ब्लॉग की नगरी मा कुछ हमारा भी हक़ होईबे करी ...काहे नही टिपियाएंगे??
अभी कुछ दिनों पहले चिट्ठाजगत के धड़ाधड़ टिप्पणियां कॉलम में अपनी बहुत सारी टिप्पणियों पर अपने ब्लॉग का पता देखा तो मारे डर के हालत खस्ता हो गयी ... ये कहाँ -कहाँ टिपिया आए हम ..इससे पहले कि कोई पलटकर हमसे पूछ ले कि आप कौन होती हैं इतनी टिप्पणियाँ करने वाली आख़िर गीत ,ग़ज़ल, तकनीक , राजनीति , सामाजिक मुद्दे आदि का आपको ज्ञान ही कितना है आप ठहरी "साधारण गृहिणी " . हम तो अपना स्पष्टीकरण पेश कर ही देते हैं।
शुरुआत तो पहले यही से कर लेते हैं कि आख़िर ब्लॉग है क्या ...इतने सारे ब्लॉग्स को पढ़ने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि ब्लॉग हमारी निजी डायरी का वह हिस्सा है जिसे हम सार्वजनिक करना चाहते हैं .. अपने आसपास चलने वाली गतिविधियों में ,सामाजिक दिनचर्या में जो भी रोचक, आश्चर्यजनक और ज्ञानवर्धक नज़र आता है उससे उपजे सवाल अथवा उन सवालों के जवाबों को दूसरों से साझा करने का ही तो एक अच्छा व सुलभ माध्यम।
अब डायरी में अपने विचारों को उतारने के लिए शब्द - संयोजन , वाक्य - विन्यास , अलंकार आदि की ज्यादा समझ और आवश्यकता नहीं होती है । इन परिस्थितियों के मद्देनजर अगर साहित्य कम लिखा जा रहा है तो ...कि फरक पैंदा है ? हालाँकि ब्लॉग लेखन में साहित्यकारों और तकनीकी विशषज्ञों की भी कोई कमी नहीं है . ऐसे में सामान्य रचनाकारों को सरल ,सहज भाषा में लिख लेने दीजिए ना ...जितना ज्यादा लिखेंगे कलम की धार ( कम्प्यूटर पर तो टाइपिंग की जाती है ना ..तो टाइपिंग ... नहीं नहीं अँगुलियों की धार पैनी होगी तो और कुछ नही तो सितार - गिटार जैसा कुछ बजा कर ही संतोष कर लेंगे !! ) उतनी ही पैनी होगी ।
“करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान "
जन्मजात प्रतिभावान विरले ही होते हैं । जिन्होंने लताजी के शुरुआती दौर के गाने सुने हैं जान सकते है कि उनके इस सुरीले गले के पीछे उनकी कितनी रियाज़ छुपी है । यदि गुलज़ारजी के गीत लेखन का सफर बीड़ी जलायिले से शुरू होकर हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू से गुजरता हुआ मोरा गोरा अंग लई ले की तरफ़ बढ़ता तो भी क्या उनकी रचनाधर्मिता पर सवाल उठाये जा सकते थे ??
और जब थोड़ा बहुत लिख लिया है तो अपनी रचना को सराहे जाने का का इन्तिज़ार लाजिमी है ..प्रत्येक रचनाकार को अपनी हर रचना प्रिय ही लगती है ...ठीक वैसे ही जैसे कितनी भी बेसुरी मां अगर अपने बच्चों को लोरी सुनाकर सुला रही हो तो किसी स्वरकोकिला से कम नही लगती । प्रशंसा पाने का आग्रह तो वाजिब है मगर दुराग्रह नहीं !!
