थैंक्स राम भाग एक , भाग दो , भाग तीन से आगे ....
महिला संगीत का आयोजन एक बड़े हॉल में था ...पहली बार मिली अंजना होने वाली भाभी से ...ट्रेडिशनल लहंगा ओढ़नी में प्यारी हंसमुख गुडिया- सी लगी ...लीना और अंजना बांह पकड़कर खींच लाई भाई को और होने वाली भाभी को भी ...कार्यक्रम समाप्त होने के बाद मां ने अंजना को टोका ..." आंजलि नहीं भरनी है ? "
भूल गयी थी अंजना ,हालाँकि घर लौटते समय मिठाई , पान और माला खरीद ली थी , आखिर माँ ने ही सलाह दी ...कोई बात नहीं , अभी जब वारना करेंगे तब भर देना ...
बीच चौक में कुर्सी पर बैठाया भाई को और उसकी गोद में सूखे मेवे , बतासे , मिठाई और पैसे रख पान का बीड़ा पकड़ा दिया ...घर में उपस्थित सभी महिलाएं दो ग्रुप बना कर दोनों ओर खड़ी हो गयी और फिर उनके बीच शुरू हो गयी दोहों की प्रतियोगिता ..आधुनिक अंदाज़ में महिला संगीत में फ़िल्मी गानों पर नृत्य की धूम के बाद पारंपरिक अन्ताक्षरी का सा लुत्फ़ , गर्व हुआ उसे ...आधुनिकता ने पारंपरिक उत्साह को लजाया नहीं था ...
" एडी म्हारी उजली जी ,कोई फाबो सूंतवा सूंठ
ऐसी चालूं ठुमकती जी कोई रंडुआ छाती कूट "
के जवाब में दूसरी ओर से आया सनसनाता तीर ...
" चार कूंट को नातनो जी कोई बांध्या मूंग मरोड़
पाड़ोसिया को डावड़ो जी कोई रह गयो मूंछ मरोड़ "
अंजना अपने ग्रुप का उत्साह बढ़ाते हुए दोहे याद दिला रही थी ..."
छह छल्ला छह मूँदडी जी कोई छल्ला भरी परात
एक छल्ला का कारण से कोई छोड्या माँ अर बाप !
गीत गाते आँखें भर आई माँ की , अंजना माँ के पास खिसक आई ..पलकों में रुका बाँध आंसुओं की राह निकल पड़ा ...बड़ी काकी भी अंजना के सिर पर हाथ फेरती सिसक पड़ी, ब्याह की रौनक तो छोरियां सा ही है ..वल्लभ का ब्याह में कोणी आई ...
याद आया अंजना को ...वल्लभ की शादी के बाद लौटते पापा कुछ देर के लिए उसके शहर आये थे ...जितनी देर रुके , टैक्सी बाहर खड़ी रही , उन्हें तुरंत लौटना था ..कल ज़रूरी मीटिंग है दिल्ली में , बस तुझे देखने की इच्छा हुई तो चला आया ,शादी में सब तुझे बहुत याद कर रहे थे , तेरी काकी की भी आँखें भर आई थी ..."छोरिय कोणी आई "
...अंजना को सहसा यकीन नहीं हुआ था ..दो बेटों की गर्विता माँ पुत्रवती होने के गर्व से तनी रहती थी " छोरियां हो जाव तो नाक कट जाव "..माँ को कितनी बार ताना दिया होगा उन्होंने ...माँ कुछ कहती नहीं थी , अंजना के बिफर पड़ने से पहले बस उसे अपने अंक में समेट लेती थी ...एक दिन पता चलेगा इन्हें कि बेटी की माँ होने का मतलब क्या होता है , उन काकी के बारे में यह सुनकर उसने अनुमान लगाया , आज माँ का गर्वीली मुस्कान से चेहरा खिल उठा होगा ...
पापा के जाने के बाद परिवार में पहला शुभ कार्य हो रहा था ...उन्हें याद कर सबकी आँखें एक साथ भर आयी ..
मारवाड़ म छोरियां स सीख जावा , आज कसी रोळ मचा राखी है , बड़ी बुआ माँ से कह रही थी , सुना अंजना ने ...लीना ने उनके मुंह की बात लपक ली ..." और क्या बुआ ...हमारी वियोगिनी मीरा का सलोनी राधा में कायांतर हो चुका है ...मेरी शादी में कितनी मुश्किल से मनाया था इसे "..
