केंद्रीय विभागों की तर्ज पर ही राजस्थान में कर्मचारियों के लिए पांच दिन का सप्ताह किये जाने की घोषणा पिछली सरकार के समय की गयी थी, जिसके अंतर्गत पेट्रोल की खपत में कमी के एक उपाय के रूप में सरकारी विभागों में कामकाज की अवधि सोमवार से शुक्रवार तक की गयी . इसके तहत कार्यालयों में प्रतिदिन के कामकाज के समय में भी परिवर्तन किया गया . पहले के 10 से 5 कार्य करने के समय को 9.30 से 6 बजे तक कर दिया .
सरकारी दफ्तरों में कामकाज किस तरह होता है , हम सभी जानते हैं . ऐसे में पांच दिन के सप्ताह से कामकाज प्रभावित होने की सम्भावना ही ज्यादा थी . सर्दियों में दिन छोटा होने से अँधेरा जल्दी ही घिर आने के कारण भी कर्मचारियों के जल्दी दफ्तर छोड़ जाने की पूरी सम्भावना थी , मगर सरकार ने कर्मचारियों को इस समय के नियम का पालन करने को लेकर सख्ती दिखाई और धीरे -धीरे इसके सकारात्मक प्रभाव नजर आने लगे . कम से कम कर्मचारियों के परिवारजनों ने तो इससे राहत ही महसूस की . दफ्तर का समय सुबह 10 से घटाकर साढ़े नौ करने का ख़ास फर्क नहीं पड़ा , मगर इससे परिवार के लिए एक दिन अतिरिक्त मिलने लगा और यहाँ भी सप्ताहांत मनाने का रिवाज़ निकल पड़ा . सरकारी कर्मचारियों की पेट्रोल की खपत में कमी का तो पता नहीं , पारिवारिक सदभाव बढ़ने में जरुर सफलता मिली होगी ..
इस सप्ताहांत पर जब बहुत समय बाद घर से निकलना हुआ तो गाड़ियों की रेलमपेल के बीच दोनों छूट्टियों के दिन भी गुलजार हो रही सड़कें बता रही थी कि इस शहर को भी पांच दिन का सप्ताह रास आने लगा है .
रविवार को सूनी रहने वाली सड़कें अब गुलज़ार रहने लगी हैं . पिछले वर्षों में प्रोपर्टी मार्केट में बूम आने के बाद चौपहिया वाहनों की बढ़ी संख्या ने भी परिवार के साथ छुट्टियों मनाने वालों की संख्या में वृद्धि की है.
इस शनिवार को ट्रैफिक में फंसे हुए समीर जी की उपन्यासिका के कई अंश आँखों के सामने साकार हुए . लोंग भागे जा रहे हैं बाहर , क्या घर में बैठ कर परिवार जनों के साथ अच्छा वक़्त बिताते हुए छुट्टियाँ नहीं मनाई जा सकती या फिर पर्यटन के लिए शहर अथवा देश से बाहर जाना ही क्या आवश्यक है ...
गर्मी की छुट्टियाँ तो बच्चों की परीक्षाओं,शादियों की भेंट चढ़ी , रही सही कसर अस्वस्थता ने पूरी कर दी , नतीजन पूरी छुट्टियाँ घर में भरपूर आराम करते ही बीती . सोचा इस सप्ताहांत पर अपने ही शहर को नवीन दृष्टि से देख लिया जाए .
शनिवार का दिन झाड़खंड महादेव के दर्शन के लिए निकले . द्रविड़ स्थापत्य शैली पर आधारित यह शिव मंदिर इसे राजस्थान के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों से अलग बनाता है . जन्मभूमि ही द्रविड़ों का प्रदेश है तो इस प्रकार की इमारतें , मंदिर, चित्रकारियां मुझे बहुत लुभाती है , इन स्थलों पर जाने पर बहुत दिन बाद बेटी का अपने मायके आने जैसा ही अहसास होता है . हम महिलाएं उम्र के किसी भी पड़ाव पर हों , ससुराल की परम्पराओं ,रीति -रिवाजों को निभाते उनमे ही रच बस गयी हो , मगर मायके की एक छोटी सी झलक भी स्मृतिलोक के कितने ही परदे भेद कर बचपन तक ले आती हैं . माँ को भी कई बार गुजरते देखती हूँ इन्ही अनुभूतियों से जब हुलस कर वे अपने मायके के बारे में बताती हैं ...ये रिश्ता बेटियों का बेटियों से पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता चलता रहता है .
आर्मी एरिया के पास होने के कारण यहाँ का प्राकृतिक वातावरण लुभाता है .मंदिर प्रशासन भी पर्यावरण के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध नजर आया . मंदिर के अहाते की छत डालते समय में पीपल या बरगद के बड़े पेड़ों को कटा नहीं गया बल्कि छत का वह हिस्सा खुला ही छोड़ दिया गया है .
