हमारे समाज में महिलाओं के लिए शारीरिक संबंधों पर बात करना या लिखना इतना आम नहीं है ...परिवारिक और सामाजिक मर्यादाओं में घिरे हम लोंग इस विषय पर चुप रहना ही पसंद करते हैं , मगर जिस तरह से इन मुद्दों को उछाल कर बहस का केंद्र बना लिया जाता है , विषयवस्तु यदि बच्चों और महिलाओं पर ही केन्द्रित हो और इसका असर महिलाओं और बच्चों के जीवन पर पड़ने की पूरी सम्भावना हो तो आम महिलाओं के लिए भी इसे बहुत देर तक नजरअंदाज करना संभव नहीं होता ....मन -मस्तिष्क को आंदोलित करता भीतर पल रहा आक्रोश बेचैन करता रहता है ...
पिछले दिनों ऐसे ही दो मुद्दों की आंच पर दिमाग सुलगता रहा ... पहला मुद्दा है महिला एवं बाल विकास आयोग द्वारा १२ वर्ष की उम्र के बच्चों को आपसी सहमति के आधार पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने की छूट देने का प्रावधान करते हुए क़ानून के निर्माण की वकालत का मसौदा राज्या सरकारों को भेजा जाना ....जहाँ अभी तक बाल यौन शोषण और बाल श्रम से जुड़े कानून का पालन ही एक मजाक बना हुआ है , वहां इस तरह के प्रस्ताव पर विचार करना भी कुंठित मानसिकता की ओर ही इशारा करता है ....ये हालत तब है जब कि खुद इस मंत्रालय (महिला एवं बाल विकास ) की रिपोर्ट बता रही है कि " देश का हर चौथा बच्चा यौन शोषण का शिकार हो रहा है " ....वही यूनिसेफ की यह रिपोर्ट भी कम नहीं दहलाती कि लगभग 65 प्रतिशत बच्चे शिक्षा केन्द्रों पर यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं जिनकी जिम्मेदारी स्वस्थ और अच्छे संस्कार की युवा पीढ़ी के निर्माण की है ...यह रिपोर्ट सिर्फ विद्यालयों में शिकार मासूमों की है , जबकि कच्ची बस्ती और विभिन्न रोजगारों में लगे बच्चों का प्रतिशत और भी अधिक होने की संभावना है .... इस मसौदे को तैयार करने वालों की बुद्धि पर तरस खाने के सिवा और क्या किया जा सकता है ...जहाँ महिलाओं से जुड़े शारीरिक प्रताड़ना के अधिकाँश केस अनसुलझे रह जाते हैं क्योंकि इसे साबित करने के लिए बहुत ही कष्टदायक मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है , वहां ऐसे अत्याचार झेलने वाले अबोध मासूम बच्चे क्या साबित कर पाएंगे कि उनके साथ ज्यादती उनकी आपसी सहमति के बिना हुई है .... बहुत स्पष्ट तौर पर यह कानून बाल पोर्नोग्राफी और उनके व्यापार को आड़ देने का कार्य करेगा ...सयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग १२ लाख बच्चे हर वर्ष खरीद फरोख्त के शिकार होते हैं जिनमे बहुत बड़ी संख्या भारत सहित अन्य एशियन देशों की है ....असीमित जनसँख्या , रोजगार की कमी , शिक्षा और संसाधनों का का अभाव ऐसे देशों में बाल शोषण की बढती संख्या पर लगाम नहीं कस पा रही और इस तरह के वाहियात कानूनों के मसौदे पेश कर उन्हें अंधे कुएं में धकेलने की पूरी तैयारी की जा रही है ....सबसे ज्यादा निराशाजनक स्थिति उस एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा इस तरह के कानूनों की पैरवी करना है जिसकी स्थापना महिलाओं और बच्चों से जुडी समस्याओं का समूल नाश करने के मंतव्य से की गयी हो ....इस तरह होगा हमारे देश में बच्चों का विकास ....इस विभाग को बच्चों की शिक्षा, पालन पोषण और उनके अधिकारों की रक्षा से ज्यादा बड़ी चिंता उनके शारीरिक सम्बन्ध बनाने की उम्र का निर्धारण की है ....बाड़ द्वारा खेत को खाने की कहावत का सार्थक उपयोग यही नजर आ रहा है ....
