ये है उन महिला की विनती ...
जिनको रोमन पढने में परेशानी है , उनके लिए इसे लिख दिया है हिंदी में भी :)"apne mere liye apan kimati samya diyaour ab bhi meri help karna chahte hain..aapki har salah meri samsya ka samadhaan hai..mai bahut sari samsyaon ki vajah se aisa lagata ai mera atmvishvas kam ho gaya hai.. han mujhe likhana achchha lagata hai lekin pata nahi kyon lagata hai mera atmvishvaas kam hai..mai khud ka elk blog jaroor banana chahoongi... lekinmujhe kyon lagata ha kimuhe kisi ke sath ki jaroorat hai..mai akele kuchh nhi kar sakti...
hamre smaaj me lihaj ki vajah se hi ham bahut saree samsyaon se ghire hain..isiliye mai ek group chahti hu jisme ham apni samsyaon ko khul kar poochh sake our uska nisankoch uttar paa sake..meri samajh se mahila varg ko isase bahut fayada hoga...apke paas amay ka abhav hai..our mere paas samy hi samay...kya mai isme apki kuchh madada kar sakti hu....iatni saree baten aapse bhi kahne ki himmat aaoke blog ko hipadh kar aai...usme bahur kuchh aapne apne batre me bhi likha hai....jisase mujhe utsaah mila...
dhnyvaad mere mess ka uttar dene ke liye..aapke pahle hi mess se mujhe meri ek samasya ka hal mila our mai beahd khush hui...jo mai kisi se poochh nahi sakti thi raste najar nahi a rahe the apne ummed ki ek kiran di mujhe...mera atmvishvaas keval do jagah kam padta hai....ek to mujhe lagata hai meri education...our doosri meri beemari...in dono per hi vijay pane ki koshish kar rahi hu...25% tak vijay pai bhi...koshish karrongi ki is samasya se chhutkara mile....our yahi karan hai mer hatasha ka..han mai apana blog jaroor banan chahoongi...lekin uske pahle mai apko apni likhi samgri bhejoongi..shayad isase mera atm vishvas badh jaye..kyonki ek raah batane wala mujhe abhi chahiye...
MAI BAHUT PARSHAAN RAHTI HU .. HO SAKE TO AAP KISI MAHILA MITR SE MERI BAAT KARA DIJIYE.. ya fir agar aapke paas koi upaay ho to mai apni prob aapko bata sakoo...agar meri thidi se help bhi hoti hai iske liye धन्यवाद"
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हमारे समज में लिहाज़ की वजह से ही हम बहुत सरी समस्याओं से घिरे हैं . इसलिए मैं एक ग्रुप चाहती हूँ जिसमे हम अपनी समस्याओं पर खुल कर पूछ सके और उसका निःसंकोच उत्तर पा सकें . मेरी समझ में महिला वर्ग को इससे बहुत फायदा होगा . आपके पास समय का अभाव है और मेरे पास समय ही समय है . क्या मैं इसमें आपकी कुछ मदद कर सकती हूँ . इतनी सारी बातें आपसे भी कहने कि हिम्मत आपके ब्लॉग को पढ़कर हुई . उसमे बहुत कुछ आपने अपने बारे में भी लिखा है जिससे मुझे उत्साह मिला .
धन्यवाद मेरे सन्देश का उत्तर देने के लिए , जिससे मेरी एक समस्या का समाधान मिला , मैं बेहद खुश हूँ . जो मैं किसी से पूछ नहीं सकती थी , रास्ते नजर नहीं आ रहे थे , अपने उम्मीद की एक किरण मुझे दी , मेरा आत्मविश्वास केवल दो जगह कम पड़ता है , एक तो मुझे लगता है मेरी शिक्षा और दूसरी मेरी बीमारी , इन दोनों पर ही विजय पाने की कोशिश कर रही हूँ , तक विजय पाई भी है , कोशिश करुँगी कि इस समस्या से छुटकारा मिले , और यही कारण है मेरी हताशा का .हाँ , मैं अपना ब्लॉग जरुर बनाना चाहूंगी लेकिन उसके पहले मैं आपको अपनी लिखी सामग्री भेजूंगी . शायद इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ जाये क्योंकि एक राह बताने वाला मुझे अभी चाहिए ...
मैं बहुत परेशान रहती हूँ , हो सके तो आप किसी महिला मित्र से मेरी बात करा दीजिये , या फिर अगर आपके पास कोई उपाय हो तो मैं अपनी समस्या आपको बता सकूं . अगर मेरी थोड़ी सी हेल्प होती है इसके लिए धन्यवाद !"