अब आते हैं टिपियाने की ओर .. अब यह सवाल कि टिप्पणी कौन करे .. कौन न करे ..क्यों करे ..क्यों न करें ..तो एक बात बता दें कि लोकतंत्र में सबको अपनी अभिव्यक्ति का जितना अधिकार है उतना ही दूसरों की अभिव्यक्ति पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का भी है । इसमें दूसरों की गरिमा को ठेस न पहुंचे इसका ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए । रचनाकारों का हौसला बढ़ाने के लिए की गयी टिप्पणी पर उस विषय में पारंगत होना कोई आवश्यक नही है ।
अमिताभ जी की आवाज को रेडियो पर नकार दिए जाने के बावजूद वे कला जगत के जिस उच्चतम शिखर पर शोभायमान है. उसके पीछे कारण पत्र - पत्रिकाओं या अन्य दूसरे माध्यमों (टीवी ,इन्टरनेट आदि ) में कला मर्मज्ञों द्वारा लिखी या पढ़ी जाने वाली समीक्षाओं से ज्यादा प्रेरणा अपनी हाड़तोड़ मेहनत की कमाई का हिस्सा खर्च करने वाले कला से अनभिज्ञ मेहनतकशों की वाहवाही अथवा तालियों की गड़गड़ाहट है ...
तो लिक्खाड़ और टिप्पणीकार भाइयों और बहनों, घबराना नहीं डटे रहना ...हतोत्साहित करने वाली टिप्पणियों पर भी जश्न इस तरह मनाना कि...
“अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफिल में है !! "
तो अब आप हमारे लिखे पर लाल ताते होते रहें...हम तो अपना स्पष्टीकरण दे चुके ...इससे पहले कि कोई सवाल उठे !
चलते चलते विविधताओं से भरे इस देश में जन्म लेने पर थोड़ा गर्व भी महसूस कर लें ...कि ..जहाँ लैंग्वेज लर्न पर एक धेला भी खर्च करे बिना भी इतनी भाषाएँ या बोलिया सीख पाये ...और तो गर्व करने लायक इस देश में कुछ बचा नहीं है .....।
नेट पर ज्यादा समय नहीं दे पा रही हूँ ...इसलिए दूसरे ब्लॉग्स पर टिप्पणी नहीं कर पाने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ...यह लेख ब्लॉग लेखन की शुरुआत के कुछ समय बाद ही लिखा था ...थोड़ा सुधार कर दिया है ...झेल लीजिये ...!
अब डायरी में अपने विचारों को उतारने के लिए शब्द - संयोजन , वाक्य - विन्यास , अलंकार आदि की ज्यादा समझ और आवश्यकता नहीं होती है । इन परिस्थितियों के मद्देनजर अगर साहित्य कम लिखा जा रहा है तो ...कि फरक पैंदा है ? हालाँकि ब्लॉग लेखन में साहित्यकारों और तकनीकी विशषज्ञों की भी कोई कमी नहीं है . ऐसे में सामान्य रचनाकारों को सरल ,सहज भाषा में लिख लेने दीजिए ना ...जितना ज्यादा लिखेंगे कलम की धार ( कम्प्यूटर पर तो टाइपिंग की जाती है ना ..तो टाइपिंग ... नहीं नहीं अँगुलियों की धार पैनी होगी तो और कुछ नही तो सितार - गिटार जैसा कुछ बजा कर ही संतोष कर लेंगे !! ) उतनी ही पैनी होगी ।
“करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान "
जन्मजात प्रतिभावान विरले ही होते हैं । जिन्होंने लताजी के शुरुआती दौर के गाने सुने हैं जान सकते है कि उनके इस सुरीले गले के पीछे उनकी कितनी रियाज़ छुपी है । यदि गुलज़ारजी के गीत लेखन का सफर बीड़ी जलायिले से शुरू होकर हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू से गुजरता हुआ मोरा गोरा अंग लई ले की तरफ़ बढ़ता तो भी क्या उनकी रचनाधर्मिता पर सवाल उठाये जा सकते थे ??
और जब थोड़ा बहुत लिख लिया है तो अपनी रचना को सराहे जाने का का इन्तिज़ार लाजिमी है ..प्रत्येक रचनाकार को अपनी हर रचना प्रिय ही लगती है ...ठीक वैसे ही जैसे कितनी भी बेसुरी मां अगर अपने बच्चों को लोरी सुनाकर सुला रही हो तो किसी स्वरकोकिला से कम नही लगती । प्रशंसा पाने का आग्रह तो वाजिब है मगर दुराग्रह नहीं !!
