पिछले कुछ दिनों से नारियों की बड़ी गहमा गहमी रही ब्लॉग जगत में ...पूरी तरह से नारियों का धमाल ....नारियों का या नारी सम्बंधित विषयों का ....आँचल , पायल , चूड़ी , सब खनक लिए भरपूर ....
मुख्य मुद्दा रहा वस्त्रों के चयन को लेकर ....आज जहाँ नारियां अन्तरिक्ष में कदम रख चुकी है ...इन पर बहुत ज्यादा दिमाग खपाना बेमानी सा ही लगता है ....जींस, पैंट, स्कर्ट आदि वस्त्र अब भारतीय समाज में सहज स्वीकार्य हो गए है ...हालाँकि पूर्ण भारतीय वस्त्र साड़ी अपनी दौड़ में कही पिछड़ी नही है ...इसमे कोई शक नही की साड़ी में भारतीय नारी अपनी पूरी गरिमा से सुशोभित होती है और साड़ी पूरे विश्व में हमारी संस्कृति की एक प्रमुख पहचान रही है ...मगर जिस तरह से समाज में जागरूकता और नारियों की सहभागिता बढ़ी है ....साड़ी का स्थान अन्य विकल्पों ने ले लिया है ....इसमे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ...? आपत्ति का कारण महज मर्यादाविहीन वस्त्रों का होना ही हो सकता है ....हालांकि मुझ जैसी बहुत सी महिलाएं साड़ी में अपने आपको असहज महसूस नही करती ...मगर जिनके लिए यह सुविधाजनक नही है ...कार्यस्थल और व्यवसाय के अनुरूप अन्य वस्त्रों का चयन अनुचित तो नही कहा जा सकता है ....बात इतनी सी है की ...चूँकि वस्त्र शरीर ढकने के लिए होते है ...उनका उपयोग इसी उद्देश्य से किया जाए ....ऐसे वस्त्रों का चयन हो जिसमे ना तो स्त्रियाँ और ना ही पुरूष अपने आपको असहज महसूस करे ....चूड़ी , पायल , बिंदी आदि स्त्रियों के लिए बाधक नही रही हैं ...और अब तो इनको लेकर कोई पूर्वाग्रह नही रह गए हैं ...अपनी सुविधा के हिसाब से इनका उपयोग किया जाता है ....
वहीं यह भी एक सच्चाई है कि पूरी तरह से गरिमामय वस्त्रोंऔर आभूषणों से सुसज्जित स्त्रियाँ भी प्रताड़ना का शिकार होती रही है ...ज्यादातर प्रताड़ना का कारण उनका स्त्री होना ही होता है ....उनके वस्त्र आदि नही ...
अब बात आती है अधिकार और कर्तव्य की ....हम देखते ही है ...दिन प्रतिदिन ...देश की जो हालत बिगडती जा रही है ....ज्यादा से ज्यादा नागरिक अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक है ....कर्तव्यों के प्रति नही ....यदि संविधान ने हमें अधिकार दिए हैं तो कर्तव्यों के लिए भी स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए हैं .... परिवार और समाज में पुरुषों की ही तरह नारी को अधिकार प्राप्त हैं ....लेकिन अपनी प्रत्येक बात मनवाने के लिए अधिकार का झंडा हाथ में उठाकर चलना ना तो पुरुषों के हित में है ...ना ही नारियों के ...अधिकार हैं तो कर्तव्य भी ....
प्रकृति ने माँ बनने का गौरवमय अधिकार सिर्फ़ नारी को दिया है ...इस लिहाज़ से उसे कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं तो उसके साथ कर्तव्य भी ....अधिकारों की रक्षा करते हुए अपने कर्तव्यों को ना भूले ....
अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम सिर्फ़ विरोध करने के लिए विरोध करे ...या उनके परिणामों और दुष्प्रभावों पर पूरी तरह विचार करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ...प्यार और सम्मान युक्त अधिकार प्राप्त करे .....
स्त्रियों की सुरक्षा और सम्मान को बनाये रखने के लिए बहुत से कानून बनाये गए हैं ....मगर आस पास नजर डाले तो इन कानूनों का दुरूपयोग ही ज्यादा किया जा रहा है ....कानून का उपयोग ज्यादातर अपनी गैरजरूरी मांगों को मनवाने में किया जा रहा है .... कुछ पुरुषों के बुरे स्वभाव का दंड पूरे पुरूष समाज को तो नही दिया जा सकता .....यदि स्त्री माँ, बहन, बेटी बहू है... तो पुरूष भी पिता, भाई, पुत्र है ....भावनात्मक सुरक्षा की आवश्यकता उन्हें भी उतनी ही है जितनी कि हम नारियों को ....देश और समाज के निर्माण में अपना योगदान हम उनके साथ चलते हुए उनके क़दमों से कदम मिला कर भी दे सकते हैं ....