लीना की शादी अचानक ही तय हुई थी ...अंजना को अपने माता पिता के पास असाम लौट जाना था ...उसके पिता वहां एक चाय बगान में प्रशासनिक पद पर कार्यरत थे ... उत्तर पूर्वी राज्यों में स्थानीय निवासियों में प्रवासियों को विशेषकर मारवाड़ियों को लेकर बहुत आक्रोश था , आये दिन होने वाले उपद्रव के बीच चिंतित माता- पिता ने उसे अभी कुछ और दिन हैदराबाद ही रुकने की सलाह दी थी ...राजमंद्री से मौसी का फोन था ...बस हमेशा अपने ददिहाल के परिवार से मिल कर ही चले जाना है तुझे , हम तो जैसे कुछ लगते ही नहीं तेरे , इस बार कुछ नहीं सुनूंगी तेरी , विकास को भेज रही हूँ लिवाने ...दूसरे दिन ही आ गया था विकास , उसे जाना पड़ा ...अपने हमउम्र भाई-बहनों के बीच खूब मन लगा उसका , दो सप्ताह कैसे बीत गाये , पता ही नहीं चला ...विदा करते मौसी भावुक हो गयी थी ," आती -जाती रहा करो"...
हैदराबाद लौटने पर पता चला कि इस बीच लीना का रिश्ता तय हो गया था ...किसी समारोह में देखा था उसे निखिल के परिवारवालों ने और नेवी में कार्यरत अपने बेटे के लिए हाथ मांग लिया था लीना का ...मासी इनकार करती भी तो कैसे , अच्छा परिवार , अच्छी नौकरी ...वह हैरान थी क्या लीना भी राजी है इस रिश्ते के लिए ...काकी ने उसे झिड़क- सा दिया ," और क्या चाहिए था , इतना अच्छा रिश्ता है , लड़का भी देखने में ठीक- ठाक है "
दूसरे दिन सुबह सवेरे ही जा पहुंची थी लीना के घर ...पूरा घर अस्तव्यस्त ,सामान से अटा पड़ा था ...सही मौके पर आयी , मासी ने उसे बाँहों में भर लिया...अच्छा परिवार मिल गया , मैंने सोचा की इस रिश्ते को चूकना ठीक नहीं ...
मगर मासी इतनी जल्दी में ...
हाँ , अच्छा खासा लड़का है , लीना भी मिल चुकी है ..जल्दी क्या बेटा , बेटियों को तो एक दिन पराया होना ही है , लड़का नेवी में हैं , वहां जाने से पहले उसके पेरेंट्स शादी कर देना चाहते हैं ..परसों सगाई है और पंद्रह दिन बाद शादी ...
लीना , तू खुश तो है ...
हां रे , ऐसे क्यों पूछ रही है ...
नहीं , वो ...उस दिन ...वो लड़का ...अंजना अटक रही थी ...
क्या वो लड़का ,छोड़ उसे ...
कुछ कही तड़क गया , छोड़ना इतना आसान !! वही उसे तसल्ली भी थी कि लीना खुश है ...
अगले पंद्रह दिन पलक झपकते ही गुजरने थे ...लीना की चंडाल चौकड़ी(सत्या , पूर्णिमा , ख़ुशी , गीतांजलि ,विनय , ) रात -दिन मुस्तैद रहती थी वहीँ ,रामदास और राजू भी उनके साथ लगे रहते ...मासी को घबराते देख उन्होंने पूरा जिम्मा खुद पर ले लिया था ...कैटरिंग , हलवाई , टेंट के साथ ही दहेज़ में दिए जाने वाले सारे सामान की खरीददारी , पैकिंग ...लीना ने काकी से मिन्नत कर कुछ दिन उसे अपने पास ही रोक लिया था ...दिन भर खरीददारी , फिर शाम को पैकिंग करना , ऐनवक्त पर अफरातफरी से बचने के लिए सामान को क्रमवार जमाना और फिर मिलकर सबके लिए खाना पकाना ...उन लोगों ने मासी को परिवार की कमी महसूस नहीं होने दी ...मासी की कई बार आँखें भर आती ...तुम लोग नहीं होते तो मैं कैसे कर पाती यह सब कुछ ...
