बुधवार, 3 जून 2015

और कुछ न कर सके पर शोर तो मचाया ही .......

एक दोपहर रसोई में घुसते हुए  बाहर खुलने वाले जाली के दरवाजे से बेटी को बाहर के मेन गेट से किसी चीज का तेजी से गमलों की तरफ़ बढने की एक झलक सी दिखी. उत्सुकता लिये दरवाजा खोल कर बाहर जाने का उपक्रम किया मगर पुनः साँप साँप  चिल्लाते लौट पडी. एकबारगी मुझे यकीन नहीं हुआ कि उसे कोई भ्रम हुआ होगा. एक बार खुली गैलरी में कागज के डब्बे के पीछे गिरगिट के तेजी से  छिप जाने से गोहिरा का भ्रम हो गया था जो बडी मशक्कत के बाद दूर हुआ था.
खैर, कहाँ है कहती हुई गमलों की तरफ़ कदम बढाया तो तीन चार आकार में कुछ बडी सी चिडिया उन्हीं गमलों को घेर कर अपनी चोंच से प्रहार करती दिख पडी.
पहले तो ख्याल आया कि यह नन्ही चिड़िया साँप का क्या कर लेगी  मगर फिर उनकी चुस्ती फुर्ती ने समझा दिया। एक तो वे समूह में थी और शोर मचा रही थीं।  चिड़ियों से और कुछ न हुआ मगर शोर मचाया ही।  यह शोर  सावधान  कर ही देता हैं।  प्रकृति इंसान को सारे सबक भी स्वयं ही सिखाती है।  हर कमजोर से कमजोर व्यक्ति में कुछ न कुछ सामर्थ्य होता ही है और इसी दम पर वह अपना अस्तित्व बचाये रख सकता है।


  यह चिडिया भी नई सी ही हैं हमारे इलाके में. इधर एक वर्ष में ही नजर आने लगी है. गौरैया के रंग जैसी मगर आकार में कुछ बडी  अकसर  गमलों के पौधों और बडे पेड़ों  पर उधम मचाते कीट पतंगो को अपनी चोंच में दबाये या पानी भर कर रखे पात्र में स्नान ध्यान करती सी दिख जाती हैं. ये कभी भी एक अकेली नहीं आती बल्कि तीन चार के समूह में होती हैं।  कई बार इनकी घुन्नी सी लाल आंखों और चोंच में अटके कीट पतंगों को देख कर बच्चे इसे शिकारी चिडिया कहने लगे हैं.
जब गमलों की ओर थोडा झुक कर देखा तो निरीह अवस्था में सिकुडा सा साँप  नजर आ गया. थोडी देर उन गमलो को पार कर अपनी चोंच से भेद देने की असफल कोशिश करती रहीं मगर साँप उसी तरह कोने में सिकुडा पडा रहा. जब थक हार कर वे उड़ गईं तब जाकर उसने अपना आकार फैलाना शुरू किया जैसे भरपूर अंगडाई ले रहा हो और तभी हमें होश आया कि साँप कुतुहल का विषय नहीं विषैला भी  हो सकता है.
घबराहट के मारे कुछ सूझा नहीं. पेड़ पौधों की आड़ में जाने कहाँ छिप जाये, इस लिये उस पर नजर रखते हुए पडोसी परिवार  को आवाज लगाई कि उनकी ओर वाली दीवार पर पाइप से पानी डालें और इधर हम बाल्टी भर पानी ले बैठे. दोनों तरफ़ से पानी की बौछार से परेशान गुस्से और खीझ में बिलबिलाता हुआ दरवाजे को पार कर उससे सटी छोटी सी बगिया में घुस कर अनार के  पेड़ पर चढ कर निश्चिंत बैठ गया जैसे वहाँ बैठ कर हमारी बेचैनी के मजे ले रहा हो.
पेडो के झुरमुट में साँप का बैठे रहना चिंता का विषय होना ही था.
इस बीच वन विभाग में कार्यरत भाई को फोन कर पूछा कि अब क्या किया जाये . भाई ने एक NGO का नंबर देकर उनसे सम्पर्क करने को कहा. फोन मिला कर उनसे कहा कि साँप पकडने के लिये जल्दी आयें।  तब उधर से एक व्यक्ति आश्चर्य मिश्रित हकलाहट में पूछ रहा था कि पहले आप यह बताओ कि आपको यह नंबर किसने दिया.  हमने कहा कि  दिया तो हमारे भाई ने ही है जो इसमें क्या हो गया।
इस पर वह भाई की पूछताछ करने लगा कि वह कौन हैं , क्या करते हैं।
जब हम पूछे कि आप यह पूछताछ क्यों कर रहे तब  उधर से जवाब आया कि यह Women Empowerment NGO का नंबर  है.
उस समय दिमाग में चिंता साँप की थी मगर जब बाद में इस संयोग पर सोचा तो हँसी के दौरे पड़ गये. अगला व्यक्ति क्यों बौखलाया यह भी  समझ आ गया।
भाई को दुबारा फोन किया और उसे सारा माजरा बताया।  भाई ने बताया कि दोनों नंबर साथ ही लिखे थे तो शायद गलती से दूसरा नंबर दे दिया।  इस गलती में कितनी बड़ी गफलत हो जानी थी।  कहीं  उस NGO  ने साँप पकड़ने को व्यंग्य में ले लिया होता तो क्या होता।  बाद में यही सोच कर खूब मुस्कुराये हम।
दुबारा सही नंबर लेकर फिर फोन मिलाया।   वहां फोन करने पर मौजूद व्यक्ति ने साँप  का रंग , लम्बाई आदि पूछ कर सूचना दी कि हालांकि यह साँप विषैला नहीं है मगर आप उससे दूर रहे और निगरानी रखें। साथ ही यह जानकारी भी कि यह स्वयंसेवी संस्था स्वयं साँप  पकड़ने का कार्य नहीं करती बल्कि साँप पकड़ने वालों से संपर्क कर उन्हें भेजती है।  इसके लिए उन्हें धन भी देना पड़ेगा।  जब साँप सर पर हो तो धन की कौन सोचता है।  हमने कहा आप भेजो तो , हम पैसे दे देंगे।  थोड़ी देर बाद उनका दुबारा फोन आया कि हमारा आदमी तीस से चालीस मिनट में आयेगा तब तक आप साँप  पर निगरानी रखें।  पेड़ पर चढ़े साँप की इतनी देर निगरानी कोई आसान कार्य है।  जाने कब उतरकर किधर चल दे मगर साहस बंधा हुआ था कि हमलोग पांच छह जने थे जो बारी बारी उसका ध्यान रख सकते थे।
तब तक यहाँ से गुजर रहे दो व्यक्ति माजरा जानने आ गये।  उन्होंने कहा कि हम अपने तरीके से पकड़ लेंगे इसे।  फिर जैसे तैसे उसे पकड़ा गया  और उन लोगों को पैसे देकर विदा किया गया।
सब कार्यक्रम संपन्न हो चुकने के बाद NGO  से दुबारा फोन आया कि हमारा आदमी बीस मिनट में आप तक पहुँच जाएगा।  हमने भी कह दिया कि अब उनको आने की जरुरत नहीं , काम हो चुका  है।