कई शोधों में साबित हो चुका है कि ...बच्चों के साथ उनकी माँ का होना उन्हें भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता है ...जो उनके सुंदर और दृढ़ व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होता है ....विदेशों में जहाँ पुरूष और स्त्री समानता का बिगुल बजाया जा चुका है ...वहां भी अब यह महसूस किया जा रहा है ....
स्त्रियाँ अपने करियर को प्राथमिकता दे रही है ...उन्हें पूरा हक़ है ...लेकिन जो अपनी मर्जी से या अपने परिवारजनों की मर्जी से अपना घर संभाल रही है ...उन्हें प्रताड़ित या दोयम दर्जे का ही क्यों समझा जाए ....
और एक बात है सामंजस्य की ...कहाँ सामंजस्य नही करना होता है ...वर्षा कम हुई ...धूप ज्यादा है ....भयकर सर्दी ...क्या प्रकृति से सामंजस्य नही करेंगे ....!!
घर से बाहर बस की लाइन में , पार्किंग में , बाजार से सामान खरीदने में , चिकित्सा में , शिक्षा में ...कहाँ कहाँ सामंजस्य नही कर रहे है हम ..अनजान लोगों से ...तो फिर अगर थोड़ा सा सामंजस्य उन लोगो के साथ हो ...जिनसे हमारी जिन्दगी जुड़ी है ...जिनसे हम भावनात्मक रूप से जुड़े हैं , पूरी जिन्दगी जिनके साथ जीने का संकल्प लिया है ...क्या बुरा है ....!!
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ओय्य्य वाणी जी,
जवाब देंहटाएंतुस्सी ग्रेट हो जी...
यही तो हम कहते हैं..... हाँ नई तो.....
किसी भी समाज में स्त्री-पुरुष दोनों की अहमियत ने नकारा नहीं जा सकता है.....आपके आलेख ने बहुत स्पष्ट शब्दों में इसकी हिमायत की है...
और जब तक अधिकार के साथ कर्तव्य का निर्वहन नहीं होगा...एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना नहीं की जा सकती है...
वाणी जी...आपकी कलम को बार बार सलाम ....
चलते-चलते एक बात और.....कुछ समस्याएँ मिल बैठ कर सुलझाई जा सकती हैं तो AK 47 या BOFORS की क्या ज़रुरत है...
कहते हैं न ..जहाँ काम आये सुई कहाँ करे तलवार....!!
सुपर डुपर आलेख है वाणी जी....सैलूट आपको..!!
सच्चाई की रोशनी दिखाती आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है। सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंसंतुलित विचार। अच्छा लगा पढ़कर।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत बढ़िया...सामन्जस्य हो तो कुछ वजह नहीं विचारों के तकरार की.
जवाब देंहटाएंबेबाकरूप से अपनी बात रखने के लिए लिखा गया लेख आपकी साहित्यिक छवि को उजागर करता है!
जवाब देंहटाएंबधाई!
हाईलाइटेड पंक्तियाँ निश्चय ही इस योग्य हैं कि वे बात को सूत्रतः कहें ।
जवाब देंहटाएंकई स्तरों को छूती रचना । आभार इस आलेख का ।
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख।
जवाब देंहटाएंअच्छा विमर्श -स्त्री पुरुष संपूरक है एक दूसरे के ! और बाकी अंशों से भी सहमति !
जवाब देंहटाएंसच में ....दी..... परुषों को भी भावनात्मक सुरक्षा कि बहुत ज़रुरत होती है......
जवाब देंहटाएंदी... आपकी यह पोस्ट बहुत संतुलित और विचारणीय है.....
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति....
बहुत ही उम्दा लिखा है आपने ।
जवाब देंहटाएंवाणी जी क्या लिखा है सही मायने मे यही स्त्रि विमर्श के लिये एक राह और आवश्यक पहलू है । समानता और संतुलन का समावेश बहुत अच्छा लगा । आशा है आगे भी ऐसे ही सार्थक आलेख आपकी कलम से आते रहेंगे। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपकी सार्थक सोच और सुन्दर प्रस्तुति का अभिवादन करता हूं।
जवाब देंहटाएंbahut hi sarthak lekh likha hai..........samanjasya ke bina to ek kadam bhi insaan nhi chal sakta aur yadi apni niji zindagi mein bhi yadi kar le to sari vidambnayein khatm ho jaye.