अब आते हैं टिपियाने की ओर .. अब यह सवाल कि टिप्पणी कौन करे .. कौन न करे ..क्यों करे ..क्यों न करें ..तो एक बात बता दें कि लोकतंत्र में सबको अपनी अभिव्यक्ति का जितना अधिकार है उतना ही दूसरों की अभिव्यक्ति पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने का भी है । इसमें दूसरों की गरिमा को ठेस न पहुंचे इसका ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए । रचनाकारों का हौसला बढ़ाने के लिए की गयी टिप्पणी पर उस विषय में पारंगत होना कोई आवश्यक नही है ।
अमिताभ जी की आवाज को रेडियो पर नकार दिए जाने के बावजूद वे कला जगत के जिस उच्चतम शिखर पर शोभायमान है. उसके पीछे कारण पत्र - पत्रिकाओं या अन्य दूसरे माध्यमों (टीवी ,इन्टरनेट आदि ) में कला मर्मज्ञों द्वारा लिखी या पढ़ी जाने वाली समीक्षाओं से ज्यादा प्रेरणा अपनी हाड़तोड़ मेहनत की कमाई का हिस्सा खर्च करने वाले कला से अनभिज्ञ मेहनतकशों की वाहवाही अथवा तालियों की गड़गड़ाहट है ...
तो लिक्खाड़ और टिप्पणीकार भाइयों और बहनों, घबराना नहीं डटे रहना ...हतोत्साहित करने वाली टिप्पणियों पर भी जश्न इस तरह मनाना कि...
“अब तेरी हिम्मत का चर्चा गैर की महफिल में है !! "
तो अब आप हमारे लिखे पर लाल ताते होते रहें...हम तो अपना स्पष्टीकरण दे चुके ...इससे पहले कि कोई सवाल उठे !
चलते चलते विविधताओं से भरे इस देश में जन्म लेने पर थोड़ा गर्व भी महसूस कर लें ...कि ..जहाँ लैंग्वेज लर्न पर एक धेला भी खर्च करे बिना भी इतनी भाषाएँ या बोलिया सीख पाये ...और तो गर्व करने लायक इस देश में कुछ बचा नहीं है .....।
नेट पर ज्यादा समय नहीं दे पा रही हूँ ...इसलिए दूसरे ब्लॉग्स पर टिप्पणी नहीं कर पाने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ...यह लेख ब्लॉग लेखन की शुरुआत के कुछ समय बाद ही लिखा था ...थोड़ा सुधार कर दिया है ...झेल लीजिये ...!
धन्य हैं आप!
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" ब्लॉग की नगरिया मा हमरा भी कुछ हक होईबे करी "
केतन अच्छा तो लिखी हैं आप, वाणी जी...पर हमका ई बात समझ नहीं आया कि ई मुला 'स्पष्टीकरण' कौन मांगे रहा आपसे...तनी बताइये हमका...
आपकी आज की इस पोस्ट से उन सभी धुरंधर ब्लॉगरों के गुब्बारे से हवा निकल जानी चाहिये...जो हर समय वर्तनी की शुद्धता, सार्थकता व पोस्ट के विषय विशेष पर आधारित होने का मुददा उठाते रहते हैं...ब्लॉग तो सभी के लिये है भाई...यह जनतांत्रिक माध्यम है...इलीटिस्ट नहीं !
अपने ब्लॉग से यह टेक्स्ट सलेक्शन लॉक हटा दीजिये प्लीज... टिप्पणी देने के दौरान यदि आलेख के किसी अंश को उद्धृत करना चाहे तो यह संभव नहीं हो पाता है...और पुन: टाईप करना दुष्कर है।
आभार!
...
ग़जब! गुलज़ार पर व्यंग्य अच्छा लगा। अरे! व्यंग्य है भी? ;) मैं कोई स्पेशलिस्ट थोड़े हूँ। जो समझा टिपिया दिया। :)
जवाब देंहटाएंसिर खुजा रहा हूँ। कहीं इस लेख के पीछे मेरी कविता का शीर्षक तो नहीं?