एक दिन शाम को सामान की लिस्ट चेक करती , दिन भर के खर्चों का ब्यौरा लिखती मासी के पास बैठी थी अंजना , बाकि लड़कियां खाना बनाते चुहलबाजी में लगी थी ...मासी ने तकिये का सहारा लेते हुए पैर सीधे कर लिए ...थक गयी थी ...तभी रामदास आकर मासी के पास बैठ गया ... मासी , आपके पैर दबा दूं कहता हुआ सचुमच ही उनके पैर दबाने लगा ...
तू दबा ले पैर , मगर इससे कोई फायदा होने वाला नहीं है ..
मौसी उसे आँखें दिखा रही थी , एक चोर मुस्कान उसने सभी के चेहरे पर देखी , उसे माजरा समझ नहीं आया ...
गेलो पग दाबता कठई गलो भी दबा देव , मासी ध्यान राखजो ...(पागल कहीं पैर दबाते हुए गला दबा दे, ध्यान रखना )सबके सामने व्यक्तिगत बात करते समय मासी से मारवाड़ी में बात करती थी अंजना और लीना ..
क्या बोला मासी , मुझे समझ नहीं आया !
जब ये सब लोग तेलगु में बात करते हैं तो मैं पूछती हूँ कभी कि क्या बोला , समझा दो मासी ...
उनकी अप्रत्यक्ष नोंक झोंक चलती रहती थी ...नाम पूछने वाले हादसे के बाद रामू की कभी हिम्मत नहीं हुई उससे सीधे बात करने की ...पता नहीं तेलगु में क्या गिटर- पिटर करता रहता मीना से , वह कई बार लीना से उलझ जाती " मैनर्स नहीं हैं तुम लोगों में , जानते हो, मुझे तेलगु नहीं आती , फिर भी उसी भाषा में बात करते हो ,"
रामू ने ऐसे हीएक दिन एक कागज -पेन लाकर लीना को देते हुए कुछ कहा ...लीना ने कागज सरका दिया उसके आगे ," देखना , जरा ये प्रॉब्लम सोल्व कर दे , मैंने तो मैथ्स पढ़ी नहीं है "
उसने देखा ट्रिग्नोमैट्री का कोई सवाल था , उसका मनपसंद विषय ...उत्साह से ले लिया कागज.
तू इसे सोल्व कर मैं आती हूँ अभी ...लीना रामू के साथ बाहर चली गयी .
ये क्या हो गया है मुझे , सब कुछ ब्लैंक , ये आसान- सा सवाल मुझसे हल नहीं हो रहा ...दिमाग में अजीब -सी बेचैनी महसूस की उसने ...सर को हाथों से पकड़ कर दीवार के सहारे सरक गयी ...क्या हो रहा है ... बेबसी में कुछ बूँदें आंसुओं की ढलक पड़ी , कागज भी गीला होने लगा !
अंजना को इस हाल में देख लीना घबरा गयी ...
क्या हुआ अंजू , तू ठीक तो है ...छोड़ ये सब ...उसके हाथ से छीनते हुए उसने कागज- पेन फेंक दिया !
कुछ नहीं , सिर में बहुत अजीब -सा लग रहा है , जैसे मैं सब पढ़ा- लिखा भूल गयी हूँ !
हो जाता है कभी -कभी , तू आराम कर ले थोड़ी देर , इधर बहुत भाग दौड़ हो गयी ...बहुत परेशान कर रही हूँ ना मैं तुम सबको .
अंजना तकिये का सहारा लेकर लेट गयी , पता नहीं कब उसे नींद आ गयी ..उठी तो शाम का धुंधलका हो चुका था ...
मुझे उठाया नहीं , कितनी देर तक सोती रही मैं ..सबको अपने काम में लगे देख एक अपराध बोध महसूस किया उसने .
कोई गल्ल नहीं है जी ,अब बाकी का काम आप ही कर लेना ...सत्या ने कहा .आज से विनायक के गीत शुरू होंगे शाम को , नाच, गाना , मस्ती सब तुझे ही करने होंगे ...
चुप कर , ये नाच ,गाना, मस्ती तुझे ही मुबारक ...मैं तो दर्शक ही रहूंगी .
और सचमुच उस रात खूब धमाल हुआ ...पधारों म्हारा घरां विनायक के साथ काल्यो कूद पड्यो , टूटी बाजूबंद री लूम जैसे मारवाड़ी गीत तो गुजराती गरबा , पंजाबी गिद्धा , भांगड़ा सब एक साथ ..अंजना चुपचाप बैठी देखती रही , उसे इनमे कोई रूचि नहीं थी ..
