कल सुबह पेड़ पौधों को निहारती फुर्ती से कदम बढ़ाती एक महिला जाते -जाते मुड़ कर आई और गुड़हल के फूलों की और इशारा करते हुए बोली।
क्या आप एक फूल दे दोगे मुझे !
क्या आप एक फूल दे दोगे मुझे !
हां . क्यों नहीं !
उसे हाथ बढ़ाकर फूल तोड़ते देख मुझे एकदम से हंसी आ गयी क्योंकि उनसे फूल नहीं टूट पा रहा था।
इससे पहले कभी फूल तोड़ा नहीं !!
मेरी कही इस बात पर बड़ी सी मुस्कराहट के साथ बोली "कल टीचर्स डे है तो सोचा बेटी फूल ले जाए चौकलेट के साथ , आस पास कही मिला नहीं। मैं पत्तों के साथ तोड़ना चाह रही थी और यह भी भय की ज्यादा ना टूट जाए। "
ओहो ! पराई बगिया में भी कोई इतनी एहतियात रखता है!?? मन ही मन खुश होते हुए मैंने कहा - लाओ मैं तोड़ देती हूँ।
अभी कुछ दिनों पहले ही जन्माष्टमी पर छोटे बच्चे डलिया लेकर घूम रहे बच्चों के उचकते नन्हे हाथ फूलों तक नहीं पहुंचे तब भी उन्हें फूल तोड़ कर दिए। जब पौधा ही कोताही नहीं करता रोज फूलों को खिलाने में तो हम क्यों करे। पुराने घर की बगिया में ढेरों ग्राफ्टेड गुलाब चुन कर दिए छोटे बच्चों को उनके शिक्षक /शिक्षिकाओं के लिए।
ऐसे बेगरज किये छोटे कार्य कई बार छोटी ख़ुशी दे जाते हैं , कई छोटी खुशियाँ मिलकर बड़ी खुशियाँ बन जाती हैं। विश्वास बना रहता है कि दुनिया में बहुत कुछ बिना वजह भी होता है।
बच्चों को भी अपार ख़ुशी मिलती है अपने शिक्षक /शिक्षिकाओं के लिए फूल और तोहफे जुटाने में. याद आया कि कल शिक्षक दिवस है , बच्चे स्कूल में थे तो याद रहता था , मैम को ऐसा कार्ड देना है , फूल कौन से ले जायेंगे , सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य गान आदि की तैयारियां अलग से ! बच्चों के अपनी ख़ास पसंद वाली मैम के लिए ख़ास उत्साह होना लाजिमी है।
अपने विषय में प्रवीणता और सुव्यवहार से गुरु सहज ही अपने विद्यार्थियों के बीच लोकप्रिय हो जाते हैं। अपने कोमल और उदार स्वभाव से कई बार शिक्षक अभिभावकों से भी ज्यादा आदर सत्कार और स्नेह प्राप्त करते हैं।
बच्चों में बचपन से ही गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा और सम्मान का भाव निरोपित करने में अभिभावकों की भूमिका भी कम नहीं होती। शिक्षकों की डांट फटकार अथवा सजा देने के कारण को समझकर बच्चों को समझाते अभिभावक बच्चों के मन में उनके प्रति सम्मान को सुरक्षित रखते /रख सकते हैं। बाकी प्रेम और स्नेह -व्यवहार को आत्मसात करने की शक्ति यूँ भी बच्चों में होती है।
बड़े होने पर भी हम अपने उन गुरुओं को नहीं बिसराते जिन्होंने हमें सुसंस्कार दिए।
कई बार अनजाने ही श्रद्धा उपजती है उनके प्रति भी जो हमारे शिक्षक नहीं है जिन्होंने हमें पढाया नहीं परंतु अपने व्यवहार और व्यक्तित्व से ही इतना प्रेरित करते हैं कि सामने उपस्थित हो तो शायद मुंह से बोल भी न फूटें लेकिन मन ही मन श्रद्धा से हाथ जुड़ जाते हैं।
बचपन की एक घटना याद आती है। छोटे कसबे में घर के पास ही दो स्कूल और कॉलेज होने के कारण हमारे आस- पास के घरों में किराये पर रहने वाले शिक्षकों और विद्यार्थियों की भी संख्या काफी तादाद में थी। पास में ही जातियों के आधार पर बंटे हुए छात्रावास भी जिनके आपसी मनमुटाव के कारण आये दिन लड़ाई- झगड़ों के समाचार मिलते ही रहते थे।
एक दिन बुखार के कारण स्कूल नहीं जाना हुआ। सड़क से लगती जालीदार खिडकियों के सहारे पलंग पर लेटे यूँ ही आँख लगी थी कि जोरदार शोर शराबे के बीच बाहर झांकर देखा तो कोई दस पंद्रह लड़के " पकड़ो पकड़ो" का शोर करते किसी एक लड़के का पीछा करते हमारे घर के में गेट के पास आ ठहरे थे । उनके हाथों में हॉकी स्टिक , लाठियां भी थी। भय और घबराहट से नानी को पुकारते मैं तीन सीढियाँ एक साथ लांघ गई। लड़कों की भीड़ पड़ोस के प्रोफ़ेसर साहब के घर के बाहर रुकी थी क्योंकि जिस लड़के का पीछा करते हुए वे आये थे वह उन प्रोफ़ेसर के घर में छिप गया था। ये सभी छात्र एक ही कॉलेज से थे , और प्रोफ़ेसर उनके शिक्षक।
