शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

रोशनी है कि धुआँ … (5 )

सामान्य मध्यमवर्ग परिवार की तेजस्वी ने अवरोधों के बावजूद पत्रकारिता में रूचि बरकरार  रखते हुए मिडिया हाउस में अपना कार्य जारी रखा। शुरूआती गलतफहमी और संशय से  कार्य में व्यवधान भी कम नहीं रहे   ,  इन सबसे उबर कर तेजस्वी अब आगे बढ़ रही है  …… 

तेजस्वी के जादुई पिटारे नुमा बैग से कई चीजें निकलती जा रही थी , साडी , कुरता- पायजामा , कड़े , पर्स , सैंडिल , पत्रिकाएं।  साइड की पॉकेट से निकले प्लास्टिक के पाउच में मूंगफली के साथ  नमक , मिर्च, अमचूर , काला नमक का मिला जुला चूर्ण , एक और थैली में कुछ पेड़े भी थे , दूध को अच्छी तरह औंटा  कर बनाये , कुछ भूरे लाल से पेड़े भी।  

तुम्हे याद है  माँ ! उस गाँव के छोटे बस स्टैंड पर तुम जरुर ख़रीदा करती थी। 
हाँ , कैसे भूलूंगी।  रानी को भी बहुत पसंद थे , हॉस्टल जाते या लौटते अक्सर खरीद लेते थे।  आस पास की अन्य दुकानों से अलग बड़ी साफ़ सुथरी सी छोटी दूकान पर मूंगफली बेचता वह छोटा सा लड़का  जिसने कहा था , बहुत अच्छा पेड़ा है , तनी चख कर तो देखीं दीदी लोग , कही और से किनबे नहीं करेंगे। एक बार उसके कहने से लिए  हुए पेड़े हर बार की जरुरत हो गये थे और मूंगफली का साथ तो बस के सफ़र भर चलता रहता।

माँ की यह आदत शिक्षा पूरी होने से  , विवाह और उसके बाद बच्चों के बड़े होने तक भी बनी रही थी. उस बस स्टैंड से गुजरते तेजस्वी को याद आया था ।  वह जानती है माँ के भीतर बसी बैठी उस  लड़की को जिसे प्रसन्न करने के लिए बड़े महंगे तोहफों की जरुरत नहीं होती , और उसने शहर से खरीदी साडी , बैग , पुस्तकों के साथ इस गाँव  से पेड़े और मूंगफली भी खरीदी , खास नमक मिर्च के चूर्ण के साथ !

लगभग एक वर्ष बाद लौटी थी तेजस्वी अपने शहर। वायब्रेंट मीडिया  हॉउस अपना काम आगे बढ़ाते हुए विस्तारण प्रक्रिया में कुछ अन्य शहरों  में ऑफिस खोलना चाह्ती थी।  आलिया को जोनल हेड बना कर  भेजा जाना था।  आलिया को तेजस्वी की मनःस्थिति का आभास था इसलिए उसने उसे साथ काम करने का प्रस्ताव दिया।  माँ को  समझाना इतना आसान नहीं होता यदि वह स्वय उनका जन्मस्थान  नहीं  होता।  शहर से सटे हुए गाँव में ही उनका अपना घर था , माँ का घर , भाई -बहनों का घर , खेत खलिहान। शिक्षा के लिए गाँव से शहर पढ़ने आये भाई अब वहीँ सैटल हो गए थे। माँ को तसल्ली थी , मामा , मौसी , नानी का साथ रहेगा।
बीते एक वर्ष में वे भी उसके पास जाकर रह आयी थी , दो कमरों के उसके फ़्लैट में सब सामान जुटा कर।  भाई भाभी ने ऐतराज भी जताया कि क्या हमारे साथ नहीं रह सकती , इसका वजन हो जाएगा।  मगर व्यवहारकुशल माँ रिश्तों की बारीकियों से अनजान नहीं थी।  आखिर हार कर भाई ने अपने घर के पास ही एक फ़्लैट का एक हिस्से में उसके रहने का इतंजाम कर दिया।  माँ निश्चित थी , परिवार पास भी था और उनपर बोझ भी नहीं !
आलिया  के साथ तेजस्वी नए माहौल में कार्य करते हुए पुराने बुरे अनुभवों को भूल चुकी थी। शहर की विभिन्न समस्याओं और सामाजिक सरोकारों से जुड़े उसके कार्य और लेख उसकी पहचान बन गए थे। सरकारी हॉस्टलों में कामकाजी महिलाओं की परेशानियों ,  चाइल्ड शेल्टर में शोषण के शिकार नासमझ बच्चों  , सरकारी विद्यालयों में  शिक्षकों की अनुपस्थिति ,  मिड डे मील में घोटाले के साथ ही अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा किसी और को देकर अपने स्थान पर पढ़ाने   भेजने जैसी कई सनसनीखेज रिपोर्ट पेश कर उसने अपने नाम और पेशे दोनों का ही एक रुतबा हासिल कर लिया था।   घटनाओं और समस्याओं की तह तक जाकर उनका विश्लेषण और निष्पक्ष निर्भीक विचारों की गूँज उसके अपने शहर तक भी कम नहीं थी। नाम और सम्मान  ओज की वृद्धि करते ही हैं , आत्मविश्वास भी बढ़ जाता है , अब तेजस्वी पूर्णतः आत्मनिर्भर आत्मविश्वासी हो चली थी। उसके अपने शहर में उसकी  जरुरत को महसूस करते हुए प्रमोशन के साथ उसकी नियुक्ति हेड ऑफिस में कर दी गयी और अपने पुराने ऑफिस में कार्य सँभालने हेतु ही पुनः लौटी थी अपने ही शहर में। 

