किसीने भी अगर मेरे शो पर अंगुली उठाई तो मैं अंगुली तोड़कर हाथ में दे दूंगी ...
बाप रे ...
कल जब राखी सावंत किसी समाचार चैनल पर गरज गरज का बरस रही थी ...हमारी सांसें ऊपर नीचे होती रही ...अभी परसों ही तो सिद्धार्थ जोशी के ब्लॉग दिमाग की हलचल पर उनकी प्रविष्टि लड़का ही क्यों पर टिपण्णी करते हुए राखी सावंत को याद किया था । राखी की कठोर और भयानक मुद्रा से हमारी चेतना शिथिल होने ही वाली ही थी कि स्थिति को भाँपते हुए चैनल बदल दिया गया ।
दिमाग की हलचल में हलचल मची थी लता मंगेशकर के साक्षात्कार के उस अंश को लेकर जिसमे लताजी ने अपनी एक मासूम सी इच्छा व्यक्त कर दी थी ..." मैं अगले जन्म में लड़का होकर जन्म लेना चाहती हूँ "....
हमारे पित्रसत्तात्मक समाज में किसी भी लड़की या महिला द्वारा इस तरह की इच्छा व्यक्त करना कोई अनहोनी नही है ...विशेषकर अपनी परम्पराओं की सलीब ढोते रुढिवादी मध्यमवर्गीय परिवारों में ...
इस प्रविष्टि पर मेरी टिपण्णी इस प्रकार थी ...
लताजी की यह इच्छा समाज में लड़कियों को लेकर बनी सोच को प्रतिबिंबित करती है ...लताजी के ऐसा चाहने के पीछे उनका सादगी और निश्छल व्यक्तित्व रहा है ...पर मैं सोचती हूँ की क्या मल्लिका शेरावत और राखी सावंत भी ऐसा ही सोचती होंगी ...जिन्होंने लड़की होने के कारण ही पैसा और शोहरत (?) पाई है ...या फिर क्या वे लड़किया भी यही सोचती होंगी जो सिर्फ अपनी आरामतलबी और स्वार्थ के चलते ससुराल वालों को झूठे मकदमे दर्ज करवा कर उन्हें भय से ग्रस्त अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर करती हैं ...
बहुत विरोधाभास है लड़कियों को लेकर ..
एक तरफ़ लता जी हैं जिन्होंने कम उम्र में अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए अपने मासूम सपनों की बलि चढाते हुए अपना जीवन अपने कार्य और अपनी कला को समर्पित कर दिया ...और जहाँ तक मेरी जानकारी है ...लताजी ने आज तक किसी सार्वजनिक मंच पर अपनी इस मज़बूरी , जिम्मेदारी या तकलीफ का जिक्र तक भी नही किया ....
एक तरफ़ राखी सावंत है ...रो रो कर अपनी मजबूरियों का बखान करते हुए कम उम्र में तकलीफें सह कर अपना एक मुकाम (?) हासिल कर ...परिवार को गौण समझते हुए नाम दाम कमाने की अपनी उपलब्धियों पर फूली नही समाती हैं । मैं यहाँ राखी की कला को कम नही आंक रही हूँ ...और यह भी सच ही होगा उसके भीतर भरे इस विद्रोह की अग्नि भी इस समाज की ही देन रही हो ...
दोनों ही स्त्रियाँ हैं ...किसी की बेटी ....किसी की बहन ....मगर दोनों का जीवन जीने का अंदाज कितना अलहदा है ...(लताजी ...मुझे माफ़ करें ... परिस्थिति विशेष में मैं आपकी तुलना ऐसी लड़की से कर रही हूँ जो आपकी चरणों की धूल बनने के काबिल भी नही है )
अभी किसी अखबार पर चर्चा में पढ़ा ...लगभग सभी ने एक सुर में सुर मिलते हुए यह कहा ..." लताजी ने जिस समय जिन परिस्थितियों में जिम्मेदारी वहन की ...जिसने उन्हें अगला जन्म बेटा बनकर लेने की इच्छा जगाई .... उस समय से आज परिस्थितियां बहुत बदल गयी हैं ...आज लड़कियां अपने आप से संतुष्ट हैं....ज्यादातर लड़कियों का कहना था कि वे अगला जन्म बेटी बन कर ही लेना चाहती हैं " ...
