सैद्धांतिक या पारिभाषिक रूप में देखे तो विवाह (Marriage) दो व्यक्तियों (प्राय: एक नर और एक मादा) का सामाजिक, धार्मिक या/तथा कानूनी रूप से एक साथ रहने का सम्बन्ध है। विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना
(साभार ..विकिपीडिया )
विवाह एक सूत्र/डोर /धागा है जिससे दो अपरिचित बंधते हैं और जीवन भर साथ चलने और उत्तरदायित्व वहन करने का प्रण करते हैं ...हालाँकि दो व्यक्तियों के आपस में बंधने का करना प्रेम ही होना चाहिए था मगर हमारे सामाजिक ढांचे ने एक तरह से इसे दो व्यक्तियों की एक दूसरे पर निर्भरता में तब्दील कर दिया है ... इसमें कोई शक नहीं कि जीवन के कठिन रास्तों पर एक हमसफ़र का होना बहुत सुकून देता है ...हर व्यक्ति कभी न कभी ऐसा साथी चाहता ही है जिससे वह अपना सुख दुःख साझा कर सके और आनंद और सुकून के कुछ पल बिता सके ...मगर यदि यह निर्भरता प्रेम के कारण हो तभी आनंददायक हो सकती है , वरना सिर्फ समझौता हो कर रह जाती है ...जबकि सच्चा प्रेम वह है जो किसी भी प्रकार की निर्भरता , आशा या अपेक्षा से बंधा नहीं होता ... व्यवहार में विवाह को प्रेम के आनंद पर आधारित होना चाहिए मगर जब समझौते का रूप ले लेता है तो प्रेम छू मंतर हो जाता है ...
मानव जाति के विकास , सृष्टि की निरंतरता और व्यक्ति के जीवन में सरलता के लिए विवाह एक आवश्यक प्रक्रिया है लेकिन विवाह में व्यक्ति संकुचित हो जाता है और परिवार उसकी प्राथमिकता हो जाती है . मेरे विचार में यही होना भी चाहिए ...प्रेम दो व्यक्तियों के बीच बढ़कर , परिवार , समाज , देश और फिर सृष्टि तक विस्तार पाए ..
विवाह में प्रेम नर और नारी के बीच का व्यवहार है जब कि जीवन जीने की आदर्श स्थिति मानव से मानव के प्रेम में है ...जीवन की सम्पूर्णता प्रेम में है ....मानव से मानव का , प्रकृति, पशु , पक्षियों , समाज , देश , पृथ्वी सबसे प्रेम ..मानवता का अस्तित्व बनाये रखने लिए भी यही आवश्यक है ....अपने प्रकृति प्रदत्त, वैधानिक या ईश्वर द्वारा निर्धारित रिश्तों से प्रेम तो सभी करते हैं , कर लेते हैं मगर लोक कल्याण के लिए प्रेम , करुणा और स्नेह के स्थाई भाव की आवश्यकता है ...जो लुप्तप्राय सा हो चला है ... नफरतें , रंजिशें , आतंकवादी घटनाये , बढ़ते अपराध स्नेह और करुणा के सूखते स्रोतों के कारण ही अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं !
विवाह में प्रेम और समस्त मानव जाति के प्रेम में बहुत अंतर है.… विवाह में बंधा प्रेम दो व्यक्तियों और परिवारों के बीच संचारित है , जबकि मानव से मानव अथवा मानव का प्रकृति और उसके सभी अवयवों से प्रेम अपने दिव्य रूप में प्रसारित है.
सृष्टि में मानव श्रृंखला की सतत गति बने रहने के लिए जहाँ परिवारों और समाजों की स्थापना आवश्यक है ,वही विभिन्न समाजों और प्रकृति की जीवन्तता कायम रखने के लिए मानव का मानव और प्रकृति से प्रेम आवश्यक है. किसी भी प्रकार से परिवारों के सदस्यों के पारस्परिक प्रेम और मानव से मानव/प्रकृति के प्रेम को छोटा अथवा बड़ा कर देखा अथवा परिभाषित नहीं किया जा सकता ….
मानव जीवन के अस्तित्व के लिए प्रेम का होना आवश्यक है , वह परिवार , समाज , मानव अथवा प्रकृति (इस धरा पर स्थित उपस्थित भूभाग , नदिया , झरने , पर्वत ,पठार , जीव जंतु इत्यादि ) से भी हो , सभी से हो !!