फ्लैट की सीढियाँ चढ़ते उतरते  एक बार फिर मिसेज  वालिया से टकराई।  बहुत प्यार से गले ही लगा लिया उन्होंने , कैसी हो , बहुत नाम कमा लिया है तुमने तो और सर पर हाथ फेरते हुए आशीर्वादों की झड़ी लगा दी।  थोड़ी हैरानी हुई तेजस्वी को क्योंकि अब उनकी आवाज़ में तंज़ नहीं था , चेहरे पर पहली सी चमक भी नहीं थी।  घर आना कहते हुए जल्दी ही विदा भी हो ली।

तेजस्वी ने उनके इस असामान्य व्यवहार की चर्चा माँ से की तो माँ भी कुछ उदास हो गयी ," परेशान  है पिछले कुछ समय से।  सीमा पीछले 6  महीने से मायके में ही है , शायद उसके ससुराल में कोई समस्या है।  खुल कर बताया नहीं उन्होंने और ज्यादा पूछना जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा लगता है , यही सोचकर ज्यादा जोर देकर पूछा भी नहीं। तुम चली जाना सीमा से मिलने , किसी से ज्यादा मिलती -जुलती नहीं।  हंसती खिलखिलाती लड़की बिलकुल मुरझा गयी है।  शायद तुम्हे कुछ बताये , तुमसे मिलकर अच्छा लगेगा उसे !

ओह ! हाँ , जरुर मिलूंगी सीमा से !
और जल्दी ही तेजस्वी को मौका भी मिल ही गया सीमा से मिलने का।  बिल्डिंग में गाडी पार्क करते सीमा नजर आ ही गई। बहुत थकी हुई लग  रही थी।
कैसी हो सीमा , तेजस्वी ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो चौंकते हुए उसका चेहरा पीला पड़ गया। 
अच्छी हूँ , तुम कैसी हो।  माँ ने बताया कि तुम वापस यही आ गयी हो , अच्छा लगा ! 
दोनों साथ सीढियाँ चढ़ते हुए बाते करती जाती थी।  
उसके फ्लैट की बालकनी में मिसेज वालिया ने भी देखा दोनों को।  तेजी से दरवाजे के पास आते तेजस्वी को भी भीतर बुलाने लगी ,"  आओ  बेटा ,  चाय पीकर जाना। थकी मांदी लौटी हो दोनों साथ। 
सीमा की समस्या भी जान लेने की मंशा से उसने कहा , ठीक है आंटी , आप बनाये चाय।  मैं माँ को बताकर आती हूँ !
वापस लौटने तक चाय तैयार थी। सीमा उसे अपने कमरे में  ले आई।  एक अजीब सी उदासी ,सन्नाटा पसरा था दोनों के बीच।  सीमा के तन पर कोई सुहाग चिन्ह भी नहीं था , बस चुप सी बैठी रही दोनों। 
ख़ामोशी तोड़ते हुए तेजस्वी ने ही बात प्रारम्भ की ,   क्या कर रही हो आजकल , कुछ कमजोर भी हो गयी हो। 
कुछ ख़ास नहीं , प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी  में लगी हूँ। अभी कोचिंग से ही आ रही थी। 
और कैसे है सब ससुराल में , हमारे जीजाजी , तुम्हारी  सास ? थोडा झिझकते हुए उसने पूछा। 