हाँ ...सचमुच वक़्त बदला है ...लड़कियां भी बदली हैं ...आज लताजी जैसा आदर्श जीवन जीना बहुत कठिन हो गया है ...मगर ये हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है कि वक़्त बदला है सिर्फ़ उन लड़कियों के लिए जो अपने नाम दाम और शोहरत के लिए अपने परिवार को हाशिये पर रखना पसंद करती हैं ....
उन मध्यमवर्गीय परिवारों में लड़कियों या महिलाओं के लिए समय इतना नही बदला ...जिन परिवारों की स्त्रियाँ या लड़किया अपनी महत्वाकान्क्षाओं की वेदी पर अपने परिवार की बलि नही चढाना चाहती ...राह उनके लिए आज भी बहुत दुष्कर है ...उन्हें समाज और अपने परिवार के बीच अपने आप को स्थापित करने के लिए रोज एक नया संघर्ष करना पड़ता है ...मौन रह कर ...चुपचाप .....पर उस तप और संघर्ष से बनी अपनी पहचान से मिली संतुष्टि को क्या राखी सावंत जैसी लड़की कभी समझ पायेगी ...??
हमारे समाज में बेटियों को लेकर मेरे भीतर यह विरोधाभास है ...
यही है मेरे दिल और दिमाग की रस्साकशी ....
अपने सुझाव और विचार व्यक्त कर इस रस्साकशी से उबरने में आप मेरी मदद करेंगे ...!!
***************************************************************************************
बाप रे ...
कल जब राखी सावंत किसी समाचार चैनल पर गरज गरज का बरस रही थी ...हमारी सांसें ऊपर नीचे होती रही ...अभी परसों ही तो सिद्धार्थ जोशी के ब्लॉग दिमाग की हलचल पर उनकी प्रविष्टि लड़का ही क्यों पर टिपण्णी करते हुए राखी सावंत को याद किया था । राखी की कठोर और भयानक मुद्रा से हमारी चेतना शिथिल होने ही वाली ही थी कि स्थिति को भाँपते हुए चैनल बदल दिया गया ।
दिमाग की हलचल में हलचल मची थी लता मंगेशकर के साक्षात्कार के उस अंश को लेकर जिसमे लताजी ने अपनी एक मासूम सी इच्छा व्यक्त कर दी थी ..." मैं अगले जन्म में लड़का होकर जन्म लेना चाहती हूँ "....
हमारे पित्रसत्तात्मक समाज में किसी भी लड़की या महिला द्वारा इस तरह की इच्छा व्यक्त करना कोई अनहोनी नही है ...विशेषकर अपनी परम्पराओं की सलीब ढोते रुढिवादी मध्यमवर्गीय परिवारों में ...
इस प्रविष्टि पर मेरी टिपण्णी इस प्रकार थी ...
लताजी की यह इच्छा समाज में लड़कियों को लेकर बनी सोच को प्रतिबिंबित करती है ...लताजी के ऐसा चाहने के पीछे उनका सादगी और निश्छल व्यक्तित्व रहा है ...पर मैं सोचती हूँ की क्या मल्लिका शेरावत और राखी सावंत भी ऐसा ही सोचती होंगी ...जिन्होंने लड़की होने के कारण ही पैसा और शोहरत (?) पाई है ...या फिर क्या वे लड़किया भी यही सोचती होंगी जो सिर्फ अपनी आरामतलबी और स्वार्थ के चलते ससुराल वालों को झूठे मकदमे दर्ज करवा कर उन्हें भय से ग्रस्त अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर करती हैं ...
बहुत विरोधाभास है लड़कियों को लेकर ..
एक तरफ़ लता जी हैं जिन्होंने कम उम्र में अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए अपने मासूम सपनों की बलि चढाते हुए अपना जीवन अपने कार्य और अपनी कला को समर्पित कर दिया ...और जहाँ तक मेरी जानकारी है ...लताजी ने आज तक किसी सार्वजनिक मंच पर अपनी इस मज़बूरी , जिम्मेदारी या तकलीफ का जिक्र तक भी नही किया ....
एक तरफ़ राखी सावंत है ...रो रो कर अपनी मजबूरियों का बखान करते हुए कम उम्र में तकलीफें सह कर अपना एक मुकाम (?) हासिल कर ...परिवार को गौण समझते हुए नाम दाम कमाने की अपनी उपलब्धियों पर फूली नही समाती हैं । मैं यहाँ राखी की कला को कम नही आंक रही हूँ ...और यह भी सच ही होगा उसके भीतर भरे इस विद्रोह की अग्नि भी इस समाज की ही देन रही हो ...