मीडिया की जब तब आलोचना करने वाले हम लोगों को कम से कम इस कानून को अमली जामा पहनाये जाने के खिलाफ चेताने के लिए शुक्रिया तो अदा कर ही देना चाहिए , उनकी सक्रियता के बिना जाने ऐसे कितने कानून चुपचाप पास हो जाए और हमें भनक भी ना लगे ....
एक और मुद्दा जो ब्लॉगर्स के बीच छाया हुआ है ...सामाजिक समस्याओं पर मिल जुल कर समाधान करने की अपील के साथ भारी भरकम बहस हो रही है इस पर ...वह है ....विवाह की उम्र को 13-15 वर्ष कर देने की वकालत ...और इसके लिए जो तर्क दिए गए हैं , वैज्ञानिक दृष्टि से सही होते हुए भी व्यावहारिक नहीं लगते हैं .... कहा गया है कि शरीर की मांग को अनसुना करते हुए संस्कार पर भाषण देना हकीकत से मुंह मोड़ लेना है ....
मेरा मानना है कि ...वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर होने पर ही विवाह करना चाहिए ...घर -गृहस्थी को बांधे रखने के लिए सिर्फ शारीरिक जरूरतें नहीं , भावनात्मक सम्बन्ध अत्यावश्यक हैं ...सिर्फ शरीर की जरुरत के लिए सम्बन्ध पशु बनाते हैं ...इस तरह की जरूरतों का हवाला देकर बच्चों के खेलने की उम्र में विवाह की जिम्मेदारी डालना मैं उचित नहीं समझती हूँ ...क्योंकि विवाह सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध नहीं है , एक जिम्मेदारी है , एक भावनात्मक रिश्ता है जिसके लिए मानसिक रूप से परिपक्व होना भी जरुरी है !
किसी भी उम्र में विवाह के बाद विभिन्न परिस्थितियों जैसे शिक्षा , नौकरी , व्यवसाय , अस्वस्थता आदि के कारण अलगाव के बाद भी पति- पत्नी को जो भावना जोड़े रखती है , वह उनके संस्कार ही होते हैं ... इसलिए युवाओं को संस्कारित करना हकीकत से मुंह मोड़ना नहीं है , बल्कि अभिभावकों के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम समाज को संस्कारवान स्वस्थ मानसिकता वाले युवा प्रदान करें ...ना कि व्यभिचार को प्रोत्साहित करते हास्यापद तर्क दें ....!
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पिछले दिनों ऐसे ही दो मुद्दों की आंच पर दिमाग सुलगता रहा ... पहला मुद्दा है महिला एवं बाल विकास आयोग द्वारा १२ वर्ष की उम्र के बच्चों को आपसी सहमति के आधार पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने की छूट देने का प्रावधान करते हुए क़ानून के निर्माण की वकालत का मसौदा राज्या सरकारों को भेजा जाना ....जहाँ अभी तक बाल यौन शोषण और बाल श्रम से जुड़े कानून का पालन ही एक मजाक बना हुआ है , वहां इस तरह के प्रस्ताव पर विचार करना भी कुंठित मानसिकता की ओर ही इशारा करता है ....ये हालत तब है जब कि खुद इस मंत्रालय (महिला एवं बाल विकास ) की रिपोर्ट बता रही है कि " देश का हर चौथा बच्चा यौन शोषण का शिकार हो रहा है " ....वही यूनिसेफ की यह रिपोर्ट भी कम नहीं दहलाती कि लगभग 65 प्रतिशत बच्चे शिक्षा केन्द्रों पर यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं जिनकी जिम्मेदारी स्वस्थ और अच्छे संस्कार की युवा पीढ़ी के निर्माण की है ...यह रिपोर्ट सिर्फ विद्यालयों में शिकार मासूमों की है , जबकि कच्ची बस्ती और विभिन्न रोजगारों में लगे बच्चों का प्रतिशत और भी अधिक होने की संभावना है .... इस मसौदे को तैयार करने वालों की बुद्धि पर तरस खाने के सिवा और क्या किया जा सकता है ...