मदिर के भीतर पक्षियों के चुग्गे और पानी के लिए बड़ी जगह सुरक्षित है , कबूतरों के ढेर के बीच सफ़ेद कबूतर भी नजर आये . यहाँ बड़ी संख्या में मोर भी हैं , हालाँकि मंदिर के बाहर हरे चारे के ढेरों के पास गायों और सांडों का हुजूम थोडा डराता भी है . मैं देख नहीं पाए , शायद कही आस पास ही मंदिर की अपनी डेयरी भी हो . देश में हर तरफ मंदिरों में भारी संख्या में धन मिलने की ख़बरों के बीच यह सब देखना सुखद लगा .
दूर से देखने पर मंदिर की बाहरी बाउंड्री के रंग इसे कहीं से भी मंदिर होने का आभास नहीं देते . सफ़ेद रंग की दीवार और खिडकियों और दरवाजों पर हरा रंग , बच्चों ने आश्चर्य से पूछा ," यहाँ मंदिर है ?"
भक्ति भी भला किस रंग का अवलंबन चाहती है ! हम इंसानों ने इसे अलग -अलग रंगों में बाँट दिया है .
शाम गहराने लगी तो बिरला मंदिर और मोती डूंगरी गणेशजी के दर्शन कर घर लौट आये ...
दूसरे दिन आमेर किले के लिए निकले घर से , जलमहल तक आते -आते मौसम ने तेजी से करवट ली और बारिश के साथ लबालब सड़कों ने रास्ता रोक लिया . जलमहल की पाल से उमड़ते घुमड़ते बादल और बरसात ने इस पर्यटन स्थल की रौनक को चार चाँद लगा दिए थे .
बारिश में भीगते भुट्टे खाते लोंग जश्न मनाते नजर आये . पानी के निकास की सही व्यवस्था ना होने के कारण बहुत ज्यादा बारिश नहीं होने के बावजूद सड़कों पर नहर बन जाने जैसे हालात को देखते हुए वहीं से वापस लौट आना पड़ा . रास्ते में जयपुर नगर निगम का बोर्ड और उनके शहर को विश्वस्तरीय बनाने की प्रक्रिया का दर्शन कर
लौटे ..
जयपुर विकास प्राधिकरण का आश्वासन
जरा सी बारिश में जो हुए शहर के हालात ...
इस तरह बनेगा हमारा शहर विश्वस्तरीय !
मगर इन्हें नहीं है किसी से कोई शिकायत ....
झमाझम बारिश के बीच संपत की नमकीन और आलू- प्याज कचौरी का स्वाद लेते हुए लौटे घर तो हमारे इलाके में एक बूँद पानी की नहीं ...कॉलोनी में गाडी को बारिश से भीगे देखते लोग आश्चर्यचकित हुए , कहाँ हो गयी इतनी बारिश ...बच्चे अलग भुनभुनाते रहे " यहाँ इतने पेड़ पौधे लगाने की जरुरत ही क्या है , जब बारिश ना हो तो "
रोज शहर के विभिन्न इलाकों में अच्छी बारिश के समाचार मिल रहे हैं और यहाँ बस बादल गरजते बरसते पानी की कुछ बूँदें बरसाकर चले जाते हैं ...
जगजीत सिंह जी की ग़ज़ल याद आ रही है ...
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने , किस राह से बचना है , किस छत को भिगोना है ...
वाकई बादल दीवाने ही हो गए हैं ...
सोच रही हूँ कुछ दिनों के लिए ब्लॉगिंग को भी अपनी झमाझम टिप्पणियों से मुक्ति दे दी जाये ...ज्यादा नहीं ,बस कुछ ही दिन रह लीजिये हमारी टीका टिप्पणी के बिना भी !
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें !
इस तरह बनेगा हमारा शहर विश्वस्तरीय !
मगर इन्हें नहीं है किसी से कोई शिकायत ....
झमाझम बारिश के बीच संपत की नमकीन और आलू- प्याज कचौरी का स्वाद लेते हुए लौटे घर तो हमारे इलाके में एक बूँद पानी की नहीं ...कॉलोनी में गाडी को बारिश से भीगे देखते लोग आश्चर्यचकित हुए , कहाँ हो गयी इतनी बारिश ...बच्चे अलग भुनभुनाते रहे " यहाँ इतने पेड़ पौधे लगाने की जरुरत ही क्या है , जब बारिश ना हो तो "
रोज शहर के विभिन्न इलाकों में अच्छी बारिश के समाचार मिल रहे हैं और यहाँ बस बादल गरजते बरसते पानी की कुछ बूँदें बरसाकर चले जाते हैं ...
जगजीत सिंह जी की ग़ज़ल याद आ रही है ...