दूसरे दिन सगाई का कार्यक्रम था ...लीना के ससुराल जाना था शगुन लेकर और अंगूठी पहनने की रस्म भी वही अदा होनी थी ...यूँ तो दुल्हन का शादी से पहले जाने का रिवाज़ नहीं था , मगर लीना के ससुराल वालों ने नई पहल करते हुए लीना को भी वहीँ बुलवा लिया था ...उस दिन काकी ने सौगंध दी अंजना को ...समाज का काम है , सौ लोंग इकट्ठे होंगे ...आज मैं तेरी नहीं सुनूंगी , बिंदी लगाएगी और बालों में फूल भी , साड़ी नहीं पहने तो कोइ बात नहीं , मगर मेरी इतनी बात तो तुझे माननी ही पड़ेगी ...
ओह! एक निःश्वास छोड़ी थी अंजना ने ...ये क्या रिवाज़ है यहाँ का , लड़कियों को बिंदी लगाना जरूरी है ...हल्के रंग के सादा चूड़ीदार कमीज के साथ बिना बिंदी के देख कई बार टोका था ...एक बार तो ट्रेन में गोरे चिट्टे भाई और बिंदी और फूलों से सजी सांवली भाभी के साथ अंजना को देख एक दक्षिण भारतीय परिवार ने भाभी को टोक दिया था ,"आपकी लव मैरिज है ...शादी मुस्लिम परिवार में हुई है क्या , ये दोनों भाई -बहन एक जैसे दिखते हैं , आप अलग हो "..भाभी ने बाद में बताया था और इस पर वे तीनों देर तक हँसते रहे थे ...
अंजना ने काकी की बात मान ली , दिन भर सिर पर भारी बोझ महसूस होता रहा था मगर काकी खुश थी , आज तूने मेरा मान रख लिया !
अंजना और लीना खोयी थी उन दिनों की याद में कि वल्लभ उनका हाथ पकड़कर तेज धुन पर झूमते भाई बहनों के बीच खींच लाया .....काका झूठ मूठ गुस्सा दिखाते हर कह रहे थे ..." दिन भर नाच गाना , मन नहीं भरा तुम लोगों का अभी " मगर सभी बच्चों ने उन्हें भी खींच लिया तो वे खुद को भी थिरकने से रोक नहीं पाए!
क्रमशः ...
महिला संगीत का आयोजन एक बड़े हॉल में था ...पहली बार मिली अंजना होने वाली भाभी से ...ट्रेडिशनल लहंगा ओढ़नी में प्यारी हंसमुख गुडिया- सी लगी ...लीना और अंजना बांह पकड़कर खींच लाई भाई को और होने वाली भाभी को भी ...कार्यक्रम समाप्त होने के बाद मां ने अंजना को टोका ..." आंजलि नहीं भरनी है ? "
भूल गयी थी अंजना ,हालाँकि घर लौटते समय मिठाई , पान और माला खरीद ली थी , आखिर माँ ने ही सलाह दी ...कोई बात नहीं , अभी जब वारना करेंगे तब भर देना ...
बीच चौक में कुर्सी पर बैठाया भाई को और उसकी गोद में सूखे मेवे , बतासे , मिठाई और पैसे रख पान का बीड़ा पकड़ा दिया ...घर में उपस्थित सभी महिलाएं दो ग्रुप बना कर दोनों ओर खड़ी हो गयी और फिर उनके बीच शुरू हो गयी दोहों की प्रतियोगिता ..आधुनिक अंदाज़ में महिला संगीत में फ़िल्मी गानों पर नृत्य की धूम के बाद पारंपरिक अन्ताक्षरी का सा लुत्फ़ , गर्व हुआ उसे ...आधुनिकता ने पारंपरिक उत्साह को लजाया नहीं था ...
" एडी म्हारी उजली जी ,कोई फाबो सूंतवा सूंठ
ऐसी चालूं ठुमकती जी कोई रंडुआ छाती कूट "
के जवाब में दूसरी ओर से आया सनसनाता तीर ...