अच्छे ही होंगे ! एक गहरी स्वांस लेती हुई सीमा की आवाज जैसे गहरे कुएं से आई !
मैं पिछले छह महीने से यही हूँ !

क्यों ? सब ठीक तो है ,  ससुराल में पढ़ाई नहीं  हो पाती होगी।
कह तो दिया उसने , मगर साथ ही उसे स्मरण हुआ कि विवाह से पहले गदगद होते मिसेज वालिया ने बताया था कि   उसकी सास ने  कहा है कि बेटी जैसे मायके में पढ़ती है ,वैसी ही यहाँ भी रहेगी।  बेटे का साथ इसका भी टिफिन बना दिया करुँगी!

सीमा ने कुछ कहा नहीं।  एक फीकी - सी मुस्कान उसके चेहरे पर आकर तेजी से विलुप्त हो गयी।
कई बार मन की उथलपुथल को व्यक्त करने में शब्दों की आवश्यकता  नहीं होती।  बस किसी के साथ  यूँ ही खामोश गुजारे दो लम्हे  भी दुख को आधा बाँट लेते हैं। बल्कि कई बार दुःख की तीव्रता से घबराये लोग भाग निकलना चाहते हैं अपनों से , अपनों की आँखों में उठने वाले सवालों से और अपनों से बचते-बचाते अपने गमो का पिटारा किसी अजनबी के सामने खोल आते हैं।

तेजस्वी समझ सकती थी सीमा की मनःस्थिति को  , विश्वास की धरती के पैरों के नीचे  से खिसकने की पीड़ा को।  चोट खाया विस्मित मन छटपटाता है मन ही मन , हमसे गलती हुई कैसे किसी को समझने में।  उसने  सीमा का हाथ अपने हाथ में ले लिया  था। सीमा के सख्त  होते चेहरे पर कुछ बूँदें लुढक गयी आंसुओं की , जैसे चट्टान की ओट में  रुका हुआ कोई सोता फूट पड़ने को तैयार हो।


क्रमशः ... 

14 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी सोचती कुछ है,मिलता कुछ है - फिर ज़िन्दगी जीने लगती है "कुछ और"
    तेजस्विनी का यह भाग सीमा के अन्य रूपों से भी मिलाएगा, ऐसा विश्वास है

    जवाब देंहटाएं
  2. तेजस्वनी के माध्यम से सीमा जैसी लड़कियों की समस्याओं को उजागर किया जा रहा है । बहुत रोचक शैली में चल रही है कहानी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. कह भर देने और निभाने या करने का यह अंतर तकरीब हर आम लड़की के लिए देखा - जिया सा है .... ज़िन्दगी जाने कितने ही मोड़ लेती है......

    जवाब देंहटाएं
  4. भावनात्मक कहानी धीरे धीरे अपने ठिकाने की और बढती हुई ... अंत आते आते जैसे कुछ उथल पुथल होते होते रह गई ....
    अब क्रमशः का मुंह देख कर सोच रहा हूँ .. आगे क्या होने वाला है ...

    जवाब देंहटाएं
  5. अक्सर यही स्थिति होती है, बहुत ही सशक्त रूप से लिखा आपने, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  6. कहानी में समयानुसार समाचारों की जानकारी साफ़ झलकती है जो कहानी को और यथार्थवादी बना रही है.
    अब तेजस्वी को एक कहानी और मिल गई सीमा ... देखते हैं आगे क्या है :)

    जवाब देंहटाएं
  7. रोचकता के साथ आगे बढ़ती कहानी में विराम .....
    प्रतीक्षा के साथ बेहतरीन लेखन के लिये
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सधी हुई कहानी सीमा के माध्यम से आज के वैवाहिक जुड़ते टूटते रिश्तो को समेटती सशक्त कहानी।

    जवाब देंहटाएं