जाते हुए पुराने वर्ष ने इस देश के माथे पर इंसानियत को शर्मसार करने वाला ऐसा बदनुमा दाग लगा दिया , जिसकी टीस वर्षों सालेगी .
दादी की बात बार -बार याद आती रही , आजकल पशुओं की संख्या कम हो गयी है , क्योंकि वे मनुष्य रूप में जन्म लेने लगे हैं !!
देश की एक बेटी का हर माँ की बेटी हो जाना ,किस माँ की आँख नम ना हुई होगी !!
गहन मानसिक पीड़ा के इन क्षणों को कभी चुप होकर तो कभी कुछ मुखर होकर पढ़ते रहे , सुनते रहे , देखते रहे , मनन और मंथन भी किया की बहुत थूक चुके हम दूसरों पर , दूसरी संस्कृतियों और सभ्यताओं पर .
अब समय आ गया है कि स्वयं की धरती , संस्कृति और सभ्यता पर ही एक भरपूर नजर डाल ली जाए .
नहीं , मैं निराशावादी नहीं हूँ ...जानती और मानती हूँ , गिर कर संभलना , गिरे हुए को संभालना , किसी को गिरने से बचाना ही मानव जीवन के परम कर्तव्य और हेतु हैं ....दुर्दांत घटना पर शब्दों में कुछ कहने से बेहतर लगा रहा था ,कुछ किया जाए, कुछ किया नहीं तो लिखा क्या जाए ! इसलिए थोडा बहुत कुछ किया भी गया हालाँकि सोयी हुई सुखी आत्माओं को जगाना इतना आसान भी नहीं , मगर चेतना के प्रवाह को गति देने के प्रयास में लगे हुए हैं .
गहनतम दुःख के इस क्षण में नम आँखों से देश में युवाओं का बड़ी संख्या में एकजुट होकर प्रदर्शन करते हुए खुल कर अपनी मांगे रखने का साहस , हौसले और जुल्म के आगे कदम नहीं रोकने की इक नयी मिसाल कायम करते हुए देख गर्व भी हुआ ....
मानवता को शर्मसार करने वाली इस घटना ने यह साबित कर दिया की इस देश में समाज , प्रशासन ,पुलिस और कानून का सम्मान अथवा भय अब कहीं नहीं रह गया है . और यह बेअदगी , बेहयाई रातों -रात नहीं हुई . इस समाज का हिस्सा , देश के नागरिक होने के नाते हम सब भी कहीं न कहीं इसमें जिम्मेदार हैं .
मादक पदार्थों की सहज उपलब्धता और उनके सेवन पर कोई पाबन्दी नहीं होने , अश्लील फिल्मों , साहित्य , पत्र पत्रिकाओं का प्रचुर मात्र में वितरण इन घृणित घटनाओं के विशेष उत्प्रेरक होते हैं . पुलिस और प्रशासन यदि इन पर रोक लगा दे तो समाज में अपराध की दर कम करने में बहुत आसानी होगी .इसके अतिरिक्त
स्वार्थपरक जयचंदी मानसिकता , जनप्रतिनिधियों को चुनने में असावधानी , जन सेवा के विभिन्न क्षेत्रों को लाभ अथवा व्यापार केन्द्रित बनाने, आदि ऐसे कारण है जिसमे पुलिस अथवा प्रशासन से अधिक समाज की तथा समाज की इकाई होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति की जिम्मेदारी और जवाबदेही भी है .
परिवार और समाज में हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी को समझे , अपने घर में अपने बच्चों को लिंगभेद के बिना अच्छी शिक्षा दे , सही- गलत का भान कराने हेतु घरों के साथ ही विद्यालयों में भी नैतिक शिक्षा अनिवार्य हो . परिवार और समाज स्त्रियों को दोयम ना मानते हुए बराबरी का हक़ दे , उनके सम्मान को सुनिश्चित करे . लड़कों की ही तरह लड़कियों के खानपान पर भी ध्यान देकर शारीरिक तथा मानसिक सुदृढ़ता के लिए प्रोत्साहित करें . प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना होगा की इस देश में एक भी व्यक्ति निरक्षर ना रहे ,विद्यालयों में भी नैतिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाए , उसे एक गैरजरूरी विषय के रूप में ना पढ़ाया जाए .
हर व्यक्ति अपने मोहल्ले , अपने गांवों , कस्बों और शहरों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने में सिर्फ कानून पर निर्भर ना रह कर स्वयं की जवाबदेही भी तय करे . हमें इससे क्या , जैसा रवैया ना अपनाते हुए छेड़छाड़ की घटनाओं अथवा अश्लीलता की प्राथमिक अवस्था से ही अनदेखी ना करे . कई छोटी घटनाओं को सही समय पर रोक दिए जाने पर बड़ी दुर्घटनाएं टाली जा सकती है .
राज्य और शासन से यह अपील रहेगी ही -- शिक्षण संस्थाओं में नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता पर विशेष ध्यान दे . मादक पदार्थों और अश्लील साहित्य , फिल्मों आदि पर रोक लगाने के साथ ही इनमे लिप्त पाए जाने पर कठोर सजाओं का प्रावधान रखा जाए .