चूँकि वे खुद एक सुलझे हुए ब्लॉगर हैं , इस समस्या को अपने तरीके से मुझसे बेहतर ढंग से सुलझा सकते हैं , उन्होंने मुझसे क्यों कहा यही सोचती रही ...फिर मैंने कयास लगाया कि शायद यह एक आम गृहिणी की समस्या है , जो कुछ नया करने या सीखने की ललक रखती हैं , इसलिए ही मुझसे पूछा गया ... खैर अपनी समझ में जो मुझे आया मैंने उन्हें तुरन्त जवाब दे दिया कि उन महिला को अपनी प्राथमिकतायें तय करते हुए अपने पति और बच्चों से बात करनी चाहिए , और यदि उनसे नहीं कर सके तो किसी विश्वस्त मित्र या रिश्तेदार से ...
कह तो दिया मैंने , मगर मैं उक्त महिला की परेशानी समझ सकती हूँ क्योंकि जो महिला हमेशा घर से जुडी रही है , उसके अलावा उसने कुछ सोचा या जाना नहीं है , उसके लिए नई शुरुआत इतनी आसान नहीं होती...शुरू में परिवार से इतना सहयोग भी नहीं मिल पाता, उसके लिए कई बार अपमान या उपेक्षा को सहते हुए दृढ़ता से जमे रहना ज़रूरी है...नए प्रयास को समझने में समय लगता है , तब तक धीरज और दृढ़ता आवश्यक है , और सिर्फ घर में ही क्यों , घर से बाहर कुछ करना हो तब भी यही दृढ़ता अपनानी आवश्यक होती ही है ...बस फर्क ये हैं कि कुछ वे लोंग घर के भीतर कुछ सुनना पसंद नहीं करते, बाहर की दुनिया में अपना अस्तित्व बनाये रखने लिए जाने क्या-क्या सहन कर जाते हैं , माने ना माने , ये कडवी हकीकत है ....
मैंने पति और बच्चों से उक्त महिला के बारे में बात की , वे लोंग कोई ठोस सुझाव नहीं दे पाए . फिर ब्लॉग जगत में नारी विकास के लिए जागरूक एक सशक्त महिला ब्लॉगर से बात की मगर उनके जवाब ने मुझे बहुत निराश किया . उनका जवाब था कि हर विवाहित महिला एक कम्फर्ट जोन चाहती है इसलिए वास्तव में यह उस महिला की समस्या नहीं ,आदत है ...मैं इसमें कुछ नहीं करना चाहती !
जो महिलाएं अपने कम्फर्ट जोन में रहते हुए कार्य करना चाहती हैं , क्या उन्हें सहायता नहीं मिलनी चाहिए ?? क्या उनकी सहायता करना समय की बर्बादी है ??..
क्या मदद सिर्फ उन महिलाओं की ही होनी चाहिए जो घर छोड़ कर बाहर निकल आयें , या नारी सम्मान , नारी विकास , सशक्तिकरण पर बड़ी बातें करना और बात है , मगर जब किसी को वास्तव में मदद की आवश्यकता है तो यह कहकर कन्नी काट लेना कि यह उनकी समस्या नहीं , आदत है , कहना ज्यादा आसान है .
तब मैंने उन महिला महिला ब्लॉगर से बात की , जो नारी की समस्याओं पर कभी बहुत मुखर नहीं रही हैं , मगर मैंने देखा है कि कई नवोदित महिला ब्लॉगर्स की वे स्वयं आगे होकर सहायता करती हैं , उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि यदि वे अपनी रचनाएँ भेजें तो मैं सोच सकती हूँ कि इसपर क्या किया जा सकता है ...
उक्त महिला की व्यक्तिगत तौर पर मैं भी बहुत सहायता नहीं कर सकती , यह पोस्ट एक छोटा सा प्रयास भर है ....
उस महिला को क्या करना चाहिए या उनकी सहायता और किस प्रकार की जा सकती है ??
आप सुझायेगे ??
ये ठीक है कि उन्होंने रोमन में लिख भेजा है पर बेहतर होगा कि आप इसे फिर से टायप करके हिंदी में परिवर्तित कर दें ,वर्ना इसे पढते हुए एकाग्रता टूटती है !
जवाब देंहटाएंरोमन में लिखी इतनी लम्बी दास्तान पढने को फुर्सत नहीं है और ब्लॉग मेरी बाट जोह रहे हैं -अली सा की बाट पर अमल करेगीं तो शायद फिर लौटूं -ब्लागजगत में परदे के पीछे भी एक धडकती दुनिया है इसका आभास तो हो ही गया !
