इधर कुछ दिनों से सपने में एक महिला बार बार नजर आ जाती है ...चमचा बेलन हाथ में लिए अपनी लाल लाल आँखों से घूरते उलाहने देती हुई - " बड़ा प्रचार कर रखा है अपना साधारण गृहिणी होने का ...कभी की है गृहिणी वाली कोई बात ...जब देखो ...गीत ,ग़ज़ल, संस्मरण , कथा कहानी ......" सपने में उस चेहरे को पहचानने की कोशिश करती हूँ तो नींद उचट जाती है ...अब वो फिर से सपनो में आकर अपनी लाल पीली आँखों से डराए ...उससे पहले ही कर लेती हूँ खालिस गृहिणी वाली बात .............
गृहिणियों या गृह्स्वामिनियों के सामने फिलहाल जो आतंककारी मसला है ...वह है महंगाई ....इस महंगाई ने घर का पूरा बजट बिगाड़ कर रख दिया है ...जहाँ दालें , अनाज , चीनी आदि के दाम असमान छू रहे हैं, वहीं सरस डेयरी ने दूध के दामों में फिर से बढ़ोतरी कर दी है ...महंगाई तो सच ही सुरसा का मुंह बाए खड़ी है ...मगर गृहणियां भी आसान उपायों और प्रयोगों द्वारा इसका मुकाबला करने को कमर कस कर तैयार है ...अब सरकार पर तो कुछ असर हो नही रहा ...तो और उपाय भी क्या है ....वही बात फिर से सामंजस्य की ...महंगाई से सामंजस्य करने में अपना मारवाड़ी होना और विभिन्न प्रदेशों में हुई अपनी परवरिश बहुत मददगार साबित होती है ...
मारवाड़ियों के लिए तो यूँ भी कहा जाता है की " जहाँ ना पहुच रवि ..वहां पहुंचे मारवाड़ी " ...और इस युक्ति को सार्थक करते हुए हमारे सम्बन्धी आसाम से लेकर विशाखापत्तनम तक के क्षेत्र तक बसे हुए हैं ....पिता का पैतृक आवास और मेरा जन्मस्थल आँध्रप्रदेश है और पिता का कर्मस्थल बिहार रहा है ...और राजस्थानी तो हम हैं ही ...हमारा पूरा परिवार प्रांतीय भाईचारे का जबरदस्त उदहारण कहा जा सकता है ...एक भाभी आंध्र के मिर्च के लिए मशहूर कसबे से है तो दूसरी पक्की जयपुरिया ...चाचियाँ और मामियां मुंबई , गुजरात और महाराष्ट्र से हैं ...और हमारा बचपन ददिहाल और ननिहाल दोनों के ही संयुक्त परिवार में गुजरा है ...ईश्वर की कृपा से सभी के सभी ऐसे सेहतमंद ... कि पारिवारिक कार्यक्रम में इकठ्ठा होने पर हमारी सेहत को लेकर उनकी चिंता और सवाल से हम स्वयं को टी बी का अघोषित मरीज मान बैठते हैं ....और इनके कमर के घेरों का विस्तार यूँ ही नहीं है ...घर के सभी पुरूष खाने के जबरदस्त शौक़ीन और घर से बाहर खाना इतना पसंद नहीं...अब चूँकि सेहतमंद पुरुषों के दिल का रास्ता यक़ीनन उनके पेट से ही होकर जाता है ...इसीलिए घर की सारी महिलायें खाना बनाने में निपुण भी हैं ...अब बनायेंगी इतने शौक से तो क्या खायेंगी नहीं...लिहाजा सभी अच्छी खासी है ....पाक कला में उनकी निपुणता के कारण ही इडली, डोसा,बड़ा जैसे दक्षिण भारतीय भोजन से लेकर गुजराती ढोकला , महाराष्ट्रियन पीठ्ला , पूरण पोली आदि का स्वाद हमें एक साथ घर में ही मिलता रहा और ये अनुभव महंगाई से लड़ने में ...कम से कम खाना बनाने के मामले में ...बहुत काम आते हैं ..
महंगाई से इस सामंजस्य या लडाई में मुझे अपना राजस्थानी या मारवाड़ी होना बहुत लुभाता है ...राजस्थान की शुष्क जलवायु और रेतीली जमीन में पानी की कमी का मुकाबला यहाँ के निवासी बड़ी जीवटता से करते रहे हैं ...रूखे सूखे वातावरण और हरियाली की कमी को अपने रंग बिरंगे वस्त्रों से सजाकर प्रकृति को भी धता बताते रहे हैं ....