स्त्रियों के साथ होने वाली ऐसी घटनाएँ ना होने देने के लिए पुलिस सेवा में महिलाओं का प्रतिशत बढाया जाने के साथ ही चौकस गश्ती दलों का गठन हो . स्त्रियों के शारीरिक शोषण सम्बन्धी घटनाओं के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनाये जाएँ और कम से कम समय में कठोर से कठोर सजा का प्रावधान हो ताकि कानून के प्रति लोगो के मन में डर हो . ऐसी जघन्य घटनाओं के लिए फांसी की सजा से कम और कोई सजा मान्य ही नहीं हो.
इस देश में अब कोई दामिनी ना हो , इसी संकल्प का प्रण लेने की गुहार के साथ नए वर्ष की बहुत शुभकामनायें !!
आपके सुझावों पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है - सरकार अभी सो रही है, जगने पर शायद देश की दशा पर ध्यान जाए! धन्यवाद और मंगलकामनाएं!
जवाब देंहटाएंसबसे प्रमुख बात है अपनी जिम्मेदारी को समझना और मानसिक सोच में बदलाव।
जवाब देंहटाएंदामिनी तो हों
जवाब देंहटाएंबल्कि दुष्कर्मी न हों।
किसी कारण से उस लड़की को दामिनी नाम दिया गया , इसलिए ही ...
हटाएंसभी सुझाव परिणाम-सम्मत हैं।
जवाब देंहटाएंतंत्र कुम्भकर्णी नींद में है, जगने को तैयार नहीं। हथौड़े लग रहे हैं, पता नहीं उनके हृदय की दीवार कैसी है?
आशा है किसी दिन सब ठीक हो, युवावर्ग के जागने से कुछ आस तो बंधी है ...
जवाब देंहटाएंतममेघ छंटे उजियारा हो ………
जवाब देंहटाएंसमर्थन के साथ कामना है कि जो भी विघ्न आये,इश्वर उसे दूर करें ............ शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंदिन तीन सौ पैसठ साल के,
जवाब देंहटाएंयों ऐसे निकल गए,
मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
ज्यों कहीं फिसल गए।
कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
कुछ आकुल,विकल गए।
दिन तीन सौ पैसठ साल के,
यों ऐसे निकल गए।।
शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
इस उम्मीद और आशा के साथ कि
ऐसा होवे नए साल में,
मिले न काला कहीं दाल में,
जंगलराज ख़त्म हो जाए,
गद्हे न घूमें शेर खाल में।
दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
ऐसा होवे नए साल में।
Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.
May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!
समाज में चेतना जागृत हो ॥इसी आशा में ... नव वर्ष मंगलमय हो ।
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ आपकी बात से ....
जवाब देंहटाएंशुभ दिन के साथ ही शुभकामनाएं
सादर
बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामना.
मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.
hamen apane ghar se hi bachchon ko susanskarit karne kee pahal karni hogi , aaj nahin to aane vale kal men damini nahin hogi.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद ऐसा हुआ कि नव वर्ष की खिशियाँ मानाने का दिल नहीं किया .
जवाब देंहटाएंगहन सोच विचार की ज़रुरत है। विचारणीय लेख।
एक स्वस्थ, सुरक्षित और सम्पन्न नव वर्ष के लिए शुभकामनायें।
आपकी बात का पूर्ण समर्थन। बस एक बात कहनी है कि तारीखे हमें नहीं बनाती, हम तारीखों को बनाते हैं। इस देश की प्रत्येक तारीख और वर्ष हम से कह रहा है कि मुझे बदनाम मत करो। इस पंक्ति के संदर्भ में - जाते हुए पुराने वर्ष ने इस देश के माथे पर इंसानियत को शर्मसार करने वाला ऐसा बदनुमा दाग लगा दिया।
जवाब देंहटाएंये नया साल काश यह सारे बदलाव लेकर आये जो आपने कहे.
जवाब देंहटाएंआपका कहना सही है ...
जवाब देंहटाएंकम से कम २०१३ मं एक संकल्प तो ले ही सकते हैं ... जिनके बेटे हैं वो उन्हें नारी का सम्मान ओर उचित आदर देने की शिक्षा देंगे .... बस ये एक संकल्प अगर सभी ले लें तो दिशा बदल सकती है समाज की ...
नैतिक शिक्षा की सचमुच जरुरत है -आश्चर्य है अब इसे पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है !
जवाब देंहटाएंआज स्माज को नी सोच नई दिशा चाहिए..एसी उम्मीद के साथ नव वर्ष की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसारे सुझाव बहुत ही अच्छे हैं ,अगर इनका पालन किया जाने लगे तो फिर शिकायत का कोई मौका ही न रहे .
जवाब देंहटाएंखासकर
"परिवार और समाज स्त्रियों को दोयम ना मानते हुए बराबरी का हक़ दे , उनके सम्मान को सुनिश्चित करे ."
स्त्रियों क दोयम न समझा जाए तो उनपर विजय प्राप्ति की लालसा भी नहीं रहेगी और ऐसी जघन्य घटनाएं टल जायेंगी
काश सब जागें, ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
जवाब देंहटाएंछोटे छोटे आम सुझाव जो खास बदलाव ला सकते हैं.... पूरे समाज को शर्मिंदा करने वाली ऐसी घटनाएँ कभी न हों
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे औ र अनुसरणीय सुझाव ।दामिनी ने हम सब को जगाया है जाग्रत रहे ।
जवाब देंहटाएंआपसे अक्षरश: सहमत. हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
...चिन्ता की बात यही है कि ऐसी घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं !
जवाब देंहटाएंशुभ हो ....
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