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने , किस राह से बचना है , किस छत को भिगोना है ...
वाकई बादल दीवाने ही हो गए हैं ...
सोच रही हूँ कुछ दिनों के लिए ब्लॉगिंग को भी अपनी झमाझम टिप्पणियों से मुक्ति दे दी जाये ...ज्यादा नहीं ,बस कुछ ही दिन रह लीजिये हमारी टीका टिप्पणी के बिना भी !
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें !
जयपुर की ही घुमाई कर ली छूट्टी में। द्रविड़ शैली के मंदिर से लेकर प्याज कचौरी के स्वाद तक का सफ़र बढिया रहा। गर्मियों में जलमहल में तो मैने बच्चों को क्रिकेट खेलते देखा है। एक ही बरसात में लबालब हो गया।
जवाब देंहटाएंपूरा आलेख बहुत सार्थक रहा मगर
जवाब देंहटाएंजयपुर के सुन्दर चित्रों ने बहुत प्रभावित किया!
यात्रा वृत्तांत और सुंदर सजीव चित्र ने मन मोह लिया। बरसात में ‘पिअजुआ’ का लुत्फ़ ही अलग है।
जवाब देंहटाएंगुरु पुर्णिमा के अवसर पर आपको भी हार्दिक शुभकामनाए।
bilkul bilkul... tippani se door barish me bhutte ka anand jyada zaruri hai
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के बहानें हम भी पुनः जयपुर घूम लिए,आभार.
जवाब देंहटाएंरोचक और आकर्षक पोस्ट ..जब हम आयेगें तो आप से अनुरोध करगें इस मंदिर को दिखाने को !
जवाब देंहटाएंजयपुर का सुन्दर परिदृश्य।
जवाब देंहटाएंयह सचित्र मनभावन प्रस्तुति के साथ बारिश में भुट्टों का जिक्र
जवाब देंहटाएंसब बहुत ही बढि़या ... ।
जयपुर दर्शन का खूबसूरती से वर्णन किया ...चित्र और भी सुन्दर बना रहे हैं इस पोस्ट को ...
जवाब देंहटाएंआलू प्याज़ की कचौरी खाए अरसा बीत गया ..इसके लिए खेतरी नगर याद आता है :):)
और अब दीवाने बादल की तरह आप भी ...(यहाँ शब्द खुद ही भर लीजियेगा ) हो गयी हैं ..न जाने कब टिप्पणियों की झमाझम बारिश करें वो भी न जाने कहाँ ...
अपनी तबियत का ख्याल रखिये ..
बहुत सुन्दर ढंग से आपने लिखा है ...
जवाब देंहटाएंवाह झमाझम बारिश,पकोडे,कचोरी,जयपुर और घुमक्ड़ी.
जवाब देंहटाएंक्या कहने. मजा आ गया.
आज 15- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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अपनी इस रोचक यात्रा में हमें भी शामिल karne के लिए बहुत बहुत आभार...
जवाब देंहटाएंsabkuchh ही भला और लुभावना लगा, केवल बरसाती पानी से तलब बने सड़क पर चलना छोड़कर...
आपके आलेख को पढ़ कर मन बावरा तो बन्जारा सा हो उठा :))
जवाब देंहटाएंबरसात में भीगता जयपुर देखकर आनंद आ गया . सुन्दर चित्र .
जवाब देंहटाएंअपने शहर के साथ ही साथ बारिश के भेदभाव पर भी निगाह डाल ली आपने :)
जवाब देंहटाएंआलेख तथा चित्रों ने कुछ वर्ष पूर्व के जयपुर भ्रमण की यादें ताजा कर दीं.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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बड़े ही रोचक ढंग से पूरा जयपुर अपने साथ-साथ घुमा दिया आपने...
आभार आपका !
...
चित्र बहुत अच्छे लगे, आभार!
जवाब देंहटाएंजयपुर...रिमझिम बरसात...प्याज कचौरी....आपकी लेखनी...
जवाब देंहटाएंआनंदम् ही आनंदम्...
जय हिंद...
आपके कैमरे की नजर से जयपुर को बरसात में भीगते देखकर वहां होने का एहसास हो आया, सुंदर चित्रों के साथ संस्मरण लिखने की शैली रोचक लगी, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
बडी अच्छी तस्वीरें हैं...और बारिश में घूमना..वाह :)
जवाब देंहटाएंवैसे, पांच दिनों के ऑफिस के हम भी आदी हो गए हैं...बैंगलोर में लगभग सभी प्राइवेट कंपनियों में पांच दिन का ही वर्कलोड होता है...
हम तो सोच रहे थे कि आप झारखंड महादेव में ही दिन गुजार देंगे लेकिन यहाँ तो जयपुर दर्शन ही हो गया. अच्छा लगा.
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