सबसे पहले दाल पर ही आ जाए ...महंगाई की मार में सबसे ज्यादा चर्चित ...हालाँकि उत्तर और दक्षिण भारत की तरह दाल चावल यहाँ का मुख्य भोजन नही है.... लेकिन दाल बाटी राजस्थान के भोज का मुख्य अंग होता है ...जिसमे सिर्फ़ तुअर या अरहर के दाल का प्रयोग नही होता ...बल्कि कम से कम पांच तरह की दालों को मिलाकर इसे बनाया जाता है ...इसमे दालों की कीमत के हिसाब से उनका प्रतिशत कम ज्यादा कर कीमत को संतुलित किया जा सकता है ...
श्रीवैष्णव होने के कारण हमारे घरों में शुरू से प्याज लहसुन का प्रयोग नही किया जाता रहा इसलिए ये भी हमारे भोजन के प्रमुख अंग नही है ...बिहार में हमारे परिचितों के लिए प्याज लहसुन के बिना स्वादिष्ट खाना बनाया जाना विश्व के सात अजूबों से कम नही होता था ...अब इनकी कीमत ५० रुपये किलो होने पर जहाँ सारी दुनिया त्राहि त्राहि करती है हमारी रसोई पर इसका विशेष असर नही होता ...
पापड़ , मंगोड़ी , कैर , सांगरी , मेथी , काचरी , फलियाँ आदि सूखी सब्जियों का जमा स्टॉक के साथ ही बेसन से बनाई जाने वाली सब्जियां.. कढ़ी , गट्टे ,बूंदी का रायता, आसानी से गमलों में उगाया जाने वाला पौष्टिक गंवारपाठा जैसी सब्जिया ताजा सब्जियों के बढे दामों को संतुलित करने में बहुत सहायक होते है ...वही बाजरे या मक्के के आटे को पानी या छाछ में घोल कर धीमी आंच पर देर तक पका कर बनाई गई राबड़ी , गेहूं,बाजरे और मक्के का दलिया , भी अपने आप में सम्पूर्ण भोजन है । सर्दियों में इसका सेवन गरम रहते ही और गर्मियों में इसे ठंडा कर छाछ या दही के साथ प्रयोग में लाकर हम बड़े मजे से महंगाई से दो दो हाथ कर लेते हैं ।
सर्दियों में गैस और कैरोसिन की किल्लत आमतौर पर गृहिणियों के लिए भारी मुसीबत होती है ...मगर भूसी की सिगड़ी , कोयले की सिगड़ी ,चूल्हा आदि का प्रयोग कर सकने में सक्षम होने के कारण ये कमी भी मुझे बहुत ज्यादा प्रभावित नही कर पाती है ....
इस सारी गपशप का मतलब इतना सा है गृहिणियों को महंगाई का भजन गाते रहने की बजाय उनका सामना करने के लिए अपने आपको तत्पर करना होगा ...इस मामले में हमारे देश की विभिन्नता में एकता वाली युक्ति बहुत काम आ सकती है ....
और भी बहुत से गृह स्वामी और गृह स्वामिनियां होंगी जो अपने तरीके से महंगाई का सामना करती रही होंगी ...यदि अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर देंगी ...तो इस महंगाई को जी भर का चिढ़ा पाये ....!!
लिख तो दिया है ...अब इसे पढ़ेगा कौन ...ब्लॉग पर जो गृहिणियां है ...वे तो यूँ भी परिचित होंगी ...जो कुंवारे पुरूष हैं वो क्यों पढेंगे ...और जो शादीशुदा है ...अपनी गृहिणियों से ही अघाए होंगे ...अब जो हो सो हो ...सपने में आने वाली उस महिला का सामना करने के लिए एक ऎसी प्रविष्टि की बहुत आवश्यकता थी ...शायद अब ले सकू चैन की नींद ....
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मैं कुवारां हुँ , लेकिन तब भी मैंने पूरा लेख पढा ।
जवाब देंहटाएंसचमुच खालिस गृहिणी वाली ही रही यह पोस्ट .. पर चिंता क्यूं करती हैं .. महंगाई से त्रस्त सभी ब्लॉगर पढेंगे इस पोस्ट को .. बहुत काम की है ये पोस्ट !!
जवाब देंहटाएंएक गृही ही एक कुशल गृहिणी से जुड़े जीवन के सुन्दरतम अहसासों से तादात्म्य कर सकता है -इस लिहाज से हम तो यह गृहिणी सफरनामा पढ़ कर आप से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पा रहे हैं -क्या करें ,इतने विविध पकवानों की फेहरिस्त ललचा रही है तो दूसरे एक गृहिणी का कुशल चातुर्य भी प्रभावित किये बिना नहीं छोड़ रहा -मगर कहीं कुछ अधूरा अधूरा सा है ! हम नहीं मानते की यह कुशल गृहिणी सूक्ष्म काया वाली होगी -मगर इसे साबित भी कैसे किया जाय ?
जवाब देंहटाएंबहरहाल इस प्रशस्त गृहिणी को मेरा स्नेहार्चन !