जहाँ महिलाओं से जुड़े शारीरिक प्रताड़ना के अधिकाँश केस अनसुलझे रह जाते हैं क्योंकि इसे साबित करने के लिए बहुत ही कष्टदायक मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है , वहां ऐसे अत्याचार झेलने वाले अबोध मासूम बच्चे क्या साबित कर पाएंगे कि उनके साथ ज्यादती उनकी आपसी सहमति के बिना हुई है .... बहुत स्पष्ट तौर पर यह कानून बाल पोर्नोग्राफी और उनके व्यापार को आड़ देने का कार्य करेगा ...सयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग १२ लाख बच्चे हर वर्ष खरीद फरोख्त के शिकार होते हैं जिनमे बहुत बड़ी संख्या भारत सहित अन्य एशियन देशों की है ....असीमित जनसँख्या , रोजगार की कमी , शिक्षा और संसाधनों का का अभाव ऐसे देशों में बाल शोषण की बढती संख्या पर लगाम नहीं कस पा रही और इस तरह के वाहियात कानूनों के मसौदे पेश कर उन्हें अंधे कुएं में धकेलने की पूरी तैयारी की जा रही है ....सबसे ज्यादा निराशाजनक स्थिति उस एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा इस तरह के कानूनों की पैरवी करना है जिसकी स्थापना महिलाओं और बच्चों से जुडी समस्याओं का समूल नाश करने के मंतव्य से की गयी हो ....इस तरह होगा हमारे देश में बच्चों का विकास ....इस विभाग को बच्चों की शिक्षा, पालन पोषण और उनके अधिकारों की रक्षा से ज्यादा बड़ी चिंता उनके शारीरिक सम्बन्ध बनाने की उम्र का निर्धारण की है ....बाड़ द्वारा खेत को खाने की कहावत का सार्थक उपयोग यही नजर आ रहा है ....
मीडिया की जब तब आलोचना करने वाले हम लोगों को कम से कम इस कानून को अमली जामा पहनाये जाने के खिलाफ चेताने के लिए शुक्रिया तो अदा कर ही देना चाहिए , उनकी सक्रियता के बिना जाने ऐसे कितने कानून चुपचाप पास हो जाए और हमें भनक भी ना लगे ....
एक और मुद्दा जो ब्लॉगर्स के बीच छाया हुआ है ...सामाजिक समस्याओं पर मिल जुल कर समाधान करने की अपील के साथ भारी भरकम बहस हो रही है इस पर ...वह है ....विवाह की उम्र को 13-15 वर्ष कर देने की वकालत ...और इसके लिए जो तर्क दिए गए हैं , वैज्ञानिक दृष्टि से सही होते हुए भी व्यावहारिक नहीं लगते हैं .... कहा गया है कि शरीर की मांग को अनसुना करते हुए संस्कार पर भाषण देना हकीकत से मुंह मोड़ लेना है ....
मेरा मानना है कि ...वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर होने पर ही विवाह करना चाहिए ...घर -गृहस्थी को बांधे रखने के लिए सिर्फ शारीरिक जरूरतें नहीं , भावनात्मक सम्बन्ध अत्यावश्यक हैं ...सिर्फ शरीर की जरुरत के लिए सम्बन्ध पशु बनाते हैं ...इस तरह की जरूरतों का हवाला देकर बच्चों के खेलने की उम्र में विवाह की जिम्मेदारी डालना मैं उचित नहीं समझती हूँ ...क्योंकि विवाह सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध नहीं है , एक जिम्मेदारी है , एक भावनात्मक रिश्ता है जिसके लिए मानसिक रूप से परिपक्व होना भी जरुरी है !
किसी भी उम्र में विवाह के बाद विभिन्न परिस्थितियों जैसे शिक्षा , नौकरी , व्यवसाय , अस्वस्थता आदि के कारण अलगाव के बाद भी पति- पत्नी को जो भावना जोड़े रखती है , वह उनके संस्कार ही होते हैं ... इसलिए युवाओं को संस्कारित करना हकीकत से मुंह मोड़ना नहीं है , बल्कि अभिभावकों के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम समाज को संस्कारवान स्वस्थ मानसिकता वाले युवा प्रदान करें ...ना कि व्यभिचार को प्रोत्साहित करते हास्यापद तर्क दें ....!
