकर गाया ...
ऐसी क्या मुसीबत आ गयी थी !
पिछली फसल के समय हम ऐसे ही अपने छकड़े पर अपने परिवार के साथ खेतों पर जा रहे थे . रास्ते में प्यास लगी तो देखा कि पानी भरा देवरा तो घर ही भूल आये थे . राह में ही मीठे पानी का कुआं दिख गया तो सोचा यही से पानी भर ले चले . मैंने मित्र से कहा तो तुरन्त मान गया वह भी . हालाँकि उसके पास भी थोड़ा पानी तो भरा हुआ था . रास्ता कंकड़ पत्थरों के साथ बेर की झाड़ियों के काँटों से भी भरा था . हम दोनों मित्र अपनी पत्नियों के साथ कुएं की ओर बढे . मेरी पत्नी की चप्पल टूट गयी थी मैंने अपने मित्र से कहा कि अपनी पत्नी की चप्पल दे दे मेरी पत्नी को . बेचारी कैसे चल पाएगी . मित्र की पत्नी ने अपनी एक चप्पल उतार कर दे दी!
बोलो !ये क्या बात हुई . दोनों चप्पल दे देती तो क्या बिगड़ता ?
बेचारी मेरी पत्नी सिर्फ एक चप्पल से कैसे चल पाती . गुस्से का घूँट पीकर मैं उस समय चुप ही रहा . कुँए की पाल पर पहुंचे तो देखा कि बाल्टी में रस्सी छोटी पड़ रही थी . बाल्टी कुएं में डूबती नहीं थी . कैसे पानी भर पाते!
बोलो !ये क्या बात हुई . दोनों चप्पल दे देती तो क्या बिगड़ता ?
बेचारी मेरी पत्नी सिर्फ एक चप्पल से कैसे चल पाती . गुस्से का घूँट पीकर मैं उस समय चुप ही रहा . कुँए की पाल पर पहुंचे तो देखा कि बाल्टी में रस्सी छोटी पड़ रही थी . बाल्टी कुएं में डूबती नहीं थी . कैसे पानी भर पाते!
अब सुनसान बियाबान में जेवड़ी कहाँ से आती , मैं बोला मित्र से-- तेरे ऊंट की जेवड़ी निकाल कर ले आ . मित्र
भागा हुआ गया और ऊंट के नाक से बंधी नकेल का
आधा हिस्सा काट कर ले आया.
मैंने बोला कि तू पूरी रस्सी क्यों नहीं लाया तो कहने लगा कि आधी रस्सी से ऊंट को पेेेड़ड़ से बांध कर आया हूँ . कहीं इधर- उधर चला गया तो ?
मैंने बोला कि तू पूरी रस्सी क्यों नहीं लाया तो कहने लगा कि आधी रस्सी से ऊंट को पेेेड़ड़ से बांध कर आया हूँ . कहीं इधर- उधर चला गया तो ?
खैर, आधी जेवड़ी से जैसे- तैसे पानी निकाला , मगर मेरा मन खराब हो गया था ,
बोलो! ऐसा भी कोई मित्र होता है?
बोलो! ऐसा भी कोई मित्र होता है?
सही कहते हो भाई ऐसा भी कोई मित्र होता है ! मगर तुमने अपने ऊंट की नकेल क्यों नहीं निकाली ...
क्या कहते हो . और मेरा ऊंट कही इधर - उधर चला जाता तो ? मैं तो बर्बाद ही हो जाता !
सही कहते हो भाई , ये लोग मित्र बनाने के योग्य नहीं है. अब तुम सुनो मेरा किस्सा !!
पिछले बरस अच्छी कमाई हुई खेती में . बारिश सही समय पर
आई . अच्छी फसल हुई , अच्छी कीमत पर बिक भी गई तो सोचा के अबके बेटी का ब्याह ही
निपटा दिया जाए . सो अच्छा -सा खाते -पीते घर का लड़का देखा . शादी पक्की कर दी . लगन हुआ . सारी तैयारी करते शादी की तारीख भी आ गयी . मगर गलती ये हुई कि ननिहाल गयी बेटी को शादी के दिन समय से बुलवाने की बात ही भूल गया .
उधर बारात रवाना होने की खबर आई तो जल्दी से भाई को भेजा कि बेटी को लिवा लाये . अब इतनी दूर का मामला . आते तो समय लगता ही . उधर बरात रवाना हो चुकी थी . मैं अपने मित्र के पास गया कि एक दिन के लिए अपनी बेटी को मेरे घर भेज दे . हल्दी , तेल , मेहंदी , जयमाल तक की सारी रस्मे कर लेगी . तब तक मेरी बेटी आ जाएगी ननिहाल से . फिर उसका विवाह कर देंगे और तेरी बेटी तुझे वापस .
मेरा मित्र बोला कि हम इतने दिनों से अच्छे मित्र है . जैसी मेरी बेटी वैसी ही तेरी बेटी मगर ये तो आज तक नहीं हुआ कि तेल , हल्दी , मेहंदी किसी का हो , और विवाह किसी और का . यह नहीं हो सकता ...मुझे माफ़ कर दे .
उधर बारात रवाना होने की खबर आई तो जल्दी से भाई को भेजा कि बेटी को लिवा लाये . अब इतनी दूर का मामला . आते तो समय लगता ही . उधर बरात रवाना हो चुकी थी . मैं अपने मित्र के पास गया कि एक दिन के लिए अपनी बेटी को मेरे घर भेज दे . हल्दी , तेल , मेहंदी , जयमाल तक की सारी रस्मे कर लेगी . तब तक मेरी बेटी आ जाएगी ननिहाल से . फिर उसका विवाह कर देंगे और तेरी बेटी तुझे वापस .
मेरा मित्र बोला कि हम इतने दिनों से अच्छे मित्र है . जैसी मेरी बेटी वैसी ही तेरी बेटी मगर ये तो आज तक नहीं हुआ कि तेल , हल्दी , मेहंदी किसी का हो , और विवाह किसी और का . यह नहीं हो सकता ...मुझे माफ़ कर दे .
ओहो ! फिर क्या हुआ , क्या किया ?
क्या करता . मिट्टी की गुुड़िया रखकर सारे नेगचार किये . किस्मत अच्छी थी कि जयमाल के समय बेटी वापस आ गयी थी ननिहाल से . सो शादी तो सही ढंग से निपट गयी मगर मैंने इस मुसीबत की घड़ी में दोस्त को अच्छी तरह परख लिया . मैंने उससे दोस्ती ही तोड़ ली. ऐसा भी कोई मित्र होता है भला ?
सही कहते हो भाई . ऐसे लोगों को तो मित्र बनाना ही नहीं चाहिए ! ऐसा भी कोई मित्र होता है भला!
लोक कथा से प्रेरित ...
कहानी का मॉरल तो आप सब लिख ही देंगे :)
कहानी का मॉरल तो आप सब लिख ही देंगे :)
मित्र बनाना ही नहीं चाहिए .... lekin binaa mitra ke time-pass kyese hogaa ?
जवाब देंहटाएंगज़ब की कहानी! वाकई, दोस्ती का ज़माना ही नहीं रहा! :(
जवाब देंहटाएंसही में दोस्ती का जमाना नहीं रहा! :)
जवाब देंहटाएंबावजूद इसके दोस्तियाँ चल रही हैं और चौड़े से चल रही हैं और हाँ वो लडकी की अफवाह मेरे तक नहीं आयी -लोगों में यह प्रचारित हो गया है न कि मैं एक नारी विद्वेषी हूँ - :-(
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक एवं दिलचस्प कथा ! दोस्ती के नाम पर दोस्त का इस तरह दोहन करने की मंशा हो और उस पर ही दोष भी मढ़ा जाये तो भला कैसे दोस्ती निभेगी ! आनंद आ गया कथा पढ़ कर !
जवाब देंहटाएंमित्र हो या शुभचिंतक , या समाज का कोई शक्स - न अफवाह फैलानी चाहिए , ना ही ध्यान देना चाहिए और बन्दर बाँट तो बिल्कुल नहीं .... यूँ मित्रता की परिभाषा बिल्कुल अलग है - जहाँ सांच को आँच नहीं . विश्वास हो तो मंथन भी नहीं होता , ना ही उस पर कोई चर्चा !!!
जवाब देंहटाएंवैसे आभासी दुनिया में भी विश्वास है ... खासकर मुझे . और जहाँ है नहीं , वहाँ मैं विमुख ही रहती हूँ
सही में... ऐसे लोगो से तो दोस्ती बिलकुल भी नहीं करनी चाहिए...
जवाब देंहटाएंवैसे बेवक़ूफ़ से दोस्ती और अकल्मन्द से बैर हमेशा ही नुक्सान देता है...
हर तरह के लोग मिलते हैं..... रोचक किस्सा
जवाब देंहटाएंयह कैसा समय है? मेरे कौन मित्र हैं? यह कैसा स्थान है। इससे क्या लाभ है और क्या हानि? मैं कैसा हूं। ये बातें बार-बार सोचें (जब कोई काम हाथ में लें)। - नीतसार
जवाब देंहटाएंजो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, गलत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। -वेद
हटाएंशायद कुछ लोगों के लिए दोस्ती का मतलब यही है. वैसे अच्छे बुरे दोनों तरह के मित्र इस जगत में पाए जाते हैं सिर्फ अपनी अपनी किस्मत में कैसे मित्र मित्र लिखे हैं? इसी पर निर्भर लगता है सब खेल.:)
जवाब देंहटाएंरामराम.
रोचक लोक कथा ..... खुद मित्रता के लायक न हो कर दूसरे में ही दोष ढूँढे जाते हैं .....
जवाब देंहटाएंआजकल के मित्र ऐसे ही होते हैं . अब कृष्ण सुदामा जैसे मित्र कहाँ से आयेंगे जी !
जवाब देंहटाएंमित्र यदि दुश्मन बन जाए तो उससे खतरनाक कौन हो सकता है .
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा ... आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ ऐसे मित्रों से तो
बिना मित्र के रहना बेहतर ... :)
दुश्मन को दोस्त न बना सको तो कोई बात नहीं पर,
दोस्त को दुश्मन तुम भूले से बना मत लेना कभी ।
रोचक लोक कथा ... और सच भी ... अपने दोष कोई नहीं ढूँढता ...
जवाब देंहटाएंलोक कथा तो बहुत ही मजेदार है !
जवाब देंहटाएंकिन्तु ये बात भी याद रखिये की मित्र मित्र होता है आप मित्रता कर रहे है बुरे समय के लिए बिमा नहीं करा रहे है |
Samaaj ke aaine ki tarah hai ye kahaani.
जवाब देंहटाएं............
कितनी बदल रही है हिन्दी !
@मित्र यदि दुश्मन बन जाए तो उससे खतरनाक कौन हो सकता है ??
जवाब देंहटाएंहम्म..पते की बात है...:)
कहानी रोचक है...मित्र बने रहना है तो सारी अनचाही डिमांड पूरी करें नहीं तो फिर मित्र कैसा..
@मित्र यदि दुश्मन बन जाए तो उससे खतरनाक कौन हो सकता है ??
हटाएंएक्चुअली लिखना चाहती थी...सुनी...जानी..समझी..देखी..झेली.. बात :)
रोचक..
जवाब देंहटाएंमोरल ऑफ द स्टोरी कई बन सकते हैं, दो तो मैं ही सुझा देता हूँ -
जवाब देंहटाएं१. सफर पर जाते समय जूते चप्पल का एकाध एक्स्ट्रा जोड़ा रखना चाहिए|
२. बड़ी सी जेवड़ी हमेशा साथ रखनी चाहिए|
3- बेटियों का भी एक जोडा होना चाहिए ताकि मुसिबत के वक्त दोस्त के आगे हाथ न फैलाना पडे।
हटाएं:):)
हटाएं:) :)
हटाएंकल एक टीप लिखी पर नेट कनेक्शन ने अमित्रवत व्यवहार किया ! मित्रता नहीं होने का मतलब हमेशा शत्रुता हो जाना तो नहीं होता ,जैसा कि कई टिप्पणियों में उल्लेख किया गया है !
जवाब देंहटाएंइस मुद्दे पर मेरी भी कभी कभी असहमति हो जाती है, अपने ही घर में| साधारणत: लोग यही मानते हैं कि या तो मित्र नहीं तो दुश्मन| 'नो मैंस लैंड' भी तो कोई शै होती होगी:)
हटाएंस्वार्थ अंधता इतनी गहन हो गई है कि एक तरफा स्वार्थ स्वार्थ ही नहीं भासता।
जवाब देंहटाएंapne color ka mail kisi ko dikhayi nahi deta. is sach ko kritarth karti laghu katha.
जवाब देंहटाएंvaddiyan hai ji :)
जवाब देंहटाएंसही है ...
जवाब देंहटाएंकाफी समय से लिखा नहीं आपने ??
aaj fir padhi:) aaj fir majaa aaya :)
जवाब देंहटाएं:) :) :)
जवाब देंहटाएंहाँ बात-बात पर हाज़िरी देने वाले दोस्त इत्ता तो कर ही सकते हैं ... :-)
जवाब देंहटाएं