जवाब देंहटाएंपत्र लेखिका को शायद आत्मविश्वास की कमी है और कुछ नहीं। लेखन ऐसा विषय है फिर वह पत्र लेखन ही क्यों ना हो, प्रत्येक व्यक्ति इसे हव्वा समझता है। वह डरता है कि पता नहीं क्या लिख दिया जाएगा, इसलिए लिखता नहीं। मेरा मानना है कि प्रत्येक इंसान में कोई न कोई खूबी अवश्य होती है, बस उसी का आधार बनाकर व्यवहार करना चाहिए। आत्मविश्वास लौट आता है। महिलाएं अक्सर खाना बनाने में, कढ़ाई-बुनाई करने में, साफ-सफाई रखने में, सजावट में, ऐसे कितने ही विषयों में माहिर होती हैं, यदि ये उन विषयों को लेकर जानकारी दें तो उनका आत्मविश्वास बढ़ जाएगा।
जवाब देंहटाएंमेरा एक सीधा सा प्रशन हैं
जवाब देंहटाएंहर दुखी महिला इतने लोगो में केवल एक पुरुष का ही कन्धा क्यों खोजती हैं
क्या उनके पास एक भी ऐसी महिला नहीं हैं जिस से वो अपने परिवार की बात कर सके नहीं करेगी क्युकी " पुरुष " के कंधे पर सिर रख कर रोने के "सुख " को नहीं छोड़ना हैं
पूरा अंतरजाल भरा पडा हैं महिला अधिकारों , वोमन सेल के पते से , किसी को कुछ करना हो तो करेगा अन्यथा नहीं करेगा
महिला को "स्पून फीडिंग " की आदत हैं और आप के मित्र उनको मिल गए हैं जो खुद नहीं करना चाहते इस लिये उन्होंने इस समस्या को एक महिला को दे दिया .
अगर वो चाहते तो इनके आंसूं पोछ सकते थे और एक पुनह प्रसारित धारावाहिक की तरह कहानी चलती रहती
क्या मदद सिर्फ उन महिलाओं की ही होनी चाहिए जो घर छोड़ कर बाहर निकल आयें , या नारी सम्मान , नारी विकास , सशक्तिकरण पर बड़ी बातें करना और बात है , मगर जब किसी को वास्तव में मदद की आवश्यकता है तो यह कहकर कन्नी काट लेना कि यह उनकी समस्या नहीं , आदत है , कहना ज्यादा आसान है .
जवाब देंहटाएंअंतरजाल पर आप किसी को वास्तविक समझती हैं ??? क्या आप ने कभी इनका ईमेल जो आप ने मुझे भेजा था गूगल पर डाल कर देखा ? क्या आप ने कोशिश की आप को जो मैने कहा की नारी ब्लॉग पर सारे वोमन सेल के नंबर हैं उसको खोज कर आप अपने ब्लोगेर मित्र , जो मेरे भी हैं , उनको या इन महिला को दे दे .
ब्लॉग पर तो पोस्ट आप ने डाल दी कुछ ज़रा से भी प्रयतन किया . केवल मेल मुझे या किसी को फॉरवर्ड करके और ये कह कर मै त्यौहार में बिजी हूँ अभी कुछ नहीं कर सकती आप का कर्तव्य इती हो जाता हैं ?
मैने कम से कम अपने दस वर्ष के अनुभव की बात करके ये तो कहा की ये समस्या नहीं आदत हैं और इसका क़ोई निदान नहीं हैं पर आप ने क्या किया वाणी जी ?
आप मेरा नाम भी लिख देती मुझे क़ोई आपत्ति नहीं हाँ जिन ब्लॉगर मित्र के पास ये समस्या हैं वो भी केवल कुछ इसलिये नहीं ज्यादा करना चाहते क्युकी अपनी पत्नी के सोचने से उनको डर लगता हैं , ऐसा जिस मेल को आप ने फॉरवर्ड किया उसमे था .
तो कहा गलत कहा मैने की विवाहित स्त्रियाँ एक कोम्फोर्ट जोने चाहती हैं और कुछ नहीं ,
एक विवाहित स्त्री इतनी असुरक्षित क्यों होती हैं की उसका पति अगर किसी की समस्या सुलझाना चाहे तो उससे ना कह सके
आप को निराश किया मेरी सीधी सपाट बात ने क्षमा कर दे , जहां कुछ हो नहीं सकता वहा मै ये कहूँ हा हा मै कर दूंगी कहां एक भ्रम पैदा करना मात्र हैं जो मै नहीं करती
http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/03/blog-post_30.html
जवाब देंहटाएंtry an read this and u will understand how common this all is
its not a problem but a habit and habit one can change by their own effort
क्या कहा जा सकता है...... समस्या के साथ उनका अपना व्यक्तिगत जीवन और हालात कैसे यह समझना भी ज़रूरी है..... जो कुछ खास समझ नहीं आया...... अपने निर्णय और खुद पर विश्वास ही काम आयेंगें ...सलाह और समझाइश तो आजकल रीयल वर्ल्ड की भी काम नहीं करती ....फिर यह तो आभासी दुनिया है.....
