उसके हाथ में रुपये ठूँसती मालकिन बोली!
पूर्व सूचना के बिना छुट्टी कर दिये जाने से सहसा हतप्रभ हुई सुगनी मगर जल्दी ही समझ गयी.
अच्छा! माँ जी आने वाली हैं!
मालकिन भी कम विस्मित न हुई. मन ही मन सोचा इसे पता कैसे चला . फोन तो कल रात ही आया था.
अरे नहीं! कुछ समय से साहब का हाथ तंग है. खर्चा नहीं निकलता.
कुछ बोली नहीं सुगना मगर जानती थी कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ था.
गाँव में बड़े अफसर की पत्नी बड़ी मालकिन को सब सुख सुविधाएं प्राप्त थीं. अवकाशप्राप्ति के बाद आराम से रहने के लिये शहर में मकान बना लिया था जहाँ रह कर बेटा पढ़ा लिखा और अब विवाह के बाद पत्नी के साथ रह रहा था.
जानती थी सुगनी कि बड़ी मालकिन यह असुविधा नहीं झेल पायेंगी . फिर उनके कहने पर उसे बुलाया जायेगा और घर खर्च चलाने , बहू की बहन की शादी में होने खर्चों के साथ उसकी एक दो महीने की तंख्वाह भी वही देंगी . तब तक बहू का हाथ तंग ही रहने वाला है!
laghu kathaa badii baatey waah
जवाब देंहटाएंपरिस्थितियाँ भी कैसे कैसे दृश्य दिखाती हैं !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-04-2015) को "आदमी को हवस ही खाने लगी" (चर्चा अंक-1956) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार!
हटाएंरहिमन इस संसार में भांति भांति के लोग.
जवाब देंहटाएंतंगदिल!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसमय की बदलाव को बाखूबी लिखा है .. अच्छी कहानी ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंऐसा भी होता है .....
जवाब देंहटाएंक्या तरकीब निकाली है ... अजब गज़ब लोग .
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