" चार कूंट को नातनो जी कोई बांध्या मूंग मरोड़
पाड़ोसिया को डावड़ो जी कोई रह गयो मूंछ मरोड़ "
अंजना अपने ग्रुप का उत्साह बढ़ाते हुए दोहे याद दिला रही थी ..."
छह छल्ला छह मूँदडी जी कोई छल्ला भरी परात
एक छल्ला का कारण से कोई छोड्या माँ अर बाप !
गीत गाते आँखें भर आई माँ की , अंजना माँ के पास खिसक आई ..पलकों में रुका बाँध आंसुओं की राह निकल पड़ा ...बड़ी काकी भी अंजना के सिर पर हाथ फेरती सिसक पड़ी, ब्याह की रौनक तो छोरियां सा ही है ..वल्लभ का ब्याह में कोणी आई ...
याद आया अंजना को ...वल्लभ की शादी के बाद लौटते पापा कुछ देर के लिए उसके शहर आये थे ...जितनी देर रुके , टैक्सी बाहर खड़ी रही , उन्हें तुरंत लौटना था ..कल ज़रूरी मीटिंग है दिल्ली में , बस तुझे देखने की इच्छा हुई तो चला आया ,शादी में सब तुझे बहुत याद कर रहे थे , तेरी काकी की भी आँखें भर आई थी ..."छोरिय कोणी आई "
...अंजना को सहसा यकीन नहीं हुआ था ..दो बेटों की गर्विता माँ पुत्रवती होने के गर्व से तनी रहती थी " छोरियां हो जाव तो नाक कट जाव "..माँ को कितनी बार ताना दिया होगा उन्होंने ...माँ कुछ कहती नहीं थी , अंजना के बिफर पड़ने से पहले बस उसे अपने अंक में समेट लेती थी ...एक दिन पता चलेगा इन्हें कि बेटी की माँ होने का मतलब क्या होता है , उन काकी के बारे में यह सुनकर उसने अनुमान लगाया , आज माँ का गर्वीली मुस्कान से चेहरा खिल उठा होगा ...
पापा के जाने के बाद परिवार में पहला शुभ कार्य हो रहा था ...उन्हें याद कर सबकी आँखें एक साथ भर आयी ..
मारवाड़ म छोरियां स सीख जावा , आज कसी रोळ मचा राखी है , बड़ी बुआ माँ से कह रही थी , सुना अंजना ने ...लीना ने उनके मुंह की बात लपक ली ..." और क्या बुआ ...हमारी वियोगिनी मीरा का सलोनी राधा में कायांतर हो चुका है ...मेरी शादी में कितनी मुश्किल से मनाया था इसे "..
लीना की शादी अचानक ही तय हुई थी ...अंजना को अपने माता पिता के पास असाम लौट जाना था ...उसके पिता वहां एक चाय बगान में प्रशासनिक पद पर कार्यरत थे ... उत्तर पूर्वी राज्यों में स्थानीय निवासियों में प्रवासियों को विशेषकर मारवाड़ियों को लेकर बहुत आक्रोश था , आये दिन होने वाले उपद्रव के बीच चिंतित माता- पिता ने उसे अभी कुछ और दिन हैदराबाद ही रुकने की सलाह दी थी ...राजमंद्री से मौसी का फोन था ...बस हमेशा अपने ददिहाल के परिवार से मिल कर ही चले जाना है तुझे , हम तो जैसे कुछ लगते ही नहीं तेरे , इस बार कुछ नहीं सुनूंगी तेरी , विकास को भेज रही हूँ लिवाने ...दूसरे दिन ही आ गया था विकास , उसे जाना पड़ा ...अपने हमउम्र भाई-बहनों के बीच खूब मन लगा उसका , दो सप्ताह कैसे बीत गाये , पता ही नहीं चला ...विदा करते मौसी भावुक हो गयी थी ," आती -जाती रहा करो"...
हैदराबाद लौटने पर पता चला कि इस बीच लीना का रिश्ता तय हो गया था ...किसी समारोह में देखा था उसे निखिल के परिवारवालों ने और नेवी में कार्यरत अपने बेटे के लिए हाथ मांग लिया था लीना का ...मासी इनकार करती भी तो कैसे , अच्छा परिवार , अच्छी नौकरी ...वह हैरान थी क्या लीना भी राजी है इस रिश्ते के लिए ...काकी ने उसे झिड़क- सा दिया ," और क्या चाहिए था , इतना अच्छा रिश्ता है , लड़का भी देखने में ठीक- ठाक है "
दूसरे दिन सुबह सवेरे ही जा पहुंची थी लीना के घर ...पूरा घर अस्तव्यस्त ,सामान से अटा पड़ा था ...सही मौके पर आयी , मासी ने उसे बाँहों में भर लिया...अच्छा परिवार मिल गया , मैंने सोचा की इस रिश्ते को चूकना ठीक नहीं ...