जवाब देंहटाएं@रचना जी ,
जवाब देंहटाएंयदि मेरे पास समस्या का समाधान होता तो मैं अपने स्तर पर ही कर लेती , मैं खुद नेट से इतनी ज्यादा परिचित नहीं हूँ ,मैं सिर्फ यही कर सकती थी कि इस पर पोस्ट लिख दूं , और वो मैंने किया !
उन्हें कहिए ‘राजभाषा हिंदी’ पर अपने आलेख प्रकाशित करें।
जवाब देंहटाएंये कौन सी बड़ी बात है।
जो मन में आए लिखें।
शुद्ध-अशुद्ध!
हम एडिट कर देंगे।
मैं खुद नेट से इतनी ज्यादा परिचित नहीं हूँ
जवाब देंहटाएंजी वाणी जी
और क्युकी में नेट से परचित हूँ इस लिये इन सब चक्कर से दूर ही रहती हूँ . क्युकी आप ने मेरा नाम ना लेकर मेरी मेल का उल्लेख किया और ये टंच दिया "मगर जब किसी को वास्तव में मदद की आवश्यकता है तो यह कहकर कन्नी काट लेना" अपना पक्ष रखना जरुरी लगा . मै , रश्मि प्रभा या वंदना जिनके नाम आप ने मेल में दिया और कहा वो ज्यादा समय online रहती हैं आप नहीं तो आभास लगा की शायद जो लोग ज्यादा समय ऑनलाइन होते हैं उनके पास समय खाली हैं तो उनको कुछ काम दे दिया जाये . कम से कम मै तो ऑनलाइन अपने आयत निर्यात व्यापार सम्बंधित काम करती हूँ .
समस्या जो भी है उसके लिये समाधान ही तो चाहिये और जिससे जो बन सके वो करे और जिससे ना हो सके तो मना कर दे इसके लिये बहस क्यों की जाये……………कभी कभी ऐसा होता है कुछ महिलाओ के साथ फिर चाहे वो घरेलू हों या वर्किंग या सारा समय काम मे व्यस्त रहती हों या सारा दिन बिल्कुल खाली होती हों हर किसी के ज़िन्दगी मे ऐसे क्षण आ जाते हैं जब उन्हे लगता है कि आखिर मेरा अस्तित्व क्या है ? क्या मै कुछ करने मे सक्षम हूँ भी या नहीं और ये मै ऐसे ही नही कह रही काफ़ी देखा है ऐसा होते तभी कह रही हूँ और ऐसे मे उन महिलाओ को सिर्फ़ एक दिशा देने की जरूरत होती है मगर उसमे सबका सहयोग मिले तो सोने पर सुहागा हो जाये मगर सबका सहयोग मिल नही पाता क्योंकि घर मे तो वो उपेक्षित महसूस करती हैं या कहिये उनकी बात कोई समझना नही चाहता तब वो अवसाद की स्थिति तक पहुंच सकती हैं और उस स्थिति मे जाने से पहले यदि कुछ लोग साथ दें और उन्हे इस स्थिति से बाहर निकलने मे मदद करें तो इसमे कोई बुराई नही है …………बस जिसके पास वक्त है वो तो कम से कम बात कर ही सकता है इससे कम से कम एक जीवन तो संवर सकता है और संवारने वाले को भी सुकून मिलेगा कि ज़िन्दगी मे कम से कम एक तो नेक काम किया।
जवाब देंहटाएंसमस्या सुलझावन की इस प्रविधि की कई सीमाएँ भी हैं, इस बाबत मैं रचना जी की कुछेक बातों से सहमत हूँ! सादर..!