दोनों ही स्त्रियाँ हैं ...किसी की बेटी ....किसी की बहन ....मगर दोनों का जीवन जीने का अंदाज कितना अलहदा है ...(लताजी ...मुझे माफ़ करें ... परिस्थिति विशेष में मैं आपकी तुलना ऐसी लड़की से कर रही हूँ जो आपकी चरणों की धूल बनने के काबिल भी नही है )
अभी किसी अखबार पर चर्चा में पढ़ा ...लगभग सभी ने एक सुर में सुर मिलते हुए यह कहा ..." लताजी ने जिस समय जिन परिस्थितियों में जिम्मेदारी वहन की ...जिसने उन्हें अगला जन्म बेटा बनकर लेने की इच्छा जगाई .... उस समय से आज परिस्थितियां बहुत बदल गयी हैं ...आज लड़कियां अपने आप से संतुष्ट हैं....ज्यादातर लड़कियों का कहना था कि वे अगला जन्म बेटी बन कर ही लेना चाहती हैं " ...
हाँ ...सचमुच वक़्त बदला है ...लड़कियां भी बदली हैं ...आज लताजी जैसा आदर्श जीवन जीना बहुत कठिन हो गया है ...मगर ये हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है कि वक़्त बदला है सिर्फ़ उन लड़कियों के लिए जो अपने नाम दाम और शोहरत के लिए अपने परिवार को हाशिये पर रखना पसंद करती हैं ....
उन मध्यमवर्गीय परिवारों में लड़कियों या महिलाओं के लिए समय इतना नही बदला ...जिन परिवारों की स्त्रियाँ या लड़किया अपनी महत्वाकान्क्षाओं की वेदी पर अपने परिवार की बलि नही चढाना चाहती ...राह उनके लिए आज भी बहुत दुष्कर है ...उन्हें समाज और अपने परिवार के बीच अपने आप को स्थापित करने के लिए रोज एक नया संघर्ष करना पड़ता है ...मौन रह कर ...चुपचाप .....पर उस तप और संघर्ष से बनी अपनी पहचान से मिली संतुष्टि को क्या राखी सावंत जैसी लड़की कभी समझ पायेगी ...??
हमारे समाज में बेटियों को लेकर मेरे भीतर यह विरोधाभास है ...
यही है मेरे दिल और दिमाग की रस्साकशी ....
अपने सुझाव और विचार व्यक्त कर इस रस्साकशी से उबरने में आप मेरी मदद करेंगे ...!!
***************************************************************************************
Di........... Gud morning........ bahut achche vichaar hain...... yeh aapne sahi likha hai ki hamaare samaajmein mein ladkiyon ko lekar kai virodhaabhaas hain.......
जवाब देंहटाएंशायद यही रस्साकस्सी हर दिमाग मे होगी?
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाणी जी बहुत सत्य बात कही। जिसने लडाकी होने का त्रास सहा हो वो क्या इतनी इच्छा bही जाहिर नहीं कर सकती कि अगले जन्म मे लडका हो। फिर कहने और करने मे अन्तर है आज समाज मे लडकी और लडकी वालोम की हालत देखें तो समझ मे आयेगा कि कोई इस तरह की चाह क्यों करता है। बुडाआपे मे लडकी के मा बाओ का क्या हाल होता है और उस समय लडकी क्या महसूस करती है वो जरूर चाहेगी कि अगले जन्म वो लडका बने। लोग चंद उन लडकियों का उदहारण देते हैं जो समाज की परवाह न कर आगे बढ जाती हैं । बहुत सुन्दर और सशक्त आलेख के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंbahut acche hai vichar !
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज
वक्त की हवा है।
जवाब देंहटाएंजो नहीं बदल रहा उसको अब बदलना होगा .संघर्ष तो है अभी और विरोधाभास भी ..पर एक उम्मीद भी है
जवाब देंहटाएंक्या राखी के पास दिमाग है, जो वह यह सब समझने का प्रयत्न करे।
जवाब देंहटाएंThink Scientific Act Scientific
waah vani ji, humsabke mann ki bhandaas nikaal di,maine apne bachchon ko padhkar sunaya...sabko bahut rochak laga.....
जवाब देंहटाएंishwar hain lata ji.....rakhi to mahishasur hai......prabhu meri ungli salamat rakhen
बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने, आप ने नारी के दो रुप रखे, एक पुजने लायक तो दुसरी....
जवाब देंहटाएंयानि हर इंसान अपने कर्मो से ही पहचाना जाता है, धन्य है लता जी,
ओर आप का भी धन्यवाद
exactly sahi kaha aapne...aur sabhi tippanikartaon ne bhi... par ham sar dhunne se adhik kuchh nahin kar sakte !
जवाब देंहटाएंhai na ?
:)
आपने तो राखी का नाम लेकर पोस्ट को धन्य कर दिया।
जवाब देंहटाएंऐसा लगता है जैसे कि
सुलेख सुलेख पर बोतल से स्याही बिखर गई हो।
वाणी जी
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा लिखा है हम भी जब छोटे थे हमे भी खवाहिश थी लड़का बनने कि |लताजी ने किन संदर्भो में ये बात कही होगी?वो एक अलग चर्चा का विषय है |
लडकिया आज बहुत अच्छे मुकाम पर पहुंची है पर सच ये भी है कि उनका प्रतिशत कितना है ?कसबे में गावो में शहरों कि निम्न वर्ग कि बस्तियों में आज भी लड़कियों कि हालत में कोई खास परिवर्तन नही आया है सिर्फ रहन सहन को छोड़कर |हाँ और लताजी जैसा मुकाम सबको हासिल नहीं होता |राखी सावंत ने सघर्ष किया भी होगा तो तो उसको भुनाने का अवसर छोड़ा नही |
राखी सावंत जी का एक्सक्लूसिव इन्तेर्वियु सिर्फ मेरे पास है ....मेरे ब्लॉग में तशरीफ़ लाइये
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति, बधाई
जवाब देंहटाएंvery rightly said,no comparison between the two ,one is a life time legend and another one is a complete hypocrate.
जवाब देंहटाएंWe are with you.
thankfully ,
Dr.Bhoopendra
दो पीढ़ीयों की स्त्रियों के द्वन्द्व को आपने बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है । संघर्ष राखी सावंत और लता मंगेशकर दोनो का ही है लेकिन समय का बहुत बड़ा अंतर यहाँ है । हमारी मान्यतायें इसी से बनती हैं । राखी से कम उम्र की भी करोड़ो स्त्रिया होंगी जो सोचती होंगी "अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो " लेकिन इस सबके लिये ज़िम्मेदार कौन है इस बात पर सोचना ज़रूरी है ।
जवाब देंहटाएंवाणी जी,
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो मैं आपकी लेखन कला को सलाम करती हूँ...आपके आलेखों में भाषा की पकड़ देखने लायक होती है तो पाठकों को हिलने तक नहीं देती.....बधाई आपको....
अब आते हैं आपके आज के लेख के कंटेंट पर.....लता जी और राखी सावंत ..सुनकर ही लगा नदी के दो किनारे....है लेकिन नदी के किनारे.....अगर लता जी ने यह कहा है की वो अगले जन्म में लड़का बनना चाहती हैं तो आप सोच सकती हैं की आम घरों की लडकियां क्या सोचती होंगी क्यूंकि लता जी ने अगर संघर्ष किया है तो ऐसा भी समय देखा है जब हिंदी फिल्म जगत में उनका वर्चस्व रहा है......राखी सावंत से अगर पुछा जाए तो शायद वो भी यही कहेगी की अगले जन्म में लड़का बनूँ ....ये अलग बात है की ये गुण उनमें अभी भी प्रचूर मात्रा में है.....और भगवान् जी को ज्यादा म्हणत नहीं करनी पड़ेगी इस मॉडल पर.....वर्ना अपने बॉय फ्रेंड को सरे-आम थप्पड़ पे थप्पड़ मारने का काम राखी को छोड़ कर वाणी जी के 'भाई' ही कर सकते हैं और कोई नहीं...
आपके दिमाग की ये रस्साकस्सी हम सब की है ...लेकिन गौर करने वाली बात यह है की आज की लड़की आजाद ख्याल और आजाद तो हो गयी है लेकिन उतनी ही असुरक्षित भी तो गोया के घूम फिर कर बात वही आ जाती है की हम अगले जनम लड़के ही बने और सबसे गिन-गिन कर बदला लें......
bahut sarthak post...
जवाब देंहटाएंइतना अच्छा और सार्थक लेख है की अब बधाई कहने के सिवाय और क्या कहें
जवाब देंहटाएं