20 टिप्‍पणियां:

  1. Rochak. Us chidiye ko saat bhai ya bshane kahte hain. Angreji mein Jungle Babbler.

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    1. मैं जानती थी कि आप नाम बता सकेंगे चिडिया का.
      आभार!

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    1. यहाँ कम ही दिखते हैं उस दिन पता नहीं कहाँ से आ गया.

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  3. रोचक ... आपने वाकई साहस रक्खा और सोच समझ कर इस काम को अंजाम तक पहुँचाया नहीं तो लोग डर ही जाते हैं ...

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    1. डरे तो हम भी थे मगर कुछ और लोग भी साथ थे तो हिम्मत रही!

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  4. एक निरीह से साँप के निकलने पर इतनी अफरा-तफरी...यहाँ असम में तो अक्सर बगीचों में धूप खाते हुए साँप दिख जाते हैं..अपने आप चले जाते हैं, फिर भी बहुत रोचक वृन्तात...

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    1. यहाँ कम ही दिखते हैं इसलिये कुतुहल होता ही.

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-06-2015) को "भटकते शब्द-ख्वाहिश अपने दिल की" (चर्चा अंक-1997) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  6. रोचक और रोमांचक पोस्ट
    प्रणाम

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  7. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  8. बहुत रोचक...सच में सांप से दर तो लगता ही है..

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  9. सब कुछ ठीक-ठाक निपट जाता है तो घटना के पल मजा देते हैं। पर यदि कहीं वह जीव जहरीला हो और आक्रमण के मूड में हो तो संबंधित विभाग के 30-40 मिनट कितने मंहगे साबित हो सकते थे ! तब उसे न चाहते हुए भी मारना भी तो दिल गवारा नहीं करता !!

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  10. सचमुच सांपों को तो देख कर ही डर लगता है।
    ............
    लज़ीज़ खाना: जी ललचाए, रहा न जाए!!

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  11. सांप दिखने पर हमारे यहां तो फालतू के नम्बर डायल करने की बजाय गड़रिया पुरवा से सपेरे को बुलाया जाता है!

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  12. शहरों में तो कई बार सपेरे खुद ही घरों के आस पास सांप छोड़ देते हैं जिससे उनको पकड़ने के बहाने पैसा मिल सके ....आपने बहुत रोचक वर्णन किया है ...मूक पक्षियों ने भी अपने कर्तव्य का निर्वाह तो कर ही दिया .

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