जवाब देंहटाएंआत्मविश्वास यानि अपना विश्वास - जिसे कोई और नहीं दे सकता , और यदि यह विश्वास है कि दूसरा राह दिखायेगा तो अपनी राह बनाना भी आएगा
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि - ये दोनों ही नज़रिए गलत हैं कि ---- (१) "यदि कभी भी , कोई भी , हमसे मदद मांगे तो मदद करनी ही होगी - तभी वह व्यक्ति जो महिला संघर्ष वादी होने का "दावा" कर रहा /रही हो - वह ठीक और सच्चा है ; और यदि वह हर एक उस व्यक्ति की मदद न करे जो मदद मांगे तो वह "हाथी के दांत खाने के और, और दिखने के और" वाला व्यक्तित्व है " और ------- (२) कि हर वह व्यक्ति जो मदद मांग रहा / रही हो वह सिर्फ दिखावा कर रहा है | यह कि अंतरजाल पर कुछ भी वास्तविक नहीं है "
जवाब देंहटाएंपहले केस में , जो व्यक्ति महिलावादी है, वह बहुत कुछ कर रही हैं - वह कोई ईश्वर तो हैं नहीं, कि हर एक की हर समस्या का समाधान करती रहें | उनके पास भी दिन में वही २४ घंटे हैं जो आपके और मेरे पास हैं | ऐसे में वे जंगली बेल की पत्तियां काटने की अपेक्षा जड़ काटने की कोशिश में अपना समय लगना चाहें , तो यह उनका अपना तरीका है - उनका अधिकार है कि वे किस रूप में कार्य करें | उन पर इस तरह आक्षेप करना कि उन्होंने कन्नी काट ली, ठीक नहीं |
दूसरे केस में - रचना जी से - हाँ , हो सकता है कि ये महिला जो मदद मांग रही थीं, या वे पुरुष ब्लोगर जो इस मदद की अपील को वाणी जी को फॉरवर्ड किये, या वाणी जी जिन्होंने इसे आपको फॉरवर्ड किया - हो सकता है कि वे "कम्फर्ट ज़ोन" या "आदत" के अधीन हों जैसा आपने कहा | **********तो क्या हुआ ?********???? यदि वे महिला सच ही लिखना चाहती हैं और आत्म विश्वास की कमी के चलते नहीं कर पा रही, तो २-४ पोस्ट में मदद हो जाने के बाद हो सकता है उनका टेलेंट निखर आये ........... क्या आप जानती हैं कि जो वाल्मीकि एक समय में "राम राम" भी न बोल पा रहे थे - वे एक दिन पूरी रामायण क्यों रच सके ? क्योंकि नारद जी ने उनकी शुरुआत में कुछ हलकी सी मदद कर दी | यदि नारद कहते कि यह अंगुलिमाल डाकू मदद के योग्य नहीं, सिर्फ दिखावा कर रहा है, तो शायद वाल्मीकि रामायण कभी न लिखी जाती !!!! क्या पता जो महिला आज मदद चाह रही हैं, उनमे किस स्तर का टेलेंट छुपा है? क्या बुराई है यदि वे मदद मांग रही हैं? यदि वे पुरुष ब्लोगर अपनी पत्नी की भावनाओं को आहत ना करना चाहें, तो इसमें क्या बुराई है? क्या किसी और की मदद के लिए अपनी पत्नी को हर्ट करना ठीक होगा? (चाहे पत्नी का नजरिया गलत ही क्यों न हो) | और यदि वाणी जी त्यौहार में बिजी थीं, और किसी और से मदद करवाना चाहा, तो भी इसके पीछे इंटेंशन तो मदद का है ही ना - तो क्या बुराई है इसमें? यदि मुझसे दस लोग मदद मांगे और मुझमे काबिलियत हो उनकी मदद कर सकने की, तो भले ही १० में से ९ धोखा दे रहे हों, तो क्या उस दसवे को इसलिए मदद नहीं की जानी चाहिए कि बाकी ९ धोखेबाज़ हैं? यदि समय और साधन हैं, तो मदद करनी लाजिमी है, ऐसा मेरा विचार है |
वाणी जी ,
जवाब देंहटाएंसुझाव तो शायद मैं भी कुछ न दे पाऊं ... क्यों कि जब तक असल समस्या का पता न हो कुछ कहना बेकार है ..वैसे महिलाओं पर घर में और बाहर काफी बंदिशें होती हैं ...और यह ज़रुरी नहीं कि बंदिश कोई घर का सदस्य ही लगाए ... उसकी अपनी जिम्मेदारियां और सोच ..अपनी प्राथमिकताएं , घर के सदस्यों का स्वाभाव इन सबको देखते हुए ही कोई महिला उचित निर्णय ले सकती है ...बहुत बार मन करता है कुछ करने के लिए पर नहीं कर पाते औरों का ख़याल करते हुए ..तो सबसे पहले तो खुद को इस काबिल बना सकें कि एक दिशा निर्धारित की जा सके ..यदि वो कुछ लिखती हैं तो बेझिझक ब्लॉग पर डालें ... सही गलत के बारे में न सोचें ... यदि खुद नहीं पोस्ट कर सकतीं हैं तो मनोज जी ने सुझाव दिया है उनको भेजा जा सकता है ... और राजभाषा के लिए मेरे मेल पर भी भेजा जा सकता है ... धीरे धीरे आत्मविश्वास आ जायेगा और वो स्वयं ही अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर सकेंगी ..
आभासी जगत में समस्या को समझना और उसका निवारण करना कठिन है। वास्तविक जीवन सुलझाया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंउन्होंने सही कहा आपके पास समस्या का समाधान तो है ही ...