मगर मासी इतनी जल्दी में ...
हाँ , अच्छा खासा लड़का है , लीना भी मिल चुकी है ..जल्दी क्या बेटा , बेटियों को तो एक दिन पराया होना ही है , लड़का नेवी में हैं , वहां जाने से पहले उसके पेरेंट्स शादी कर देना चाहते हैं ..परसों सगाई है और पंद्रह दिन बाद शादी ...
लीना , तू खुश तो है ...
हां रे , ऐसे क्यों पूछ रही है ...
नहीं , वो ...उस दिन ...वो लड़का ...अंजना अटक रही थी ...
क्या वो लड़का ,छोड़ उसे ...
कुछ कही तड़क गया , छोड़ना इतना आसान !! वही उसे तसल्ली भी थी कि लीना खुश है ...
अगले पंद्रह दिन पलक झपकते ही गुजरने थे ...लीना की चंडाल चौकड़ी(सत्या , पूर्णिमा , ख़ुशी , गीतांजलि ,विनय , ) रात -दिन मुस्तैद रहती थी वहीँ ,रामदास और राजू भी उनके साथ लगे रहते ...मासी को घबराते देख उन्होंने पूरा जिम्मा खुद पर ले लिया था ...कैटरिंग , हलवाई , टेंट के साथ ही दहेज़ में दिए जाने वाले सारे सामान की खरीददारी , पैकिंग ...लीना ने काकी से मिन्नत कर कुछ दिन उसे अपने पास ही रोक लिया था ...दिन भर खरीददारी , फिर शाम को पैकिंग करना , ऐनवक्त पर अफरातफरी से बचने के लिए सामान को क्रमवार जमाना और फिर मिलकर सबके लिए खाना पकाना ...उन लोगों ने मासी को परिवार की कमी महसूस नहीं होने दी ...मासी की कई बार आँखें भर आती ...तुम लोग नहीं होते तो मैं कैसे कर पाती यह सब कुछ ...
एक दिन शाम को सामान की लिस्ट चेक करती , दिन भर के खर्चों का ब्यौरा लिखती मासी के पास बैठी थी अंजना , बाकि लड़कियां खाना बनाते चुहलबाजी में लगी थी ...मासी ने तकिये का सहारा लेते हुए पैर सीधे कर लिए ...थक गयी थी ...तभी रामदास आकर मासी के पास बैठ गया ... मासी , आपके पैर दबा दूं कहता हुआ सचुमच ही उनके पैर दबाने लगा ...
तू दबा ले पैर , मगर इससे कोई फायदा होने वाला नहीं है ..
मौसी उसे आँखें दिखा रही थी , एक चोर मुस्कान उसने सभी के चेहरे पर देखी , उसे माजरा समझ नहीं आया ...
गेलो पग दाबता कठई गलो भी दबा देव , मासी ध्यान राखजो ...(पागल कहीं पैर दबाते हुए गला दबा दे, ध्यान रखना )सबके सामने व्यक्तिगत बात करते समय मासी से मारवाड़ी में बात करती थी अंजना और लीना ..
क्या बोला मासी , मुझे समझ नहीं आया !
जब ये सब लोग तेलगु में बात करते हैं तो मैं पूछती हूँ कभी कि क्या बोला , समझा दो मासी ...
उनकी अप्रत्यक्ष नोंक झोंक चलती रहती थी ...नाम पूछने वाले हादसे के बाद रामू की कभी हिम्मत नहीं हुई उससे सीधे बात करने की ...पता नहीं तेलगु में क्या गिटर- पिटर करता रहता मीना से , वह कई बार लीना से उलझ जाती " मैनर्स नहीं हैं तुम लोगों में , जानते हो, मुझे तेलगु नहीं आती , फिर भी उसी भाषा में बात करते हो ,"
रामू ने ऐसे हीएक दिन एक कागज -पेन लाकर लीना को देते हुए कुछ कहा ...लीना ने कागज सरका दिया उसके आगे ," देखना , जरा ये प्रॉब्लम सोल्व कर दे , मैंने तो मैथ्स पढ़ी नहीं है "
उसने देखा ट्रिग्नोमैट्री का कोई सवाल था , उसका मनपसंद विषय ...उत्साह से ले लिया कागज.
