पिछले दिनों पड़ोस में कुछ निर्माण कार्य (कंस्ट्रक्शन वर्क) चल रहा था. बेटी ने ध्यान दिया कि एक मजदूर दिन भर तगारी में भरकर ईंटे, रोड़ी और बजरी तीसरी मंजिल तक पहुँचाता रहा.
इनके पैर नहीं दुखते क्या मम्मी- सवाल को अनदेखा नहीं किया जा सकता था.
दुखते तो होंगे ही . कुछ तो आदतन मजबूत हो जाते हैं. और फिर शायद इसलिए ये नशे के गुलाम होते हैं . दर्द से बचने के लिए नशा कर सो जाते हैं.
मुझे भी यही लगा कि क्रेन की सुविधा से सारा सामान एक साथ उपर पहुँचा देना चाहिए था. पर देखा कि इनका ठेकेदार( कॉंट्रेक्टर ) भी उनके साथ ही काम में लगा हुआ था. उसे देखते हुए मैंने सोचा कि वह क्रेन का खर्च कैसे 'अफोर्ड' (सहन) करेगा. आखिर इसका हल क्या होगा!
और तभी ध्यान आया कि इन लोगों के अधिकार की बातें करने वाले आरामदायक वातानुकूलित घरों/दफ्तरों में सिर्फ चिंता जताते ही (कभी जीवन में करनी/ फावड़ा न पकड़ते भी ) अपना बैंक बैलेंस कैसे बढ़ाते चलते हैं.
वैसा ही तो कुछ किसानों की चिंता करते लोगों के साथ हो रहा. सचमुच का किसान खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करते अन्न उपजाने में लगा है ताकि उनके अधिकारों के लिए लड़ने वाले ट्रैक्टरों सहित लालकिले पर चढ़ लें.
हमको भी लगता है देश/समाज की चिंता करते हम भी किसी दिन कोई राजनैतिक पद प्राप्त कर लेंगे पर इतना सारा दिखावा कर पायेंगे तब न. जैसे कि चिंता करते करते ही दिल्ली की सत्ता प्राप्त कर ली.
चलो चिंता करें!
जो कर रहा, उसके पास चिंतित होने का समय भी कहाँ । चिता में तो तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग होता है, किसने शब्दों में महारथ हासिल की, गलत को सही,सही को गलत ठहराया इसकी छानबीन चलती है ...
जवाब देंहटाएंफेसबुक और साहित्य जगत को दो हिस्सों में बँटते देख रहे हैं
जवाब देंहटाएंतटस्थ लोग बीच की खाई में गिर पड़े हैं।
जो जिधर से हाथ मिले उधर ही खिंचा चला जा रहा है... मौलिक चिंतन बचा है अब?
बेहद सामयिक और महत्त्वपूर्ण विषय उठाया है। दुनिया हमेशा इसी तरह शोषक और शोषित में बँटी रही है।
जवाब देंहटाएंसही कहा कि चिंता करते करते दिल्ली की सत्ता हथिया ली । चिंता कर रहे जो किसानों की वो असल में अपनी चिंता कर रहे । यूँ चिंता करने में उनका जा भी क्या रहा ?
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
असली किसान तो मेरे जैसे है जो बस हाथ मल रहे है।
जवाब देंहटाएंसच में , मै भी सोचती हूं कई जगह कुछ आंदोलन जैसा करने की पर घरबार में समय ही नहीं मिल पाता , 😭
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सामयिक।
जवाब देंहटाएंचिंता से रोटियां सेंकी जाती है तो फिर कौन जमीनी हकीकत में जाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कहती लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर!!!
जवाब देंहटाएंपेट की चिंता करने वाले कहाँ इतना सब कुछ कर पाते हैं ...
जवाब देंहटाएंसब का अपना अपना मकसद है ...