जवाब देंहटाएंहमें रोमन से दिक्कत थी और आपने दूर कर दी :)
यह तो उस पहले से खस्ताहाल परेशान महिला बेचारी की ही फजीहत हो गयी ....उसने अपनी समस्या
जवाब देंहटाएंकिसी पर सहज ही विश्वास कर साझा किया तो उसने किसी और को कर दिया और उसने फिर किसी /कईयों को और कर दिया ...सारी गोपनीयता तार तार हो गयी -वे कैसे पुरुष महोदय हैं जिनकी ऐसी ही काबिलियत होने के बावजूद भी कोई उन्हें काबिल साझ बैठा है :)
बाकी तो रचना जी से यहाँ पूरी सहमति है-यहाँ बिलकुल स्पष्ट है कि वाणी जी अपनी जिम्मेदारी को ठीक ढंग से निर्वहन न कर दूसरे पर थोप कर अपने दायित्व की इति श्री कर बैठीं -यह तो बिलकुल ठीक नहीं -वाणी जी बजाय इस टिप्पणी को डिलीट करने के आप अपना पक्ष पुनः प्रस्तुत करें -क्या आप मुझसे ,रचना जी या एतदर्थ किसी अन्य ब्लॉगर से अधिक व्यस्त हैं ? अगर हैं भी तब भी किसी पुकार पर आप अपने दायित्व के निर्वाह के बजाय कोई ओट ले लेगीं -और अन्यथा न लें इस पूरे मामले में कथित पुरुष ब्लॉगर की भी भूमिका भी सराहनीय नहीं है !
... no comments.
जवाब देंहटाएं@@
जवाब देंहटाएं१.पहली बात तो यह ही कि ना मैने और ना ही उक्त पुरुष ब्लॉगर ने कोई गोपनीयता भंग की है . वे महिला किसी अन्य महिला अथवा ग्रुप की मदद चाह रही थी, यहाँ मिल रही टिप्पणियों से वे समझ सकेंगी कि उन्हें किनसे मदद मिल सकती है ...बल्कि मुझे अच्छा लगा कि उन्होंने मुझ पर इतना विश्वास किया कि मैं उस महिला की मदद का कोई रास्ता निकल सकूँ , जिनका आत्मविश्वास डगमगा गया है ...
2. उनकी मेल को फॉरवर्ड करने के और उस पर पोस्ट लिखने के लिए मैंने उनसे अनुमति भी ले ली थी !
3.पहली बात तो मुझे नेट की बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है , दूसरा ब्रोडबैंड का समय भी सीमित है , और उस पर त्योहारों का मौसम , इसलिए मैं बहुत ज्यादा समय यहाँ नहीं बिता पा रही हूँ !
समस्या या पिंग पॉन्ग....
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
यहाँ हो रहे विमर्श को देखकर अच्छा लगा. यदि वे महिला इसे पढ़ेंगी तो उन्हें कुछ सहायक सूत्र मिल जाएँ. पर उनकी बातें पढने से यही लगता है की लेखन के क्षेत्र में प्रवेश कर पाना ही उनकी एकमात्र समस्या नहीं है. उनकी स्थिति कमोबेश बहुत सी भारतीय महिलाओं जैसी हो चली है जो भली प्रकार अपने गृहणी के उत्तरदायित्वों का निबाह करतीं हैं पर उम्र के एक दौर पर उनके भीतर सूनापन घर करने लगता है जब बड़े बच्चे स्कूल में और पति दिन भर ऑफिस में समय बिताते हैं. यह अकेलापन उन्हें बहुत सालता है और वे कुछ नया और कुछ महत्वपूर्ण करना चाहती हैं. यह मिडलाइफ क्राइसिस भी हो सकता है और आइडेंटिटी क्राइसिस भी.
जवाब देंहटाएंमेरा इंटरनेट खराब रहा इसलिए इस पोस्ट को जल्द नहीं देख पाया. सभी को यह बताने में कोई हर्जा नहीं है कि मैं ही वह व्यक्ति हूँ जिसने यह मैटर वाणी जी को फौरवर्ड किया था. वह महिला मेरी गहन मित्र नहीं है पर मेरे ब्लौग पर लेख और कथाएं पढ़कर उन्हें यह सहज ही लगा कि वे मुझसे अपनी समस्या शेयर करें. चूंकि मैं कतिपय कारणों से उनकी समस्या का हल निकालने में असमर्थ था इसलिए यह मेल आपको फौरवर्ड की. कुछ समस्याएँ जैसे कोई पुराना कटु अनुभव होना, स्वयं पुरुष होने के कारण यह बेहतर समझना कि कोई महिला उनसे संपर्क करके उनसे बात करे तो ज्यादा ठीक रहेगा. और इसके साथ ही यह समझना कि आभासी दुनिया के अपने खतरे हैं. भारतीय ढाँचे में बहुत कम पति पत्नी यह पसंद करेंगे कि उनके जीवनसाथी दुसरे व्यक्ति के निजी मामले में रूचि लें. कमोबेश ऐसा ही मेरे घर में भी है. मैं जहाँ ब्लौगिंग और अपने ब्लौग को लेकर उत्साहित रहता हूँ वहीं मेरी पत्नी को इनमें कोई रूचि नहीं. उनका कहीं कोई प्रोफाइल भी नहीं है और तो और ईमेल भी नहीं है. उनके स्वभाव से परिचित होने के कारण मैंने यह बात उनसे शेयर करन ठीक नहीं समझा और आपको मेल किया.