छात्र बाहर खड़े अनुरोध करते रहे - सर ,आप एकबार इस लड़के को बाहर निकाल दें , हम चले जायेंगे।
प्रोफ़ेसर साहब अड़े हुए थे कि मैं अपने सामने किसी लड़के से मारपीट नहीं होने दूंगा . तुम चले जाओ।
थक हार कर लड़के वापस लौट गए।
क्रोधित युवा भीड़ का अपने प्रोफ़ेसर के सामने नतमस्तक होते देखने का यह अनुभव मुझे हमेशा याद रहता है।
उस प्रोफ़ेसर का उस छात्र से कोई सम्बन्ध नहीं था , मगर उन्होंने उसकी सहायता की , यूँ ही निःस्वार्थ …
आये दिन जब शिक्षकों और विद्यार्थियों की झड़प के बारे में सुनती हूँ तो उक्त घटना और बेतरह याद आती है।
आध्यात्मिक गुरुओं / शिक्षकों द्वारा चेले , विद्यार्थियों के शोषण की ख़बरों के बीच क्या आज भी हम भी हम गुरु पर इतना भरोसा कर सकते हैं !! ना ही आजकल विद्यार्थियों में इतनी सहिष्णुता बची है।
कौन दोषी है . कौन पाक साफ़ . इस समय में पहचान मुश्किल होती जाती है क्योंकि षड्यंत्रकारी दोनों ही ओर है !
और शायद इसलिए ही आम जन के बीच यह यकीन भी उठता जाता है कि कई बार सहायता , स्नेह , प्रेम यूँ ही / यूँ भी होता है निःस्वार्थ !!
शिक्षक दिवस की बहुत शुभकामनायें !!
बढ़िया लेख लिखा आपने !
जवाब देंहटाएंमगर अब शिक्षकों का अब वह सम्मान कहाँ ...
कौन धूप में,जल को लाकर
सूखे होंठो, तृप्त कराये ?
प्यासे को आचमन कराने
गंगा, कौन ढूंढ के लाये ?
नंगे पैरों, गुरु-दर्शन को, आये थे, मन में ले प्रीत !
सच्चा गुरु ही राह दिखाए , खूब जानते, मेरे गीत !
बिलकुल सही लिखा है. और जब भी ये यूँ बेगरज होता है...असीम आनंद दे जाता है.
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख ! बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की शुभकामनायें !!
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शुभकामनाएँ.....!
जवाब देंहटाएंउम्मीद कि हालात ठीक होंगे।
वाह...अच्छा किस्सा सुनाया आपने :)
जवाब देंहटाएंटीचर्स डे की आपको भी बधाई!!
professor wali baat achchhi lagi...
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen...
सच में होता है और सुखद अहसास होता है देख जानकर .... आभार
जवाब देंहटाएंकई छोटी खुशियाँ मिलकर बड़ी खुशियाँ बन जाती हैं। विश्वास बना रहता है कि दुनिया में बहुत कुछ बिना वजह भी होता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने.
रामराम.
शिक्षक दिवस की शुभकामनायें ..... हालांकि माहौल काफी बदल गया है और गुरु और शिष्य के संबंध भी लेकिन बच्चों से ज्यादा शिक्षक की ज़िम्मेदारी होती है संबंध दृढ़ करने की । एक सेमिनार में यही प्रश्न उठा था कि आज कल बच्चे शिक्षकों का आदर नहीं करते .... मेरा कहना था कि सम्मान पाने के लिए आपका अपना आचरण कैसा है इस बात पर ध्यान देना चाहिए .... यदि शिक्षक नियमित रूप से कक्षा में पढ़ाते हैं , बच्चों की समस्याओं को ध्यान से सुनते हैं और समाधान की ओर अग्रसर होते हैं , अनुशासन का स्वयं भी पालन करते हैं तो बच्चों के मन में आपके प्रति सम्मान की भावना स्वयं ही आ जाती है ।
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकई छोटी खुशियाँ मिलकर बड़ी खुशियाँ बन जाती हैं। विश्वास बना रहता है कि दुनिया में बहुत कुछ बिना वजह भी होता है।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने ....
behad khoobsurat kissa hai.