'प्रेम से जीवन को अलौकिक सौंदर्य प्राप्त होता है। प्रेम से जीवन पवित्र और सार्थक हो जाता है। प्रेम जीवन की संपूर्णता है।'
प्रेम चतुर मनुष्यों के लिए नहीं है। वह तो शिशु-से सरल हृदय की वस्तु है।' सच्चा प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, बल्कि उसकी खुशियों के लिए बलिदान करता है। प्रिय की निष्ठुरता भी उसे कम नहीं कर सकती।
प्रेम एक दिव्य अनुभव , एहसास है जो स्नेह , करुणा और दुलार से पूरित होता है ...वह चाहे मानव से मानव का , मानव से प्रकृति का , माता- पिता से अपनी संतान का ,या प्रेमी -प्रेमिका और पति- पत्नी के बीच हो ...
निस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा के रूप में हमारे शास्त्रों और धार्मिक प्रसंगों में राधा कृष्ण के प्रेम के अनेक दृष्टान्त है ...हालाँकि यह प्रेम भी दो व्यक्तियों नर /नारी के बीच का ही उदाहरण है मगर समूची सृष्टि इस के आनंद से अभिभूत है ...
उन्हीं के अनुसार एक बार राधा से श्रीकृष्ण से पूछा- हे कृष्ण तुम प्रेम तो मुझसे करते हों परंतु तुमने विवाह मुझसे नहीं किया, ऐसा क्यों? मैं अच्छे से जानती हूं तुम साक्षात भगवान ही हो और तुम कुछ भी कर सकते हों, भाग्य का लिखा बदलने में तुम सक्षम हों, फिर भी तुमने रुक्मिणी से शादी की, मुझसे नहीं।
राधा की यह बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- हे राधे, विवाह दो लोगों के बीच होता है। विवाह के लिए दो अलग-अलग व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। तुम मुझे यह बताओं राधा और कृष्ण में दूसरा कौन है। हम तो एक ही हैं। फिर हमें विवाह की क्या आवश्यकता है। नि:स्वार्थ प्रेम, विवाह के बंधन से अधिक महान और पवित्र होता है। इसीलिए राधाकृष्ण नि:स्वार्थ प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं और सदैव पूजनीय हैं।
प्रकृति से मानव के प्रेम के सन्दर्भ में राजस्थान के खेजडली ग्राम के निवासियों के प्रयास और योगदान को बिसराया ही नहीं जा सकता. उत्तराखंड की वर्तमान त्रासदी के मद्देनजर यह दृष्टांत अत्यंत ही उपयोगी /अनुसरणीय प्रतीत होता है।
राजस्थान में एक कहावत प्रचलित है ..."सर सांठे रुंख रहे तो भी सस्तो जान " यानी यदि सर कटकर भी वृक्षों की रक्षा की जाए तो भी फायदे का ही काम है .जोधपुर के किले के निर्माण में काम आने वाले चूने को बनाने के लिए लकडि़यों की आवश्यकता महसूस होने पर लिए खेजड़ली गांव में खेजड़ी वृक्षों की कटाई का निर्णय किया गया। इस पर खेजड़ली गांव के लोगों ने निश्चय किया कि वे वृक्षों की रक्षा के लिए के लिए अपना बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटेंगे . आसपास के गांवों में संदेशे भेजे गए ..लोग सैकड़ों की संख्या में खेजड़ली गांव में इकट्ठे हो गए तथा पेड़ों को काटने से रोकने के लिए उनसे चिपक गए। पेड़ों को काटा जाने लगा, तो लोगों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े होकर गिरने लगे। एक व्यक्ति के कटने पर तुरन्त दूसरा व्यक्ति उसी पेड़ से चिपक जाता। धरती लाशों से पट गई . कुल मिलाकर 363 स्त्री-पुरूषों ने अपनी जानें दीं। जब इस घटना की सूचना जोधपुर के महाराजा को मिली, तो उन्होंने पेड़ों को काटने से रोकने का आदेश दिया !
प्रकृति प्रेम का इससे बड़ा और क्या उदाहरण हो सकता था .. उनके लिए जीवन की सम्पूर्णता वृक्षों /प्रकृति से प्रेम में ही रही!!