कोई भी व्यक्ति जो हमारे पास किसी समस्या से ग्रस्त हो सहायता के लिए आता है उसकी सहायता करना हमारा धर्म है. उसकी समस्या को उनकी आदत या कम्फर्ट ज़ोन का परिणाम मानकर नज़रंदाज़ कर देना ठीक नीति नहीं है. मनोवैज्ञानिक आदि छोटे से छोटे सिम्पटम्स पर भी ध्यान देने के लिए कहते हैं ताकि मन में अवसाद न पनपने पाए. क्या हम किसी के लिए इतना भी नहीं कर सकते?
लेखन उनके भीतर के अकेलेपन को बाहर लाने की अच्छी रेमेडी हो सकता है हांलांकि मैं यह मानता हूँ कि लोगों से घुलनेमिलने का कोई विकल्प नहीं है. फिर भी इतना तो है कि यदि वे स्वयं में आत्म्विश्यास लाकर कुछ लिखे लगें या अपना ब्लॉग बना लें तो उनकी कुछ समस्याएँ कम ही होंगीं. उनके नए मित्र बनेंगे और संवाद बढेगा.
मुझे नहीं लगता कि इस मामले में उन महिला की कोई फजीहत हो रही है, उल्टे उन्हें यह जानकर दिलासा ही मिलेगा कि दुनिया में बहुत से लोग वाकई दूसरों की समस्या को सुलझाने के लिए प्रयत्नरत हैं, और यह भी पता चलेगा कि उनकी समस्या के प्रति लोगों की कितनी विपरीत राय भी हो सकती है.
रहा प्रश्न मुझमें किसी काबिलियत के होने का, मैं ऊपर स्पष्ट कर ही चुका हूँ कि मैंने किन बातों को सोचकर आपको वह मैसेज किया था. काबिलियत का तो मैंने वैसे कोई दावा भी नहीं किया.:)
आपने बिलकुल ठीक किया है. आपने या मैंने उनकी निजता भंग नहीं की है और कोई छीछालेदर भी नहीं की है. यदि उन्होंने यह पोस्ट पढ़ी होगी तो उनका सन्देश मुझे अवश्य मिल जाएगा.
मैं ऐसे अनेक पुरुषों को जानता हूँ जो मौका देखते रहते हैं कि कब उन्हें किसी समस्याग्रस्त महिला की मदद करने का मौका मिले और वे कुछ खयाली पुलाव पका सकें. ईश्वर की कृपा रही है कि आज तक ऐसा कोई विचार मन में नहीं आया. लेकिन हर वाकये से कुछ सीखता हूँ इसलिए इससे भी बढ़िया सीख मिली है. आइन्दा ऐसा कुछ होने पर पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर दूंगा. मुझे किसी के फटे में टांग अड़ाने की क्या ज़रुरत है!?
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@ रचना जी अक्सर 'आदतों' के लिए ही मदद की ज़रुरत होती है...फिर वो ड्रग की आदत हो या फिर चोरी की...
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट से ज्ञान की प्राप्ति हुई कि आत्मविश्वास की कमी हो या फिर कम्फर्ट ज़ोन की चाह, ये भी 'आदत' में शुमार हैं....चलिए ये भी मान लेते हैं....लेकिन महिलाओं में आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, उनके अधिकारों से अवगत कराने वाले और स्त्रियों की बेहतरी के बारे में सोचने वाले, और ऐसे ही उद्देश्य को लेकर सामूहिक ब्लॉग चलाने वाले, अगर ऐसी महिलाओं का साथ नहीं देंगे तो फिर कौन देगा भला.?