-एक गृही !
मैं भी कुंवारा हूँ..... फिर भी मैंने पूरा लेख पढ़ा ....
जवाब देंहटाएंदी...... पढ़ के बहुत अच्छा लगा.....
हम शादीशुदा ... अघाए .... वाले कैटेगरी के हैं, पढ़कर .. करवट बदल कर हम भी सोने चल दिए हैं। जब नींद खुलेगी तो मंहगाई से भी लड़ लेंगे। तब तक.. एक सपना मैं भी देख लूं।
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक लेख...कई सारे महत्वपूर्ण सुझाव मिले.
जवाब देंहटाएंमहिलाएं,चाहे कितनी ही विविध गतिविधियों में संलग्न हों...रसोई से दूर तो रह ही नहीं सकतीं...कई महिलायें रोज खुद से खाना नहीं बनातीं...या कभी भी नहीं बनातीं पर वे भी बच्चों के लिए जरूर नयी रेसिपी ट्राई करती हैं...और गृहणियों का तो सारा काम ब्रेक में ही होता है...एक पोस्ट पढ़ी ,कमेंट्स लिखे..किचेन का रुख किया...दूसरी पोस्ट..फिर वाशिंग मशीन ने बुला लिया...बड़ा रश्क होता जब पढ़ती हूँ...'सुबह की चाय की चुस्कियों के साथ ये पोस्ट पढ़ रहा हूँ.'...सुबह सुबह....और लैपटॉप???...हाँ, सपने में संभव है ..:)
एकदम सही कहा दरअसल हम चाहे तो महंगाई का सामना बखूबी कर सकते है लेकिन हम बिलकुल उल्टा ही करते है मुझे कहने का तो हक नहीं बनता लेकिन कहे बिना रहा भी नहीं जाता .आज के ज़माने में पापड़ मूंग अदि घर पर बनाना तो शायद बंद ही हो चूका है दरअसल टीवी या सोने से समय बचे तब ना पापड़ ...............?????? आजकल ज्यादातर घरो में आटा भी पिसा उपयोग होता है भूसी कोयले की सिगरी का उपयोग अरे भाई अगर गैस ख़त्म हो जाये तो खाना बनेगा .................. बिलकुल नहीं .
जवाब देंहटाएंअब सपनेवाली महिला को चैन मिलेगा......लेकिन इस महंगाई का क्या !
जवाब देंहटाएंअरे सुगड़ गृहिणी जी,
जवाब देंहटाएंइ जो आप लाख टका का बातों का अम्बार लागाये हुए हैं.....हम तो हैरान हुए जा रहे हैं...कि तिरछी नजर ने दालों पर भी नज़र इस कदर गड़ाई हुई है.....
लेकिन आपने जो अपने कुटुंब के लोगों के क्षेत्रफल का जो खाका खींचा है .....आप उसमें फिट नहीं बैठती हैं.....काहे कि इक सपना हमको भी आता है.....और उसमें जो तन्वंगी आती है....वो कुछ और ही कहानी बताती है....
बाकि महगाई से लड़ने के आपके सारे नुस्खे दन दना दन दने दन हैं ....और अब मंहगाई कि तो बस समझिये कि शामत ही आई है....:):)
वाह, वाह्! हम नॉन लहसुन-प्याजेटेरियन के लिये आपका भोजन लगता है बहुत स्वादिष्ट होगा!
जवाब देंहटाएंआपको बढ़िया खिचड़ी बनानी आती है या नहीं?!
आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है। महंगाई तो है, लेकिन छोटी-छोटी सावधानियों से इसे परास्त किया जा सकता है। महंगाई का रोना रोने के बजाए, खाद्य वस्तुओं की कीमत, स्वाद और उनमें मौजूद पोषक तत्वों को ध्यान में रखते हुए कोई समाधानपरक रास्ता निकालने में ही भलाई है।
जवाब देंहटाएंदेखिये बासमती चांवल बहुत ही मंहगे हो गये है उनको खाने से सबका क्षेत्रफल बढ़ता ही है तो परमल चावल खाए जाये अब आपने इतनी सब्जिया गिना दी है जिससे बजट संतुलित किया जा सकता है
जवाब देंहटाएंपर बच्चो के लिए भी तो कुछ हो ?आज मैंने सोचा मुन्गोड़े बना लू पर मूंग कि डाल के भाव देखकर और बरनी में एक पाव मूंग डाल देखकर हैदराबादी चना दाल वडा बना लिया |
चने कि दाल के खूब व्यंजन बन जाते है भिगोकर पीठी बनाकर भूनकर नारियल डालकर बढिया पोष्टिक उपमा बन जाता है पूरनपोली बनाओ खूब भजिये बनाओ और भी बहूत अब शायद ज्यादा हो गया
हाँ हींग कहाँ से मंगवाए क्योकि १०० रूपये तोला है इंदौर में |
आपकी पोस्ट बढ़िया लगी
लो जी हमने तो पढ़ लिया!
जवाब देंहटाएंअंजाम का पता नही क्या होगा!
अजी हम शादी शुदा है, ओर आप का लेख हम दोनो ने पढा बहुत अच्छा लगा, लेकिन हम ना सताये है ओर नही ही आघाए, अजी हम ने तो अगले कई जन्मो का ठेका ले लिया है इन के संग रहने का, बाकी उस सपने वाली से आप ने सावधान कर दिया अच्छा किया, वेसे आप तो महिला है इस से उस के बारे लिख दिया, अगर वो किसी मर्द के सपने मै आये तो बेचारा किसी को बता भी नही सकता...बस यही भजेगा... जल तु जलाल तु आई बला को टाल तु...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हमको भी महंगाई ने मारा,
जवाब देंहटाएंतुमको भी महंगाई ने मारा,
इस महंगाई को मार डालो...
जय हिंद...
बड़ा ही रोचक लेख है ये
जवाब देंहटाएंआपके "जो कुंवारे हैं वो क्यों पढेंगे" कहने के बावजूद हम जैसे कई कुंवारे इसे पढ़ गए :)
जवाब देंहटाएंइधर कुछ दिनों से एक महिला सपने में बार-बार नज़र आने लगी है ....चमचा बेलन हाथ में लिए अपनी लाल लाल आँखों से घूरते उलाहने देती ....बड़ा प्रचार कर रखा है अपना साधारण गृहणी होने का ......कभी की है कोई गृहणी वाली बात ......जब देखो गीत, ग़ज़ल ,संस्मरण,कथा,कहानी ......पहचानने की कोशिश करती हूँ ......बड़ी सी बिंदी .....कभी कभी किसी और नाम से भी .....है न ...? मैंने भी देखा है अगर वही है तो .....पर खूब पहचाना आपने ......!!
जवाब देंहटाएंवाह आप तो पाक कला में भी निपुण
हैं .......!!
स्वादिष्ट
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है आपने, सराहनीय प्रस्तुति, आभार ।
जवाब देंहटाएंमहंगाई की मार से क्या महिला क्या पुरुष सभी जूझ रहे हैं ...... इसलिए सभी ने आपका जबरदस्त व्यंग पढ़ लिया ..... क्या शादिशुदा क्या कुंवारे ..........
जवाब देंहटाएंजबतक आदमी जीता रहेगा उसका पेट उसके साथ अवश्य ही जीवित रहेगा..इसलिए यह विषय तो जीवन का आधारभूत विषय है जिसे आपने इतने सुन्दर तरीके से निभाया है कि क्या कहूँ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही कहा आपने...प्याज लहसुन के बिना सादा और शाकाहारी भोजन ही इस मंहगाई में थोड़ी रहत दे सकती है...और माड़वाडी भोजन तो सचमुच ऐसे होते हैं,जो जेब को राहत दे सकते हैं...आज के इस मंहगाई में किसी भी प्रान्त विशेष के वासी को अपने भोजन में वाजत को नियंत्रित रखने के लिए भारतीय होना पड़ेगा...यानि जहाँ भी सस्ता स्वादिष्ट विकल्प उपलब्ध हो उसे सहर्ष अपना लिया जाय..
vaah..kitni khoobi ke saath aap hamen kahan kahna ki sair kara layeen.wakai shabdon ki karigari ke saath pak kala mein bhi nipun hain aap.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत रोचक पोस्ट है । आप तो सर्वगुण सम्प्पन हैं क्या बात है । आपली हर बात दिल पए लिख ली है। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत दिलचस्प अंदाज़ में महंगाई उतरी है आपकी कलम से ....पहले हिसाब किताब लिखा करते थे कितना खर्च किया ,अब वह बंद कर दिया है .क्यों की लिखा हुआ देख कर लगता था की इतनी महंगाई में भी कितना खा रहे हैं हम लोग :)
जवाब देंहटाएंवाणी जी,,,,
जवाब देंहटाएंमंहगाई को तो आप ने काफी कोस ही दिया है,,,,हमारे लिए कुछ नहीं छोड़ा है,,,,,
हम शादी शुदा हैं,,,, बच्चों के पिता हैं ,,,
हमने भी पढ़ा है आपका लेख,,,,
एक बात और कहना चाहते हैं,,,, के भोजन पकाना केवल महिलाओं के लिए ही जरूरी नहीं होता ,,,,, ये एक ऐसी प्रक्रिया है जो दिल को सकूं देती है,,,, खाना पकाना अपने आप में राहत देने वाला काम है,,,,,,,
समझ नहीं आया के हाथ में चमचा बेलन लेने के बाद किसी की आँखें लाल पीली कैसे रह सकती हैं.....
:)
:)