जवाब देंहटाएंmaine bhi isi se milti ek kahani likhi thi apne blog par ---------yadon ke jharokhon se .
http://ekprayas-vandana.blogspot.com
बहुत ही संतुलित आलेख है....स्त्री,पुरुष दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं,गाड़ी के दो पहिये जैसे....जब दोनों पहिये सामान हों,संतुलित हों..तो जीवन की गाड़ी सरपट भागती है...वरना हिचकोले खाते घिसटते हुए.
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक आलेख, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह वाणीजी
जवाब देंहटाएंबहुत ही संतुलित और सधा हुआ आलेख लिखा है आपने | जब पुरूष और नारी एक दूसरे के पूरक है और पूरक का अर्थ है दोनों चीजो की समानता फ़िर बार -बार हम इस बात को उछालकर असमानता की और क्यो अग्रसर होते जा रहे है ?
रही बात बिंदी टिकी और पायल की ,नारी के वस्त्रो की |तो किसी महिला को इसमे असहजता होती है तो किसी को सहजता |वो ख़ुद निर्णय करे की उसे क्या पहनना है |उस पर इतनी बहस क्यो?और इतने मुद्दे है जो अदाजी ने बताये है |मै तो आपकी इस पोस्ट और अदाजी की साडी बीच नारी है vali पोस्ट को एक दूसरे का पूरक मानूंगी |
मेरे घर में काम करने वाली नारी सायकिल से आती है उसके दो बच्चे है जिन्हें उसने प्राइवेट स्कूल में पढने को रखा है |और स्वयम शाम को कम्प्यूटर सीखने जाती है ख़ुद १२ वि तक पढ़ी है |साथ ही चूड़ी बिंदी पायल बिछिया और शालीनता से साड़ी पहनकर कर आती है उसको कुछ भी असहज नही लगता वो खुशी से अपना और बच्चो का यथा संभव कैरियर बना रही है |
टिप्पणी बहुत बड़ी हो गई है माफ़ करे |
संतुलित आलेख
जवाब देंहटाएंस्त्री-पुरुष को पूरक भाव से न देखना फैसन बन गया है
आपने उससे अलग राय राखी है |
शुक्रिया ... ...
santulit vichaaron ka sanyamit vishleshan....
जवाब देंहटाएंनारी विशयक चर्चा में कुछ कहना खतरनाक लगता है। एक मुख्य मन्त्री थे सुन्दरलाल पटवा। वो विधान सभा में कह गये थे - त्रिया चरित्रम --- देवो न जानाति कुतो मनुष्यम्!
जवाब देंहटाएंबेचारे बहुत लखेदे गये!
वाणी जी ,
जवाब देंहटाएंआप दोनों सखियां अपनी बेबाक लेखनी के कारण मुझे बेहद प्रिय हैं ..किसी भी बात को कहने का जो सर्वोत्तम तरीका होता है वो आप जानती हैं ...यही सबसे बडी खूबी है ...पुरुष नारी ..विषय पर भी आज जो लिखा बेहतरीन है ..सखियां समझ गई न ..नहीं ..ये भी तो आपकी एक अदा है
अजय कुमार झा
इतने लोगों ने कह दिया .....सो वही बात दोहराने का कोई फायदा नहीं!! संतुलित और सारगर्भित!!
जवाब देंहटाएंSATY KI ABHIVYAKTI HAI .... BAHUT HI SAARGARBHIT LIKHA HAI ... STRI AUR PURUSH IK DOOJE KE POORAK HAIN ... YE SATY HAI ...
जवाब देंहटाएंवाणी जी,
जवाब देंहटाएंआपकी विवेचना बहुत सटीक है. अपराधी मनोवृत्ति के लोग अपने कृत्य के लिए किसी को भी दोष दे सकते हैं. पायल, बिंदी, बुर्का, पर्दा आदि किसी संस्कृति के प्रतीक हो सकते हैं और इनका जनरलाइज़ेशन नहीं किया जा सकता. उदाहरण के लिए किसी मासूम चेहरे पर तेज़ाब डालने के लिए उसके बेपर्दा होने के तालेबानी बहाने बेमानी हैं. जेंडर के भेद की बात भी कोई ख़ास अर्थ नहीं रखती है.