इसमें क्या शक़ कि इस तरह से सामूहिक ब्लोग्स की भरमार है अंतरजाल में...किन्तु वाणी जी के माध्यम से 'नारी' जैसे सामूहिक महिला ब्लॉग की मदद तथाकथित महिला को यकीनन एक दूसरे प्रकार के कम्फर्ट ज़ोन में ले आता....कम्फर्ट ज़ोन की ख्वाहिश रखना कोई बुरी बात नहीं है...ख़ास करके अगर महिला में ज़रा सी आत्मविश्वास की कमी है, वैसे मुझे उक्त महिला में किसी भी तरह से आत्मविश्वास की कमी नज़र नहीं आयी...जो व्यक्ति अपनी कमियों को ना सिर्फ़ पहचान ले बल्कि उन्हें स्वीकार करे, वह सशक्त चरित्र का स्वामी होता है...हाँ हर महिला 'शी वूमन' नहीं हो सकती...मेरे विचार से उक्त महिला अपनी बची-खुची कमियों को सुधार कर स्वयं को उत्तम बनाना चाहतीं हैं जो बहुत ही अच्छी बात है...
जहाँ तक मदद का प्रश्न है...कोई मदद के लिए पुकार रहा हो तो उसे उंगली पकडाने की बजाय...उसकी कमियों की विवेचना करना उचित नहीं...जाहिर है...उक्त महिला ने ईमानदारी से अपनी कमियों को पहचानने की कोशिश की है और मेरे विचार से ये उनकी सबसे बड़ी उदारता और शक्ति है...
मेरा मशवरा उक्त महिला से यही है..कि आप को किसी की मदद की आवश्यकता नहीं है...बल्कि आप बहुतों से सशक्त नज़र आ रहीं हैं...आप तो बस धडल्ले से लिखें...यहाँ इस अंतरजाल में हर तरह की महिलाएं हैं....और सच पूछिए तो अधिकतर अति-साधारण स्त्रियाँ हैं....एक बार आपका जब परिचय होगा सबसे तब आप स्वयं सोचेंगी...आप बेकार में घबरा रहीं थीं...मैं सच कहतीं हूँ...
वाणी जी...त्यौहार तो बस दो-चार दिनों के होते हैं...आप उनसे उतनी तो मोहलत ले ही सकतीं थीं...:)
मिश्र जी की समस्या समझ में आती है...उन्होंने अच्छा ही किया जो किया...कभी कभी पराई आग में अपने हाथ भी जल जाते हैं...
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जवाब देंहटाएं..निशान्त जी , तो वे हजरत आप निकले..मगर सामने आये और स्वीकार किया ,सल्यूट यू..मगर ये पर उपदेश कुशल बहुतेरे की भूमिका? -वो बात आपसे बेहतर कौन समझ सकता है कि चैरिटी बिगिन्स एट होम ...और आपने अपनी जिम्मेदारी खिसका दी और जिसको खिसकाई वे भी खिसक लीं और मत्थे मढ़ दिया नारी के ..जैसे यह सब उसी का काम हो ..जबकि एक बहन की फ़रियाद अनसुनी हुयी ..निशांत जी आप की जो खासियत और उसके मुताबिक़ जो आप लिखते हैं इस हिसाब से उस बिचारी ने कतई कोई भूल नहीं की थी ..सही जगह अपने निर्णय के मुताबिक़ पहुँची थी -और आप द्वारा उसे टरका देना ..यही असलियत है रेटरिक लिखने की और उसे अमली जामा पहनाने की ..अब यह उस बेचारी का दुर्भाग्य कहिये ...और हाँ आप के यहाँ भरोसे का यह हाल है? अब मुझपे आरोप लगेगा कि मैं व्यक्तिगत छीटा कशी कर रहा हूँ ....इसलिए इसे आगे नहीं बढाता मगर यह पूरा प्रकरण बहुत हताश करने वाला है ..
लोग कैसे किसी पर भरोसा करें!
शायद ऐसे ही मामलों में असली चेहरा उघडता
है ...वह बेचारी गरीब नारी !मैं क्षमा चाहता हूँ इन लफ्जों के लिए ...मगर मुंहदेखी नहीं कर पाता!
उन महिला ने कोई गलती नहीं की . निशांतजी की पोस्ट ने उसे विश्वास दिलाया कि वे अच्छे इंसान हैं , उनसे मदद ली जा सकती है और निशांतजी ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभायी !
जवाब देंहटाएंनिशांतजी ने समस्या को टरकाया नहीं , बल्कि सही स्थान पर पहुँचाया ! उनके मन में खोट होती तो वे इस इमेल को अपनी उपलब्धि बता कर दिखा सकते थे कि किस तरह महिलाएं उनसे प्रभावित हैं , बल्कि उन्होंने उन महिला की समस्या का निराकरण एक घरेलू महिला से करवाने की पहल की, जिसका आत्मविश्वास ब्लॉग लेखन के दौरान कम ज्यादा होता रहा है!