तू इसे सोल्व कर मैं आती हूँ अभी ...लीना रामू के साथ बाहर चली गयी .
ये क्या हो गया है मुझे , सब कुछ ब्लैंक , ये आसान- सा सवाल मुझसे हल नहीं हो रहा ...दिमाग में अजीब -सी बेचैनी महसूस की उसने ...सर को हाथों से पकड़ कर दीवार के सहारे सरक गयी ...क्या हो रहा है ... बेबसी में कुछ बूँदें आंसुओं की ढलक पड़ी , कागज भी गीला होने लगा !
अंजना को इस हाल में देख लीना घबरा गयी ...
क्या हुआ अंजू , तू ठीक तो है ...छोड़ ये सब ...उसके हाथ से छीनते हुए उसने कागज- पेन फेंक दिया !
कुछ नहीं , सिर में बहुत अजीब -सा लग रहा है , जैसे मैं सब पढ़ा- लिखा भूल गयी हूँ !
हो जाता है कभी -कभी , तू आराम कर ले थोड़ी देर , इधर बहुत भाग दौड़ हो गयी ...बहुत परेशान कर रही हूँ ना मैं तुम सबको .
अंजना तकिये का सहारा लेकर लेट गयी , पता नहीं कब उसे नींद आ गयी ..उठी तो शाम का धुंधलका हो चुका था ...
मुझे उठाया नहीं , कितनी देर तक सोती रही मैं ..सबको अपने काम में लगे देख एक अपराध बोध महसूस किया उसने .
कोई गल्ल नहीं है जी ,अब बाकी का काम आप ही कर लेना ...सत्या ने कहा .आज से विनायक के गीत शुरू होंगे शाम को , नाच, गाना , मस्ती सब तुझे ही करने होंगे ...
चुप कर , ये नाच ,गाना, मस्ती तुझे ही मुबारक ...मैं तो दर्शक ही रहूंगी .
और सचमुच उस रात खूब धमाल हुआ ...पधारों म्हारा घरां विनायक के साथ काल्यो कूद पड्यो , टूटी बाजूबंद री लूम जैसे मारवाड़ी गीत तो गुजराती गरबा , पंजाबी गिद्धा , भांगड़ा सब एक साथ ..अंजना चुपचाप बैठी देखती रही , उसे इनमे कोई रूचि नहीं थी ..
दूसरे दिन सगाई का कार्यक्रम था ...लीना के ससुराल जाना था शगुन लेकर और अंगूठी पहनने की रस्म भी वही अदा होनी थी ...यूँ तो दुल्हन का शादी से पहले जाने का रिवाज़ नहीं था , मगर लीना के ससुराल वालों ने नई पहल करते हुए लीना को भी वहीँ बुलवा लिया था ...उस दिन काकी ने सौगंध दी अंजना को ...समाज का काम है , सौ लोंग इकट्ठे होंगे ...आज मैं तेरी नहीं सुनूंगी , बिंदी लगाएगी और बालों में फूल भी , साड़ी नहीं पहने तो कोइ बात नहीं , मगर मेरी इतनी बात तो तुझे माननी ही पड़ेगी ...
ओह! एक निःश्वास छोड़ी थी अंजना ने ...ये क्या रिवाज़ है यहाँ का , लड़कियों को बिंदी लगाना जरूरी है ...हल्के रंग के सादा चूड़ीदार कमीज के साथ बिना बिंदी के देख कई बार टोका था ...एक बार तो ट्रेन में गोरे चिट्टे भाई और बिंदी और फूलों से सजी सांवली भाभी के साथ अंजना को देख एक दक्षिण भारतीय परिवार ने भाभी को टोक दिया था ,"आपकी लव मैरिज है ...शादी मुस्लिम परिवार में हुई है क्या , ये दोनों भाई -बहन एक जैसे दिखते हैं , आप अलग हो "..भाभी ने बाद में बताया था और इस पर वे तीनों देर तक हँसते रहे थे ...
