सोमवार, 8 जुलाई 2019

जीयें तो जीयें ऐसे ही.....



सुबह अखबार पढ़ लो या टीवी पर समाचार देख लो, मन खराब होना ही है. गलती उनकी इतनी  नहीं है, चौबीस घंटे समाचार दिखाने वाले  दो चार घंटा अपराध की खबरें न दिखायेंगे तो क्या करेंगे!
अपराध की सूचना देना आवश्यक है मगर जिस तरह दिखाये या लिखे जाते हैं, उन लोगों की मानसिकता पर  दुख और भय दोनों की ही अनुभूति होती है. मुझे घटनाओं में होने वाली हिंसा से अधिक उनको लिखने वालों के शब्दों और चेहरे पर नजर आती है .सख्त शब्दों में कहूँ तो जुगुप्सा होती है.

मैं डिग्री होल्डर मनोवैज्ञानिक नहीं हूँ मगर समझती  हूँ कि बार -बार दिखने या पढ़ने वाली वीभत्स घटनाएँ आम इंसान की संवेदना पर प्रहार करती है. अपराध के प्रति उसकी प्रतिक्रिया या तो संवेदनहीन हो जाती है या फिर उसमें रूचि जगाती है. धीरे -धीरे पूरे समाज को जकड़ती उदासी अथवा उदासीनता यह विश्वास दिलाने में सफल हो जाती है कि इस समाज या देश में कुछ अच्छा होने वाला नहीं है. निराशाओं के समुद्र में गोते लगाते समाज के लिए तारणहार बनकर आती है प्रार्थना सभाएँ या मोटिवेशनल सम्मेलन , सिर्फ उन्हीं के लिए जो इनके लिए खर्च कर सकते हैं और अगर मुफ्त भी है तो अपना समय उन्हें दे सकते हैं. पैसा खर्च कर सकने वालों के लिए चिकित्सीय सुविधाएं भी हैं.
मगर जिनमें निराशा से उबरने की समझ/हौसला या उपाय नहीं है  या वे इसके लिए समय या धन से युक्त नहीं हैं या उन्हें इसका उपाय पता नहीं है,  नशे का सहारा लेने लगते हैं.

सोच कर देखिये तो जिस तरह प्राकृतिक चक्र में जीवन चक्र लार्वा से प्रारंभ होकर बढ़ते हुए नष्ट होकर पुनः निर्माण की ओर बढ़ता है . वही असामान्य स्थिति के दुष्चक्र में फँसकर  अपराध, हताशा, निराशा से गुजरकर फिर वहीं पहुँचता है. इसके बीच में ही उपाय के तौर पर एक बड़ा बाजार भी विकसित होता जाता हैं जहाँ प्रत्येक जीवन बस एक प्रयोगशाला है.

कभी -कभी मुझे यह भी लगता है कि पुराने समय में जो बुरी घटनाएं दबा या छिपा ली जाती थीं, उसके पीछे यही मानसिकता तो नहीं होती थी कि बुराई का जितना प्रचार होगा, उतना ही प्रसार भी.... मैं इस पर बिल्कुल जोर नहीं दे रही कि यही कारण होता होगा बस एक संभावना व्यक्त की है.

खैर, एक सकारात्मक खबर या पोर्टल के बारे में सोचते हुए जो विचार उपजे, उन्हें लिख दिया.
इस पोर्टल पर जाने कितने सकारात्मक और प्रेरक समाचार कह लें या आविष्कार मौजूद हैं जो बिना किसी भाषण के बताते हैं कि सकारात्मक जीवन जीने के कितने बेहतरीन तरीके और उद्देश्य भी हो  सकते हैं.

https://hindi.thebetterindia.com/

6 टिप्‍पणियां:

  1. गलत बातें,गलत तरीके हम जल्दी सीखते हैं, और आज की जो स्थिति है, वह परोसी हुई स्थिति है ।
    माना, पहले भी स्थितियाँ गड़बड़ थीं, पर एक लिहाज,एक डर था । अब तो किसी बात का न डर, ना लिहाज और तर्कों की भरमार !
    रिश्तों में वो सम्मान ही नहीं रहा, जिसके आगे घर की एक बेहद खूबसूरत यादें आज भी हैं । अब तो अपना स्पेस, कोई कुछ भी बोले- उसे खत्म ही कर दो ।
    कहानी,घटनाएँ अपनी जगह हैं, पर शब्दों के चयन में एक सीमा रेखा आज भी अपेक्षित है ।
    मनोविज्ञान की किताबी भाषा भले न आती हो, पर मन है, जो मन और प्रस्तुति को समझता है

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  2. सही कहा है आपने, बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो के पीछे अवश्य ही मनोवैज्ञानिक कारण रहे होंगे

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  3. बिल्कुल सही कहा वाणी दी कि अपराध की घटनाओं का ज्यादा प्रचार और प्रसार नहीं होना चाहिए। उसके दुष्परिणाम जरूर होते हैं।

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  4. बिल्कुल सही और सटीक बात कही आपने ....

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  5. Really Appreciated . You have noice collection of content and veru meaningful and useful. Thanks for sharing such nice thing with us. love from Status in Hindi

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