इस तरह समाज में अनेकानेक उदाहरणों ने साबित किया है कि जीवन की सम्पूर्णता सिर्फ विवाह में ही नहीं अपितु आध्यात्मिक उन्नति , और मानव से मानव के मध्य स्नेह, प्रेम और करुणा के विस्तार में भी है !
स्वामी विवेकानंद , मदर टेरेसा , अटल बिहारी बाजपेयी , अब्दुल कलाम आज़ाद, बाबा रामदेव , आदि महत्वपूर्ण हस्तियों ने अपने जीवन को मानव कल्याण के लिए समर्पित किया और उनके जीवन की सम्पूर्णता पर किसे शक है !!!
प्रेम एक दिव्य अनुभव , एहसास है जो स्नेह , करुणा और दुलार से पूरित होता है
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानवर्धक आलेख है ....जीवन की पूर्णता और हमारे संस्कारों का आपने बहुत गहरे से विश्लेषण किया है ...आपका आभार
इतने व्यवधान हैं, इतने डिस्ट्रेक्शन कि आजकल व्यक्ति समझ ही नहीं पाता कि वह किससे प्रेम करता है।
जवाब देंहटाएंकभी कभी तो पूरी जिन्दगी निकाल देता है कंफ्यूजनावस्था में!
आपने बहुत विचारों को कुरेदने वाली पोस्ट लिखी। धन्यवाद।
शब्दशः सहमत -प्रेम एक गहन अनुभूति है -क्षण भर की उदात्त प्रेमानुभूति जीवन की चिरन्तनता में समाहित हो उठती है !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छ लिखा है आपने -पढ़कर संतृप्ति हुयी !
सृष्टि के प्रति प्रेम ही सच्चा प्रेम है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लेख ...विवाह और प्रेम दोनों ही अलग अलग बात है ...विवाह में निर्वाह यानि निभाने की भावना का अधिक्य है ..इसके साथ प्रेम भावना भी हो तो क्या कहने ..लेकिन ऐसा बहुत कम ही हो पाता है ...( ऐसा मैं सोचती हूँ )
जवाब देंहटाएंसच ही राजस्थान के खेजडली ने तो प्रकृति प्रेम का अनूठा उद्धरण प्रस्तुत किया है ...
बहुत सुन्दर और सारगर्भित आलेख प्रस्तुत किया है प्रेम के स्वरूप का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है।
जवाब देंहटाएंअनेकानेक उदाहरणों ने साबित किया है कि जीवन की सम्पूर्णता आध्यात्मिक उन्नति , स्नेह, प्रेम और करुणा के विस्तार में भी है , सिर्फ विवाह में नहीं !...
जवाब देंहटाएंsach hai prem , jo kisi ke liye ho - samaj anath kartavy ... yadi prem hai to wah sampoornta me rahta hai, kisi tark ki zarurat nahin... prem ek akatya satya hai , jo her kisi ke andar nahi hota ... aise log poori zindagi jeeker bhi apoorn hote hain
बहुत सारगर्भित लेख.जाने क्यों हमारे यहाँ विवाह को प्रेम से अलग कर दिया जाता है.काश निबाह और विवाह दोनों साथ होते.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख,
जवाब देंहटाएंबधाई ।
प्रेम चतुर मनुष्यों के लिए नहीं है। वह तो शिशु-से सरल हृदय की वस्तु है।' सच्चा प्रेम प्रतिदान नहीं चाहता, बल्कि उसकी खुशियों के लिए बलिदान करता है। प्रिय की निष्ठुरता भी उसे कम नहीं कर सकती।......
जवाब देंहटाएंbahut gyanvardhak aalekh.
बहुत ही सुन्दर आलेख...प्रेम की गहराई बतलाता हुआ.
जवाब देंहटाएंप्रेम की बहुत सुन्दर व्याख्या ।
जवाब देंहटाएंलेकिन सृष्टि को बनाये रखने के लिए संतान उत्त्पत्ति भी ज़रूरी है , जो विवाह से ही हो तो अच्छा है जी ।
वर्ना पश्चिम में तो यह त्याग हो ही चुका है ।
बहुत सारगर्भित आलेख!
जवाब देंहटाएं--
नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को प्रणाम करता हूँ!