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आप्ने बहुत सही मुद्दा उठाया है।
जवाब देंहटाएंहम अपनी प्राथमिकता तय कर नहीं पाते।
और मुझे लगता ये सब चालें हैं भारत को फिर से गुलामी की तरफ़ ले जाने के लिए।
अब दूसरे रास्ते ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत आ रहा है। सांस्कृतिक ग़ुलामी।
महिला और बाल विकास मंत्रालय के अनुसार भारत में किशोरियों की कुल संख्या तकरीबन 8.3 करोड़ है, जिनमें 2.74 करोड़, यानि लगभग 33% लड़कियां कुपोषण का शिकार है ।
खाना तो भर पेट दे नहीं पाते,शारीरिक सम्बन्ध बनाने की छूट देने का प्रावधान हो, इसकी बहुत चिन्ता है!!
@ अभी तक बाल यौन शोषण और बाल श्रम से जुड़े कानून का पालन ही एक मजाक बना हुआ है
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने।
• 4 या 8 साल के बीच 19% लड़कियां यौन-उत्पीड़न या दुर्व्यवहार का शिकार बनती हैं। 8 से 12 साल के बीच 28% और 12 से 16 साल के बीच 35% लड़कियों के साथ ऐसा होता है।
@ विवाह की उम्र को 13-15 वर्ष कर देने की वकालत ...और इसके लिए जो तर्क दिए गए हैं , वैज्ञानिक दृष्टि से सही होते हुए भी व्यावहारिक नहीं लगते हैं .... कहा गया है कि शरीर की मांग को अनसुना करते हुए संस्कार पर भाषण देना हकीकत से मुंह मोड़ लेना है
जवाब देंहटाएंइस पर कुछ ज़्यादा न बोलते हुए कुछ आंकड़े देता हूं
भारत में प्रति 220 महिलाओं में से एक बच्चा जनते समय मौत का शिकार हो जाती हैं।
यानि कि प्रति एक लाख में क़रीब 450 माएं जचगी के समय अपना जीवन गंवा बैठती हैं।
भारत में आधी से अधिक महिला आबादी एनीमिया से जूझ रही है।
अगर इस कच्ची उम्र में विवाह करा दें, तो यह आंकड़े बढेंगे या घटेंगे, कोई भी कह सकता है।
सार्थक आलेख , हमारी आँखें खोलने में सक्षम , बधाई
जवाब देंहटाएं@युवाओं को संस्कारित करना हकीकत से मुंह मोड़ना नहीं है , बल्कि अभिभावकों के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम समाज को संस्कारवान स्वस्थ मानसिकता वाले युवा प्रदान करें।
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ।
आभार
इन कानूनों के बारे में अभी अध्ययन नहीं किया है तो कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ।
जवाब देंहटाएंआपका पूरा आलेख पढ़ा ....विचारणीय बिंदु हैं सारे यह विषय भी बहुत प्रासंगिक और सार्थक है......
जवाब देंहटाएंयुवाओं को संस्कारित करना हकीकत से मुंह मोड़ना नहीं है , बल्कि अभिभावकों के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम समाज को संस्कारवान स्वस्थ मानसिकता वाले युवा प्रदान करें ...
यही सबसे ज़रूरी है.... और यक़ीनन हम सबकी जिम्मेदारी भी.....