अंजना ने काकी की बात मान ली , दिन भर सिर पर भारी बोझ महसूस होता रहा था मगर काकी खुश थी , आज तूने मेरा मान रख लिया !
अंजना और लीना खोयी थी उन दिनों की याद में कि वल्लभ उनका हाथ पकड़कर तेज धुन पर झूमते भाई बहनों के बीच खींच लाया .....काका झूठ मूठ गुस्सा दिखाते हर कह रहे थे ..." दिन भर नाच गाना , मन नहीं भरा तुम लोगों का अभी " मगर सभी बच्चों ने उन्हें भी खींच लिया तो वे खुद को भी थिरकने से रोक नहीं पाए!
क्रमशः ...
बहुत रोचक चल रही है कहानी।
जवाब देंहटाएंरोचकता से भरी शब्द यात्रा।
जवाब देंहटाएंचोखी कहाणी चाल रही छै,
जवाब देंहटाएंम्हाने तो पतो ही कोनी लाग्यो।
पाछै तसल्ली सूँ पढस्यां। :)
क्रमवार चल रही है कहानी .. रोचक ..
जवाब देंहटाएंशनै शनै रोचकता घुल रही है। शानदार कथन शैली!!
जवाब देंहटाएंआपकी कथाशैली बहुत बढ़िया है!
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का इन्तजार है!
कई नए रीतिरिवाज़ जानने को मिल रहे हैं...दिलचस्प
जवाब देंहटाएंसंगीत का दृश्य बहुत ही रोचकता से दर्शाया है....सजीव हो उठा है सबकुछ.
जवाब देंहटाएंलीना की शादी की तैयारियों का वर्णन भी आँखों-देखा सा लग रहा है....जब एक जगह बैठ कोई खर्चे का हिसाब लिख रहा होता है...
रोचक कड़ी..अगले का इंतज़ार
Aaj pahlee baar ise padha...ab aage peechhe sab padhtee hun!
जवाब देंहटाएंरोचकता बरकरार है.क्या वाकई अब भी इस तरह के दोहे गाये जाते हैं शादियों में ? अच्छा लगा पढ़ना.
जवाब देंहटाएंफुरसत से पढेंगें ..देखिये मिलती भी है या नहीं ...सरसरी तौर पर देख लिया है ..जातीय संस्कारों ,अनुष्ठानों की झलक है ...
जवाब देंहटाएंरोचकता बनी हुई है, मेरे लिए तो एक बार फिर से वो गलियां वो चौबारे ,,, में दुबारा जाने का अवसर मिल रहा है।
जवाब देंहटाएं@
जवाब देंहटाएंब्याह की रौनक तो छोरियां सा ही है
अजी, जीवन की रौनक इन बेटी-बहुओं से ही है।
@गेलो पग दाबता कठई गलो भी दबा देव , मासी ध्यान राखजो
;)
@मैनर्स नहीं हैं तुम लोगों में
सरलता की निशानी भी हो सकती है। वैसे, ऐसे पागल भी होते हैं जो बोलना सीखते भी नहीं ताकि दूसरों की प्राइवेसी बनी रहे।
@सब कुछ ब्लैंक , ये आसान- सा सवाल मुझसे हल नहीं हो रहा
आसान?
@ये क्या रिवाज़ है...
केवल एक डॉट किसी अभारतीय को भी भारतीय बना देता है।
अगली कडी की प्रतीक्षा के बारे में कोई ज़िक्र नहीं (पहले काफी कहकर देख लिया, वैसे वीरसिंह को भी उठाकर बैठा दिया है)
एकदम रोचक और मजेदार
जवाब देंहटाएं@ छोड़ना इतना आसान !!..:
जवाब देंहटाएंये अगर सवाल होता तो बहुत मुश्किल होता,’सब कुछ ब्लैंक’ वाले से भी ज्यादा मुश्किल।
रोचक....बहुत बहुत रोचक...
जवाब देंहटाएंजारी रखें...
रोचक कहानी है, और उतनी ही रोचक आपकी शैली।
जवाब देंहटाएंशादी की तैय्यारियाँ और चहल पहल का सजीव चित्रण अच्छा लगा। बहुत रोचक शैली में लिखा है।
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों की व्यस्तता के बाद आज ही कहानी के सारे भाग पढ़ पाई हूँ सुन्दर कथानक और प्रवाहमयी शैली लिए रोचक कहानी |
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार |