इन दिनों गणगौर त्यौहार की तैयारियां चरमोत्कर्ष पर है . आज सिंजारा है , सुहागिनें हाथों में मेहंदी रचाएंगी , झुण्ड के झुण्ड पनघट /बावड़ी /तालाब से गीत गाते जल कलश सर पर उठाये नजर आएँगी . नवविवाहिताओं के लिए ससुराल पक्ष से नए वस्त्र (चुन्दड़ी विशेष तौर पर ),गहने , घेवर , मेहंदी आदि उनके मायके पहुंचाए जायेंगे . विवाह के पहले वर्ष में सोलह दिन पूजी जाने वाली गणगौर लड़कियां अपने मायके में ही करती है , जहाँ ससुराल से सिंजारे के अवसर पर उनके लिए भेंट भेजी जाती है .
होली के दूसरे दिन यानी धुलंडी से प्रारम्भ होकर चैत्र कृष्णपक्ष की तृतीया तक इस उत्सव की छटा हर तरफ अपना रंग बिखेरे रखती है ..धुलंडी (रंग खेली जाने वाली होली ) के दिन होलिका दहन की राख लाकर इसकी आठ पिंडियाँ शिव और पार्वती के प्रतीक इसर और गणगौर को दूब , पुष्प , कुमकुम , मेहंदी , काजल , आदि अर्पण कर पूजा की जाती है . इस पर्व का पालन कुंवारी लड़ियाँ मनोवांछित वर के लिए तो विवाहित स्त्रियाँ अखंड सौभाग्यवती होने के लिए करती है .गणगौर के पूजन के लिए जल का प्रबंध करने प्रातः ही लड़कियों या महिलाओं के समूह गीत गाते घर से निकलते हैं , तथा पास में ही किसी कुएं , बावड़ी आदि से जल लेकर आते हैं , चूँकि आजकल कुएं बावड़ी आदि का अस्तित्व समाप्त सा है , इसलिए इसकी जिम्मेदारी सार्वजनिक नलों अथवा घरों पर होती है .
होली के दूसरे दिन यानी धुलंडी से प्रारम्भ होकर चैत्र कृष्णपक्ष की तृतीया तक इस उत्सव की छटा हर तरफ अपना रंग बिखेरे रखती है ..धुलंडी (रंग खेली जाने वाली होली ) के दिन होलिका दहन की राख लाकर इसकी आठ पिंडियाँ शिव और पार्वती के प्रतीक इसर और गणगौर को दूब , पुष्प , कुमकुम , मेहंदी , काजल , आदि अर्पण कर पूजा की जाती है . इस पर्व का पालन कुंवारी लड़ियाँ मनोवांछित वर के लिए तो विवाहित स्त्रियाँ अखंड सौभाग्यवती होने के लिए करती है .गणगौर के पूजन के लिए जल का प्रबंध करने प्रातः ही लड़कियों या महिलाओं के समूह गीत गाते घर से निकलते हैं , तथा पास में ही किसी कुएं , बावड़ी आदि से जल लेकर आते हैं , चूँकि आजकल कुएं बावड़ी आदि का अस्तित्व समाप्त सा है , इसलिए इसकी जिम्मेदारी सार्वजनिक नलों अथवा घरों पर होती है .
धुलंडी से शीतला अष्टमी तक राख की इन पिंडियों का विधिवत पूजन करने के पश्चात् मिटटी लाकर उसके गणगौर , इसर तथा अन्य प्रतीक बनाकर उनका नए वस्त्रों से श्रृंगार किया जाते हैं . सरकंडों पर गोटा लगाकर झूला सजाते हैं , जौ के जंवारे उगाये जाते हैं .
गणगौर के मध्य में मनाये जाने वाला शीतलाष्टमी पर्व राजस्थान का प्रमुख लोक पर्व है . इस दिन गर्दभ पर सवार माता शीतला का पूजन कर उन्हें एक दिन पहले बनाये गए खाने पीने की विभिन्न चीजों का भोग अर्पित किया जाता है . विभिन्न लोक पर्व किसी न किसी मान्यता से जुड़े होते हैं . यह पर्व भी इसी संक्रामक रोग की जनक शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए मनाया जाता है . शीतला जिसे चेचक भी कहते हैं ,इस मौसम में बड़े पैमाने पर फैलने वाला संक्रामक रोग होता था , हालाँकि आजकल टीकाकरण के कारण इन पर काबू पाया जा सका है , फिर भी यह रोग अन्य कई रूपों छोटी चेचक , खसरा आदि में फैलता ही है . इन संक्रामक रोगों से मुक्ति अथवा बचाए रखने हेतु माता शीतला से प्रार्थना की जाती है .
होली के बाद आने वाली छठ से अष्टमी के मध्य शुभ दिन देख कर शीतला माता को विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोग लगा कर यह पर्व मनाया जाता है . मक्के या बाजरी से बनाये जाने वाली राबड़ी और रोटी के मुख्य भोग के साथ मिटटी के नौ सिकोरे (कंडवारे )में नौ विभिन्न पकवान और एक करवा शीतल जल या कांजी भरकर माता को अर्पण किया जाता है .विवाह के पहले वर्ष में वर वधू के नाम से , तथा बच्चे के जन्म पर अतिरिक्त सिकोरे भरे जाते हैं .
राख की पिंडियों के स्थान पर मिटटी के इसर गणगौर बनाये जाते हैं , उनका वस्त्रादि , गहनों आदि से श्रृंगार होता है . ईसर गणगौर के प्रतीक के रूप में छोटी बालिकाओं को विभिन्न बाग़ बगीचों में ले जाकर सांकेतिक विवाह संपन्न किया जाता है .
शीतलाष्टमी से गणगौर तक के दिनों में इस पर्व की बहुत धूम होती है . लड़कियां , महिलाएं रोज प्रातः विभिन्न बाग़ बगीचों और कुएं बावड़ी से दूब , पुष्प , जल भर कर लाती है। आजकल बावडियों का अस्तित्व नहीं होने के कारण किसी के भी घर , किचन गार्डेन से जल , पुष्प आदि लाया जाता है . पूजन करने वाली स्त्रियाँ /लड़कियां बारी -बारी से गणगौर को जिमाने अपने घर बुलाती है . दीपक को चलनी से ढककर तथा गणगौर को चुनरी की आड़ में नगर भ्रमण भी करवाया जाता है .
चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पर्व का मुख्य उत्सव /पूजन हर्षोल्लास से संपन्न किया जाएगा . गणगौर को दूब , फूल आदि से पूजन करने के पश्चात भोग में मुख्य रूप से घेवर और गुणे अर्पित किये जायेंगे।
नवविवाहिताये पूजन के बाद अपने ससुराल पक्ष के लिए बयाने के रूप में वस्त्र , घेवर, गुणे आदि लेकर जायेंगी . सुबह बहुत उत्साह से पूजन की हुई गणगौर को शाम ढलते विदा करते हुए भारी मन से " म्हारो सोलह दिन को चलो रे ईसर ले चाल्यों गणगौर " गीत गाती उन्हें विसर्जित कर आएँगी . और त्योहारों उत्सवों का यह दौर सावन की तीज और फिर से अगली गणगौर का इतंजार करते करते थम- सा जाएगा . हालाँकि उत्सव प्रधान हमारे देश में नवरात्री की धूम यथावत रहेगी !
लोक परम्पराओं से समृद्ध करता उत्सवों का यह आता -जाता दौर जन समूह में उत्साह , उमंग भरता हमारी संस्कृति को जीवंत बनाये रखता है .
नवविवाहिताये पूजन के बाद अपने ससुराल पक्ष के लिए बयाने के रूप में वस्त्र , घेवर, गुणे आदि लेकर जायेंगी . सुबह बहुत उत्साह से पूजन की हुई गणगौर को शाम ढलते विदा करते हुए भारी मन से " म्हारो सोलह दिन को चलो रे ईसर ले चाल्यों गणगौर " गीत गाती उन्हें विसर्जित कर आएँगी . और त्योहारों उत्सवों का यह दौर सावन की तीज और फिर से अगली गणगौर का इतंजार करते करते थम- सा जाएगा . हालाँकि उत्सव प्रधान हमारे देश में नवरात्री की धूम यथावत रहेगी !
लोक परम्पराओं से समृद्ध करता उत्सवों का यह आता -जाता दौर जन समूह में उत्साह , उमंग भरता हमारी संस्कृति को जीवंत बनाये रखता है .
बचपन में गणगौर के गीत गाती लड़कियों को देखकर बड़ा अच्छा लगता था। गौर हे गणगौर माता, खोल किवाड़ी रे, यह गीत आज भी अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार वाणी ,इतने विस्तृत रूप से बताने और सहेजने योग्य पोस्ट के लिए ...
जवाब देंहटाएंतुम्हारे त्योहारों के वर्णन में तुम्हारी चंचल तिरोहित छवि परम्परा की सौगात लगती है ..... तस्वीरों ने प्रकृति को त्यौहार की ऊष्मा से भर दिया
जवाब देंहटाएंसांस्कृतिक राजस्थान की प्रचुर जानकारी आपके ब्लाग से मिलती है -आभार!
जवाब देंहटाएंबड़ी माता कभी कितनी दूरी में व्याप्त थी -हमें जौनपुर में भी चौकिया नामकी जगहं में इनका मंदिर है !
आज बड़ी माता के उन्मूलन के बाद भी अंध श्रद्धा के कारण यह माता जीवंत हैं -
कभी कभी अंधविश्वास और सांस्कृतिक सोच की विभाजन रेखा सचमुच बहुत क्षीण दिखती है !
बहुत सुंदर पोस्ट और चित्र....
जवाब देंहटाएंकई बार पूरे सोलह दिन गणगौर पूजने का सौभाग्य मिला है ....सच में एक अनूठा उत्सव है ये....
संग्रहनीय आलेख
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !!
बहुत सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंबढिया
सुन्दर तस्वीरों से सजी बहुत ही रोचक पोस्ट
जवाब देंहटाएंकई जानकारियाँ मिलीं...यहाँ मुंबई में भी सलमा सितारे की कढाई वाली चादर ओढ़े लडकिया/ औरतें मंदिर जातीं दिख जाती हैं .
.सार्थक जानकारी भरी पोस्ट. आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें नरेन्द्र से नारीन्द्र तक .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1
जवाब देंहटाएंरोचक लोकप्रथा, सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंबड़ा ही रोचक और खोबसूरत लग रहा है यह त्यौहार. और आप भी :)...
जवाब देंहटाएंसुन्दर तस्वीरें, जानकारी देती सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन गणगौर के बारे में
हटाएंबहुत अच्छा लगा गणगौर के बारे में जानकर । जवारों का अंकुरण हम् वैज्ञानिक रूप से भी जानते है कितु उन्हें देवी देवता बनाकर पूजना अलोकिक ख़ुशी दे जाता है और मानवीय संबंधो को और प्रेममय बना जाता है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन
गौरव को द्विगुणित करता गणगोर!!
जवाब देंहटाएंसहेजने योग्य पोस्ट!!
मनभावन!!
बड़ी खूबसूरत है, सबकुछ, खाना , पहनना और लिखना।
जवाब देंहटाएंईस्सर बाबा की जय
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंपधारें "आँसुओं के मोती"
राजस्थान की लोकसंस्कृति और गणगौर पूजा के बारे में विस्तृत जानकारी मिली .... सुंदर चित्रों से सुसज्जित अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत ही विस्तार से इस उत्सव की जानकारी ... सुन्दर चित्रों के साथ इस पूजा के बारे में लिखा है ...
जवाब देंहटाएंकरीब करीं हर प्रदेश में नव वर्ष के आगमन पे होने वाले त्यौहार आस्था ओर खुशियों के साथ जुड़े हैं ..
अत्यंत रोचक और सुन्दर | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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