जवाब देंहटाएंsach hi kaha gaya hai prem aur sammaan paaya nahi jaataa , jeetaa jata hai. aur kuchh log use jeet hi lete hain.
सच कहूं तो मुझे तो आज भी वो अध्यापक याद हैं जो पांचवीं कक्षा में पढ़ाया करते थे ओर नौवी दसवीं वाले तो कभी कभी मिल भी जाते हैं ओर उतना ही स्नेह रखते हैं ... आज के व्यावसायिक दौर में जब मैं अपने बच्चों से अपने टीचरों के किस्से ओर बातें साझा करता हूं तो उनको हैरानी होती है ... माहोल सच में बदल गया है ...
जवाब देंहटाएंअध्यापक दिवस की बधाई ओर शुभकामनाएं ...
मुझे भी याद आता है कैसे बचपन में आज के दिन हम चांदनी के फूल इकट्ठे करते थे सुबह से उठकर और उसका बड़ा सा हार बनाकर ले जाते थे अपनी कक्षा शिक्षिका के लिए, और वे उन्ही का हार स्वीकार करती थीं जो स्वयं फूल चुनकर बनाते थे. कितना अंतर आ गया है तब और अब में. सचमुच छोटी - छोटी खुशियों का भी अपना ही अलग आनंद और महत्व होता है. शिक्षक दिवस की शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंवाणी जी जो शिक्षक एक गुरु की गरिमा को बनाये रखे हैं...शिष्य आज भी उनका आदर करते हैं ...उन्हें चाहते हैं...उन्हें याद करते हैं....इसीलिए यह पहल दोनों तरफसे ज़रूरी है ......एक अच्छा गुरु ही अच्छे शिष्य बना सकता है ...
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की शुभकामनायें. कई बार सहायता , स्नेह , प्रेम यूँ ही / यूँ भी होता है निःस्वार्थ !!बहुत सही कहा .
जवाब देंहटाएंAltruism!
जवाब देंहटाएंआज भी कुछ शिक्षक/शिक्षिकाएं छात्र-छात्राओं के प्रिय होते हैं .
जवाब देंहटाएंउनका ज्ञान, प्रेमभाव और निस्स्वार्थ रूप ही उन्हें लोकप्रिय बनाता है .
सुन्दर संस्मरण
सार्थक लेख ......शिक्षक दिवस की शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंऐसे शिक्षक ही सही अर्थों में शिक्षक का गरिमामय रूप समझा जाते हैं ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आलेख वाणी जी ! बच्चे आज भी उतने ही भोलेपन के साथ अपने शिक्षकों से जुड़े होते हैं जैसे संस्कार उन्हें घर से मिले होते हैं ! जो माता-पिता या अभिभावक बच्चों और उनके शिक्षकों के बीच के सौहार्द्र की सराहना करते हैं, बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं वे बच्चे हमेशा अपने गुरुओं का आदर करते हैं ! दुःख इस बात का है कि आज के समाज में ऐसे शिक्षक भी हैं जो अपनी घटिया हरकतों की वजह से किसी भी तरह के सम्मान के हकदार नहीं हैं ! शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की शुभकामनायें !!
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जवाब देंहटाएंशिक्षकों का ज़िन्दगी में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है... हर इक की ज़िन्दगी में कम से कम एक शिक्षक ज़रूर ऐसे होते हैं जो उम्र भर याद रहते हैं।
जवाब देंहटाएंऐसे बेगरज किये छोटे कार्य कई बार छोटी ख़ुशी दे जाते हैं , कई छोटी खुशियाँ मिलकर बड़ी खुशियाँ बन जाती हैं। विश्वास बना रहता है कि दुनिया में बहुत कुछ बिना वजह भी होता है।
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस को सार्थक करती सुंदर पोस्ट..आभार!
सच है कभी निस्वार्थ काम करने में जो सुख मिलता है वह बड़े-बड़े कार्य करने पर नहीं मिलता।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख है। सच है कि क्यों किसी बड़े काम का ही इंतज़ार किया जाये, छोटे-छोटे निस्वार्थ कामों से भी खुद को और दूसरों को खुशी मिल सकती है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति । अच्छे शिक्षक आज भी हैं ,हो सकता है संख्या कम हो |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर आलेख, बिलकुल अपना सा लगने वाला संस्मरण!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति, उलझे हुए ज़माने को सुलझी सोच वालों की ज़रूरत हमेशा रहेगी.
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