@ प्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंमैं तो सुधर रहा हूँ जी! अब न टोकता हूँ और न मुद्दे उठाता हूँ।
धुरन्धर शब्द का अर्थ क्या है? :)
हमने इस आलेख को झेल ही नहीं लिया है अपितु झोली में डाल लिया है। बड़ा अच्छा लिखा है, कई बार हम अनावश्यक विवाद उत्पन्न करते हैं अरे ब्लागिंग तो सभी के लिए है, बस लिखो, पढ़ों और टिप्पणी करो। यहाँ आकर सारे ही विषयों पर टिप्पणी करने की कुव्वत आ जाती है। बहुत कुछ सीखने को मिलता है टिप्पणियों से ही।
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत मे गिने चुने लोग हैं जो पोस्ट पर कमेन्ट करते हैं पोस्ट के विषय को देख कर । यहाँ कमेन्ट किया जाता हैं लेखक को देखकर । कोई मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट करे ना करे इस से कोई फरक नहीं पड़ता मेरे कमेन्ट करने पर । जब भी मुझे कोई पोस्ट ऐसी लगती हैं जहां कमेन्ट करने से मुझे कुछ फरक पड़ता हैं , जी हाँ मुझे फरक पड़ता हैं मेरे कमेन्ट वहाँ होता हैं । पोस्ट के साथ साथ मै उस पोस्ट पर आये सब कमेन्ट भी पढ़ती हूँ और तब ही कमेन्ट देती हूँ । नाच , गाना , इत्यादि मेरी रूचि से बाहर के विषय हैं और मै कंप्यूटर पर कभी भी स्पीकर नहीं लगाती क्युकी गाना सुनना हैं तो और माध्यम हैं कंप्यूटर एक तकनिकी किताब हैं जिसका हर अध्याय नवीनतम जानकारियों से भरा हैं और ब्लॉग लिखना , पढना , टीपना उसी किताब का एक पेज मात्र हैं । मै कंप्यूटर को मनोरजन का स्रोत नहीं मानती हूँ और जीविका अर्जन और ज्ञान अर्जन तक ही सिमित हैं वो मेरे लिये । मनोरंजन के लिये कंप्यूटर से इतर भी दुनिया हैं और कमेन्ट से इतर भी ब्लोगिंग हैं । हाँ यहाँ लोग अपनी दोस्ती के मोह मे ना जाने कितनी बार मेरे खिलाफ कमेन्ट करते हैं । तथ्य को जाने बिना हजारो शब्दों का विष उगलते हैं केवल इस लिये क्युकी वो पोस्ट उनके परम मित्र ब्लॉगर कि हैं सो
जवाब देंहटाएंहक़ से मांगो प्रिय गोल्ड
कि तर्ज पर
हक़ से लो टिपण्णी बोल्ड
priya gold = प्रिय गोल्ड
जवाब देंहटाएंलगता है पूरा आराम मिला है, तभी तो अंदाज है - प्यार किया तो डरना क्या जैसा ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
ब्लॉग जगत में विषय समझ आये या न आये ..पर टिपियाने की समझ खूब आ जाती है ...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं@-प्यार किया तो डरना क्या जैसा ...
@-ब्लॉग जगत में विषय समझ आये या न आये ..पर टिपियाने की समझ खूब आ जाती है ...
@-हक़ से लो टिपण्णी बोल्ड ..
@-केतन अच्छा तो लिखी हैं आप, वाणी जी...पर हमका ई बात समझ नहीं आया कि ई मुला 'स्पष्टीकरण' कौन मांगे रहा आपसे...तनी बताइये हमका...
उपरोक्त सभी खूबसूरत टिप्पनिओं को अजित जी के झोले में डाला जाये और मेरे कंधे पे लटका समझा जाए। यानी उपरोक्त सभी टिप्पणियों से सहमत हूँ, इन्हें मेरी टिपण्णी भी मानी जाये।
..
Nice,
जवाब देंहटाएंहमने इस पोस्ट को दिल मे रख लिया है और खूब दिल खोल कर टिपिया रहे हैं । जिसे अच्छा न लगे वो टिप्पणी हटा दे। मगर हम स्पष्टीकरण नहीं देंगे। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
.
@ गिरिजेश राव जी,
धुरंधर का अर्थ...उन लोगों से, जो हरदम दूसरों को समझाइश देते रहते हैं पेज रैंक, सर्च रिजल्ट, भाषा की शुद्धता(???), अनुशासन, विषय का अभाव, अच्छी पोस्ट लिखने का तरीका आदि आदि के बारे में...
आप तो मेरे प्रिय लेखक-ब्लॉगर हैं...असली और खालिस ब्लॉगर...कर बद्ध निवेदन है कि आप न 'सुधरियेगा'... नहीं तो मैं आपको भी धुरंधरों में शुमार करने लगूंगा! :))
आभार!