एक- एक बात विचारणीय है ....और हमें इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा ....सिर्फ सोचना ही नहीं कदम भी उठाने होंगे ...आपका आभार
जवाब देंहटाएंकोई कुरीति यदि न रोक पायें तो उसे कानूनी जामा पहनाने की जुगत में लग जाते हैं देश के कर्णधार।
जवाब देंहटाएंअगर मान भी लिया जाये कि विवाह की उम्र कम कर दें तो क्या इससे समस्या सुलझ जायेगी ? कम उम्र के रिश्ते कितनी देर ठहरेंगे क्योकि शरीर बेशक विकसित हो गया हो कुछ हद तक मगर क्या दिमाग उतना विकसित हो गया होता है? और फिर क्या इस उम्र के बच्चे अपने बच्चो का बोझ उठाने मे सक्षम होंगे? ऐसे ना जाने कितने प्रश्न और हैं जो इस समस्या को और बढावा ही देंगे ………।ये कोई उपाय नही है जो सरकार सुझा रही है।ये तो इसे और बढावा देने की ओर अग्रसर कर रही है।
जवाब देंहटाएंवाणी जी,
जवाब देंहटाएंये सरकार कानून बनने के लिए कुछ व्यावहारिक सोच को भी ध्यान में रखती है या फिर सिर्फ कुछ भी मुद्दा चाहिए चर्चा में रहने के लिए. महिला एवं बाल विकास आयोग और उनका प्रस्ताव बालों से उनके बचपन को छीन कर तमाम रोगों और मानसिक तनाव और शोषण कि आग में झोंक देने का है. इस आयोग में मेरे ख्याल से सभी समाजशास्त्री ही होंगे और उनका समाज और उसके सदस्यों पर ये अवयावाहरिक रवैया क्या दर्शाता है? ये बात सिर्फ उनसे ही पूछी जाती है कि वे खुद अपने बच्चों को ऐसा करने कि अनुमति देंगे. अगर नहीं तो क्यों? आपसी सहमति का अर्थ ये १२ वर्ष के बच्चे जानते भी हैं . इस उम्र के बच्चे अधिक से अधिक ६-७ कक्षा के छात्र होते हैं.
वैसे भी इससे समाज के उस वर्ग का भला होने वाला है जो नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण के अपराधी हैं क्योंकि कानून और पुलिस को अपनी जेब में रखने वाले ये लोग इन अपराधों को कानूनी जामा पहना कर गुनाह कि श्रेणी से बाहर करवाने कि एक साजिश रच रहे हैं. कुछ विषयों पर हम चुप क्यों रहते हैं? शायद हमारे संस्कार रोक देते हैं . लेकिन अगर संस्कारों का ही दामन करने कि चाल चली जा रही हो तो फिर वो चोला उतर कर फेंकना ही पड़ेगा.
विवाह कि उम्र १३-१५ कि सिफारिश करने वाले क्या मेडिकल स्तर पर ये जानते हैं कि बच्चों का पूर्ण विकास किस उम्र में हो पाता है. हम अपने पुराने कानून के मुँह पर तमाचा मरने के इतने इच्छुक क्यों हैं? फिर इसको पास करने वाले सबसे पहले अपने बच्चों कि शादी इसी उम्र में कर पायेंगे अगर हाँ तो फिर जरूर मानसिक तौर पर बीमार हैं. वैसे भी लड़कियाँ हजार शोषण का शिकार हैं - परित्याग, भ्रूण हत्या और ऑनर किलिंग जैसे अन्धविश्वास उनको जीने नहीं दे रहे हैं और हम उसको कानूनी जामा पहनना चाहते हैं.
ये ज्वलंत मुद्दे हमें शर्मिंदा करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं दे रहे हैं.
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" महिला एवं बाल विकास आयोग द्वारा १२ वर्ष की उम्र के बच्चों को आपसी सहमति के आधार पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने की छूट देने का प्रावधान करते हुए क़ानून के निर्माण की वकालत का मसौदा राज्या सरकारों को भेजा जाना......."
जवाब देंहटाएंबहुत बुरी तरह दिमाग हिल गया था यह खबर सुन...लेकिन जब मैंने इस खबर की सत्यता की पड़ताल की तो पता चला,जितना बवाल इसपर हुआ और जो रूप इसे दिया गया,वस्तु स्थिति पूरी की पूरी यही नहीं है...किसी महानुभाव द्वारा यह सजेशन आयोग को भेजा अवश्य गया था,परन्तु इसे अविलम्ब ख़ारिज कर दिया गया...
बहरहाल , अति अल्प आयु में बच्चों में सेक्स के प्रति रुझान और बच्चों का यौन शोषण आज हमारे बीच गंभीर रूप में उपस्थिति है...असल में आज के दिन चारित्रिक क्षरण के प्रति कोई गंभीर नहीं है...बड़ों से बच्चों तक में बाज़ार द्वारा जिस खुलेपन से भोग को परोसा जा रहा है, उससे अप्रभावित रहना सरल नहीं ...
स्थिति दिनों दिन बाद से बदतर होती जा रही है यदि इसके लिए दूरदर्शिता से कारगर कदम न उठाये गए तो परिणाम बड़े घातक होंगे..
संकोच से बाहर निकल समाज हित के लिए इस गंभीर मुद्दे पर बहस होनी ही चाहिए...
जवाब देंहटाएंआभार आपका इस महत आलेख के लिए...
आप के लेख के एक एक शब्द से सहमत हे , आज इंडोनेशिया, थाई लेंड, ओर श्री लंका मे यही सब तो हो रहा हे, भारत के केरला राज्य मे भी यह धंधा जोरो पर हे, ओर ऎसे कानून इसी लिये बनाये जाते हे कि ग्राहको को कोई दिक्कत ना आये,
जवाब देंहटाएंबच्चो के लिये मुफ़त शिक्षा का विचार किसी के दिमाग मे नही आया, इन्हे भरपेट खाना दिया जाये इन की रक्षा की जाये यह विचार उलटी खोपडी बालो के दिमाग मे नही आते
अपने सही कहा है । दोनों ही मुद्दों पर सोच समझ कर कदम उठाने चाहिए । हर काम की एक आयु होती है ।
जवाब देंहटाएंविवाह हो या शारीरिक सम्बन्ध , समय से पहले इनमे लिप्त होना , डिजास्टर को बुलावा देने जैसा है ।
शरीर और मष्तिष्क के परिपक्व होने पर ही सही रहता है ।
गंभीर मुद्दा है वाणी जी ! और आपसे पूर्णत: सहमत हूँ ..इस उम्र में शारीरिक जरूरतों से ज्यादा भावात्मक जरूरतों पर ध्यान देने की जरुरत है.न जाने कितने मुद्दे और समस्याएं हैं हमारे देश में बच्चों के सर्वगीर्ण विकास को लेकर..शिक्षा,कुपोषण पर उनपर किसी का ध्यान नई जाता..
जवाब देंहटाएंत्रासद है..
यह इतना disgusting और हास्यास्पद मुद्दा है कि इस पर कुछ भी पढने का मन नहीं हुआ....किन ब्लोगर्स के बीच यह मुद्दा छाया हुआ है...यह भी नहीं पता..पहला आलेख तुम्हारा ही पूरा पढ़ा,इस विषय पर
जवाब देंहटाएंरंजना जी और राज भाटिया जी की टिप्पणी से पूर्ण सहमति.
बहुत गंभीर मुद्दा उठाया है ...सच है कि विवाह शारीरिक सम्बन्ध से ज्यादा भावनात्मक संबंधों से जुड़ा होता है ...आज भारत में पाश्चात्य संस्कृति तेज़ी से बढ़ रही है ...अभी इस बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं है ...अत: कुछ कहना उचित नहीं होगा
जवाब देंहटाएंअत्यंत सार्थक और सामयिक आलेख. इसे विडंबना ही कहेंगे कि ऐसे जघन्य पेशे को सरंक्षण देने के लिये कानून बनाये जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जटिल मुद्दा पर आपका विचार स्पष्ट है
जवाब देंहटाएंआपनें ज्वलंत मुद्दे पर अपनी लेखनी उठाई है,आपसे पूर्णतया सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएं@मनोज जी ,
जवाब देंहटाएंआंकड़ों के साथ लेख पर आपकी प्रतिक्रिया ने इसकी विषयवस्तु को और स्पष्ट किया ...
बहुत आभार .
@ रंजना जी ,
आपका आकलन सही भी हो सकता है , लेकिन यह तो हकीकत है ही की इस तरह का प्रस्ताव भेजा गया था ...समाज हित के गंभीर मुद्दों पर बहस होनी चाहिए ...बिलकुल सही कहा है आपने ....बहुत आभार !
@ अजीत गुप्ता जी ,
कानून के अध्ययन से हट कर भी यदि हम सोचें तो समाज में इस तरह की मानसिकता घातक ही है ...और ये आंकड़े बता रहे हैं की समस्या मौजूद तो है !
आपकी चिंतायें जायज़ हैं !
जवाब देंहटाएं@ वंदना जी ,
जवाब देंहटाएंबेशक शरीर के साथ दिमाग का विकसित होना भी आवश्यक ही है ...शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम लोगों के लिए तो इस तरह के कानून बहुत भयावह हो सकते हैं ...सही फ़रमाया आपने !
@ रश्मि रविज़ा ,
मुझे बहुत हैरानी हुई की अब तक तुमने इस विषय पर कुछ पढना नहीं चाहा ...जबकि तुम स्वयं बाल श्रम से जुड़े मुद्दों पर कार्य करने वाले एनजीओ से जुडी हुई हो .... बाल श्रम और बाल यौन शोषण बहुत हद तक आपस में जुड़े हुए ही हैं ...
ऐसे ही इस मुद्दे पर कई बेबाक और कड़क मानी जाने वाली समाजसेवी ब्लॉगर्स की चुप्पी ने भी मुझे बहुत हैरान किया ... बहरहाल रंजना जी और राज भाटिया जी से सहमत होने के लिए आभार !
@ रेखा श्रीवास्तव जी ,
आप सच कह रही है की ये ज्वलंत मुद्दे हमें शर्मिंदा करते हैं , सोचना पड़ता है की हम किस युग की और बढ़ रहे हैं ! बेबाकी से आपने अपनी बात रखी ...बहुत आभार !
@ संगीता जी , शिखा जी , राज भाटिया जी , सुनील कुमारजी , ललित शर्मा जी , मोनिका जी , केवल राम जी , प्रवीण पाण्डेय जी , ताऊ रामपुरिया जी , मनोज मिश्र जी , डॉ दाराल जी ...
इस गंभीर मुद्दे पर चिंतन की दिशा से सहमत होने के लिए बहुत आभार !
मुझे कड़क ब्लॉगर कहने और समझने का बहुत बहुत शुक्रिया...:)
जवाब देंहटाएंरंजना जी की इस बात से मैने सहमति जताई है...."लेकिन जब मैंने इस खबर की सत्यता की पड़ताल की तो पता चला,जितना बवाल इसपर हुआ और जो रूप इसे दिया गया,वस्तु स्थिति पूरी की पूरी यही नहीं है...किसी महानुभाव द्वारा यह सजेशन आयोग को भेजा अवश्य गया था,परन्तु इसे अविलम्ब ख़ारिज कर दिया गया"
अखबार में मैने इसकी असलियत पढ़ ली थी इसलिए ब्लॉगर्स द्वारा इस पर व्यर्थ की बहस में मुझे कोई रूचि नहीं थी...
तुम्हारा आलेख भी सिर्फ इसलिए पढ़ा क्यूंकि...तुम्हारी हर पोस्ट पढ़ती भी हूँ...और टिप्पणी भी करती हूँ....मेरे क्या रुझान हैं...मैं क्या करती हूँ...यह सब मेरे पोस्ट से पता चल ही जाता है......वैसे सबकी अपनी-अपनी नज़र है.
मेरी तरह कुछ और ब्लॉगर्स की चुप्पी ने तुम्हे हैरान जरूर किया पर सब सिर्फ इसलिए इस मुद्दे पर चर्चा नहीं कर रहे क्यूंकि.....इस तरह का कोई कानून पारित नहीं होने जा रहा...किसी ने ऐसा प्रस्ताव भेजा और उसे ठुकरा भी दिया गया.
और यहाँ लोग बाल -यौन- शोषण पर चर्चा नहीं कर रहे...बल्कि १२ वर्ष की उम्र के बच्चों को आपसी सहमति के आधार पर शारीरिक सम्बन्ध बनाने की छूट, उसके परिणाम-दुष्परिणाम पर बात कर रहे हैं. जिस पर बात करने की ,मेरी आज भी रूचि नहीं है. क्यूंकि ऐसा कुछ होने नहीं जा रहा.
@ बिलकुल ऐसा हो नहीं पाया है मगर इसकी कोशिश तो की गयी ही थी ...हम चाहे आँख मूँद लें , मगर समाज में यह समस्या मौजूद तो है ...
जवाब देंहटाएंहाँ ,और बहुत से विषयों के साथ महिलाओं और बच्चों की समस्याओं में भी मेरी रूचि रहती है और इस तरह की कोशिशें मुझे बेचैन करती हैं ...
वैसे कड़क वाला कमेन्ट तुम्हारे लिए नहीं था ...तुम कहाँ कड़क मिजाज़ हो , तुम्हे तो मैं कोमल दिल वाली महिला मानती हूँ ... जिनके लिए है वे अभी भी चुप हैं, मगर जानती हूँ बोलेंगी जरुर :)
और मुझे लगातार पढने , मतलब मेरा जैसा-तैसा लिखा भी झेलने के लिए तो आभारी हूँ ही !
जवाब देंहटाएंविवाह सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध नहीं है , एक जिम्मेदारी है , एक भावनात्मक रिश्ता है जिसके लिए मानसिक रूप से परिपक्व होना भी जरुरी है ! बिलकुल सही कहा। लेकिन कुछ लोगों की मानसिकता केवल शरीर तक ही सिमट कर रह गयी है। उन्हें इसकी मानवीय और भावनात्मक पहलू नही दिख रहे। अच्छा आलेख है । भगवान जाने इस देश का क्या होगा।
जवाब देंहटाएंदो स्थितियां हैं -
जवाब देंहटाएंपहली तो यह कि पांच वर्ष की उम्र से लेकर पंद्रह सोलह वर्ष के बच्चे/बच्चियों का अपने ही पारिवारिक सदस्यों, सम्बन्धियों तथा परिचितों द्वारा यौन शोषण, बलात्कार..
दूसरी स्थिति है किशोर वय के बालक बालिकाओं का सेक्स की ओर तेजी से बढ़ता रुझान ...
दोनों ही स्थितियां समाज में इतनी तेजी से विस्तार पा रही हैं कि स्थिति यदि यही रही तो nikat bhavishy सामाजिक moolyon की तो ऐसी की तैसी होगी,वह होगी ही,सबसे बड़ी समस्या यौन रोगों की रहेगी..
समस्या का निदान केवल चारित्रिक उत्थान से ही संभव है और इसके लिए उन सभी रास्तों को जो मनुष्य को भोग की ओर प्रवृत्त करते हैं बंद करना होगा...
लेकिन वर्तमान राजनितिक सामाजिक स्थिति में यह संभव होता दीखता नहीं...
विवाह की उम्र कम कर दो और बाल विवाह पर कानून बनाओ ...कितने confuse हैं ये ..कुछ भी बनाने से पहले कुछ गाँवों की सैर ही कर ली होती और कुछ बुजुर्गों से मिल लिए होते ...परम्पराएं पहले व्यवहार में और फिर अमल में आतीं हैं.
जवाब देंहटाएंविचारपूर्ण एवं सार्थक आलेख ! आपकी हर बात से सहमत हूँ ! ताज्जुब होता है कि ऐसे निरर्थक और पूरी तरह से अव्यावहारिक कानून बनाने की पैरवी करने का क्या औचित्य हो सकता है ! वैसे ही बच्चे क्या कम ज़ुल्म झेल रहे हैं ? सारगर्भित पोस्ट के लिये आभार एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाणी जी,
जवाब देंहटाएंबेहद सामयिक और अपने-आप से प्रश्न करता हुआ आलेख.
हमारे नीति-नियंताओं की सोच में ग्रहण लग चुका है.जो करना है वो कर नहीं पाते,जो नहीं करना है उसपर बेवजह की बहस जारी है.खुद संस्कारहीन हैं,दूसरों को कहाँ से देंगे,खुद दिशाहीन है,दूसरों को क्या दिशा देंगे.हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे नेतृत्वकर्त्ताओं में नेतृत्व की क्षमता ही नहीं.हमें ही अब कलम से भी आगे तक जाना होगा.अपने संस्कारों को बच्चों तक शिद्दत से पहुचना होगा.
अनाथ,स्त्री कल्याण,विधवा आश्रम, … कई कल्याण केंद्र खोले गए, जहाँ कल्याण कम, शोषण अधिक होता है।
जवाब देंहटाएंकम से कम पढ़ाई के नाम पर गलत चीजें तो नहीं दिखेंगी