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नवसम्वतसर सभी का, करे अमंगल दूर।
देश-वेश परिवेश में, खुशियाँ हों भरपूर।।
बाधाएँ सब दूर हों, हो आपस में मेल।
मन के उपवन में सदा, बढ़े प्रेम की बेल।।
एक मंच पर बैठकर, करें विचार-विमर्श।
अपने प्यारे देश का, हो प्रतिपल उत्कर्ष।।
मर्यादा के साथ में, खूब मनाएँ हर्ष।
बालक-वृद्ध-जवान को, मंगलमय हो वर्ष।।
Behad sundar aur arth poorn aalekh hai!
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक आलेख है ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग देखा | बहुत ही सुन्दर तरीके से अपने अपने विचारो को रखा है बहुत अच्छा लगा इश्वर से प्राथना है की बस आप इसी तरह अपने इस लेखन के मार्ग पे और जयादा उन्ती करे आपको और जयादा सफलता मिले
जवाब देंहटाएंअगर आपको फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे पधारने का कष्ट करे मैं अपने निचे लिंक दे रहा हु
बहुत बहुत धन्यवाद
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/
बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रेम पर सुन्दर आलेख |
जवाब देंहटाएंप्रेम केवल प्रेम है किसी से भी कभी भी किया जा सकता है ... उसके लिए मन में प्रेम होना चाहिए .... भावनाएँ होनी चाहिएं ... समर्पण होना चाहिए वो भी दिल से ....
जवाब देंहटाएंविवाह शब्द का अर्थ पहली बार पता चला। आभार।
जवाब देंहटाएंbahut accha likha aapne..
जवाब देंहटाएंgood wishes..
"विवाह (Marriage) दो व्यक्तियों (प्राय: एक नर और एक मादा) "=मनुष्य के विवाह की बात हो रही है या जीव जंतुओं की -पुरुष और नारी क्यों नहीं ?वाह रे अनुवाद! (अगर यह अनुवाद है तो) और अगर अनुवाद नहीं है तब तो और भी सर थामने लायक है !
जवाब देंहटाएंआपको नहीं विकी को कह रहा हूँ!
निबन्ध अच्छा है कुछ और महान विचारकों के उद्धरण लिए जाने चाहिए थे -एक आधुनिक विचारक ने फेसबुक पर भी अपने प्रेमपूर्ण विचार डाले हैं!
बिना प्रेम भला संबंधों में प्रगाढ़ता कहाँ आती है।
जवाब देंहटाएंजाने क्यों और कैसे पर हमारे यहाँ जिन संबधों में सबसे ज्यादा संवेदनशीलता और प्रेम होना चाहिए उतना होता नहीं....प्रेम के साथ जुड़े हों सम्बन्ध और मज़बूत ही होंगें
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने निःस्वार्थ प्रेम, मानव जाति से प्रेम
जवाब देंहटाएंहमारे हृदय को विस्तार देता है, शुकून देता है
सादर आभार !
@ शिवनाथ जी
जवाब देंहटाएंबहुत आभार !
पूरी तरह सहमत!
जवाब देंहटाएंप्रेम जीवन का आधार है ..
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर किसी भी प्रकार की चर्चा आमंत्रित है ये एक सामूहिक ब्लॉग है। कोई भी इनका चर्चाकार बन सकता है। हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल का उदेश्य कम फोलोवर्स से जूझ रहे ब्लॉग्स का प्रचार करना एवं उन पर चर्चा करना। यहॉ भी आमंत्रित हैं। आप @gmail.com पर मेल भेजकर इसके सदस्य बन सकते हैं। प्रत्येक चर्चाकार का हृद्य से स्वागत है। सादर...ललित चाहार
जवाब देंहटाएंखेजड़ली वासियों, विशेषकर अपनी प्राणाहुति देने वाले 363 स्त्री-पुरूषों ने संसार के सामने एक अनुपम आदर्श प्रस्तुत किया है। संसार के अनेक आधुनिक सुधारवादी आंदोलनों के आदर्श थे वे लोग।
जवाब देंहटाएंआपने जिन व्यक्तियों के उधारण दिए हैं ... देखा जाए तो उन सभी के मूल में भी प्रेम ही है ... मानव जाती के प्रति .. प्रकृति के प्रति ... अपने आप से शुरुआत करके अगर प्रेम समूल श्रीहती के हर जीव के प्रति हो जाए तो मानव की दिशा निर्धारित हो जाएगी ...
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