...
मुझे तो लगता है की टिप्पणी से लोगों के विचार सोच ज्यादा पता चलता है क्योकि लोग हर विषय पर लिखते नहीं है पर हर विषय पर लिखी पोस्ट पर टिप्पणी करके छोटे में ही सही अपने विचार रख देते है | कई बार तो हम किसी को सिर्फ उनकी टिप्पणियों के कारण ही जानते है या उससे प्रभावित हो कर उनकी पोस्ट पर जाते है |
जवाब देंहटाएंbadhiya likha hai ..tippni jaruri hai blog jagat ke liye :)
जवाब देंहटाएंसच्ची और अच्छी पोस्ट...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत बढिया लिखा आपने………………ये भी जरूरी है।
जवाब देंहटाएंबहुत सच बयाँ करती पोस्ट।
जवाब देंहटाएंअरे... झेलना क्या....सही कहा है आपने...
जवाब देंहटाएंसही है, टिपिर टिपिर टिपियाते रहो ,सबके ब्लाग पे जाते रहो ।
जवाब देंहटाएंनाईस जी
जवाब देंहटाएंअति उत्तम, बिना हिम्मत छोडे टिप्पणी करके जा रहे हैं और करने आते रहेंगे.:) बहुत लाजवाब रही आज की पोस्ट, हिम्मत बंधाने के लिये शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बात सुन्दर कही और बढ़िया भी.. लेकिन वही बात मैं कहूँगा फिर कि स्पष्टीकरण क्यों?
जवाब देंहटाएं:) jhel lia ji ..aur aage bhi shauk se jhelenge :)
जवाब देंहटाएंइसमें कौन बड़ी बात है...हम तो हैं ही देवी झेलेश्वरी...
जवाब देंहटाएंहाँ नहीं तो..!!
झेलें??? बढ़िया तो है...
जवाब देंहटाएंटिप्पणी वालों की बड़ी पूछ है! बाकी तो मामला सब छूछ है !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंमहोदया, आप की पोस्ट पढ़ कर अतीव आनन्द प्राप्त होता भया,
आशा है कि टिप्पणी-श्रमिकों को उनके उचित अधिकारों को दिलाने में आप अवश्य सहायता करेंगी ।
घटिया से घटिया लिखने वाले भी उन्हें दोयम दर्ज़े पर रखते हैं, और उन्हें सदैव पोस्ट के नीचे रखा जाता रहा है, मानों कि वो टपरा-टाकीज़ के चवन्नी क्लास ब्लॉगर हों !
इसकी तीव्र भर्त्सना होनी चाहिये, साथ ही यह भी देखा जाना चाहिये कि कुछेक ब्लॉगर उन्हें बेगार का बँधुआ समझ बिना जामा तलाशी लिये अपने टिप्पणी-बक्से में प्रवेशाधिकार से वँचित रखते हैं ।
टिप्पणी बदनाम हुई स्पैमिंग तेरे लिये
मॉडरेशन सरे-आम हुई ओ टिप्पणी तेरे लिये
होऽ.., टिप्पणी झँडु-बाम हुईईई ओहः
टिप्पणी झँडु-बाम मॉडरेशन तेरे लिये
वैसे बात तो सही है ब्लॉग जगत में पोस्ट करने जितना ही अहम् टिपण्णी करना भी लगता है ....और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए हर कोई स्वतंत्र है ...दबंग बात कही लेकिन कही सही
जवाब देंहटाएंमैं अनुष्का .....नन्ही परी
बस लिखते रहे ऐसे ही ...
जवाब देंहटाएंगणेश चतुर्थी एवं ईद की बधाई
हमीरपुर की सुबह-कैसी हो्गी?
ब्लाग4वार्ता पर-पधारें
बहुत सही कहा
जवाब देंहटाएंगणेश चतुर्थी पर्व अवसर पर बधाई और शुभकामनाएं...
बहुत ज्ञान मिला यहां आकर।
जवाब देंहटाएंऊपर लिखी गई सभी टिप्पणियों से शत प्रतिशत सहमत और उन्हें भी मेरी ही टिप्पणी माने......
जवाब देंहटाएंवाह ! यह भी क्या तरीका है !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !